728x90 AdSpace

  • Latest News

    Tuesday 6 September 2016

    ... तो 'दलबदलू' करेंगे 'भाजपाई विचारधारा' की रक्षा! BJP Idealogy and defector, Hindi Article

    भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पार्टी को किसी न किसी वजह से चर्चा में रखने की भरपूर कोशिश करते हैं, किन्तु दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश चुनाव के सन्दर्भ में केंद्र में शासन कर रही इस पार्टी की चर्चा 'दलबदलुओं' से हो रही है. यूं तो आने वाले दिनों में इसका प्रभाव ज्यादा स्पष्ट ढंग से सामने आएगा, पर भाजपा के दरवाजे यूं खुलने पर न केवल विपक्षी बल्कि खुद पार्टी में विरोध के सुर उभरे हैं तो भाजपा का मातृ-संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी पार्टी को नसीहत दे डाली है. इस बात में कोई शक नहीं है कि भाजपा एक 'कैडर' आधारित पार्टी रही है, जिसकी पूर्व में अपनी विचारधारा रही है, किन्तु समझना मुश्किल है कि जो लोग कल तक 'भाजपा' और उसके नेताओं को गालियां देते थे, अचानक वह भाजपा की विचारधारा किस प्रकार समझ जायेंगे? यह ठीक बात है कि हर एक पार्टी चुनाव जीतना चाहती है, किन्तु क्या सिर्फ चुनाव-जीतने के लिए घोड़े-गधे सभी को पार्टी में बटोर लेना चाहिए ? वैसे भी, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि 'दलबदलुओं' द्वारा चुनाव जीत ही लिया जायेगा, बल्कि अतीत में कई बार इसका उलटा प्रभाव भी देखने को मिला है. कई विश्लेषक साफ़ तौर पर कह रहे हैं कि जिस तरह बिहार में जीतन राम मांझी सहित कई दलों एवं नेताओं को शामिल किया गया था और उसका प्रभाव उल्टा ही पड़ा, यूपी में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल जाए तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए. हालाँकि, उत्तर प्रदेश में ज्यों-ज्यों विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है त्यों-त्यों विभिन्न राजनीतिक दलों में फेर-बदल दिखाई देगा, किन्तु भाजपा में यह इतना ज्यादा हो गया है कि 'राष्ट्रीय चर्चा' का मुद्दा बन गया है और इस आपाधापी में 'विचारधारा' कहीं खो गयी है. अमित शाह को जवाब देना भारी पड़ गया है कि आखिर पार्टी में धड़ाधड़ एंट्री कराने से 'चाल, चरित्र और चेहरा' पर नकारात्मक असर पड़ेगा या नहीं! 

    इसे भी पढ़ें: 'लेमोआ', सिस्मोआ, बेका और भारत का 'सैन्य भविष्य'!

    BJP Idealogy and defector, Hindi Article, New
    गौरतलब है कि हाल ही में भाजपा में कई ऐसे नेता शामिल हुए हैं, जो पहले दूसरी पार्टियों से ताल्लुक रखते थे, खासकर 'बसपा' से! सबसे अधिक चर्चा रही बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्या की, जिनकी चर्चा इस बात के लिए ज्यादा हुई कि बसपा में बड़े नेता की पोजिशन होने के बावजूद वह अपनी मर्जी से कुछ लोगों के लिए टिकट चाहते थे, जो पूरी नहीं होने पर उन्होंने 'बहनजी' से दूरी बना ली. अब यह समझना मुश्किल नहीं है कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी वही इच्छा भाजपा में पूरी करना चाहेंगे. अब न केवल भाजपा, बल्कि सभी के लिए यह बात सोचने वाली है कि कार्यकर्त्ता पांच साल तक क्षेत्र में मेहनत करते हैं, किन्तु अचानक चुनाव के समय कोई दूसरी पार्टी से घुसता है और 'टिकट' भी पा जाता है. ऐसे में कार्यकर्ता ऐसे घुसपैठियों से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं, तो कई तो बगावत पर उतर जाते हैं और प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से अपने ही उम्मीदवार (घुसपैठिये) को हराने की कोशिश में जुट जाते हैं. हालाँकि, मौर्य के भाजपा में शामिल होने पर किसी भाजपाई ने सामने से ज्यादा विरोध नहीं जताया, लेकिन कहीं कहीं से खबरें यह भी आईं कि यूपी भाजपा प्रेजिडेंट केशव प्रसाद मौर्य इस स्थिति से थोड़े असहज हुए थे. खैर, दिल्ली स्थित केंद्रीय भाजपा कार्यालय में स्वामी प्रसाद मौर्य की 'ग्रैंड एंट्री' कराई गयी, पर जब बसपा के ही ब्रजेश पाठक भाजपा में शामिल हुए तो भाजपा सांसद साक्षी महाराज के धैर्य ने जवाब दे दिया! साक्षी महराज इस बात से इतने नाराज दिखे कि न केवल सार्वजनिक बयानबाजी की, बल्कि ब्रजेश पाठक की एंट्री की बात को पार्टी फोरम में उठाने की बात कह डाली. देखा जाए तो साक्षी महराज की नाराजगी काफी हद तक जायज है, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में साक्षी महाराज ने ही ब्रजेश पाठक को उन्नाव से हराया था. इसके अलावा छोटे-बड़े कई दलों से अमित शाह की टीम रोज बातचीत कर रही है. 

    इसे भी पढ़ें: भाजपा-बसपा के 'गाली-गलौच' के बीच अखिलेश कर सकते हैं वापसी!

    हालाँकि, यह बात अलग है कि यूपी भाजपा के दिग्गज नेताओं की सुनवाई कम हो रही है. पिछले दिनों इलाहाबाद बाद में हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के दौरान मुख्यमंत्री पद के दावेदारों पर खींचातानी की खबरें आयी थीं, तो वरुण गाँधी को पोस्टरबाजी के लिए डांट पड़ने की खबर भी थी. मुख्यमंत्री पद की खींचातानी भाजपा में कुछ यूं समझी जा सकती है कि योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर की रैली में पीएम की मौजूदगी में कहना पड़ा कि वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, बल्कि योगी की तरह ही सेवा करते रहना चाहते हैं. मुख्यमंत्री उम्मीदवार की ही बात करें तो पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का नाम खूब उछला था तो बाद में यह भी सामने आया कि उन्होंने इसके लिए मना कर दिया है. ऐसे ही स्मृति ईरानी का नाम भी उछला, पर भाजपा अब तक इस बात के लिए साहस नहीं जुटा सकी है कि किसी एक नाम पर वह यूपी की जनता से वोट मांगने जा सके! वह भी तब जब सपा, बसपा के साथ कांग्रेस तक का सीएम उम्मीदवार तय हो चुका है. कहाँ तक पार्टी के भीतर के इन समीकरणों को अमित शाह प्रबंधित करते, वह बाहर से लोगों को लाकर इसे 'ज्यादा जोगी, मठ उजाड़' वाली कहावत सिद्ध करने पर तुले हुए हैं. यहाँ तक कि संघ प्रमुख मोहन भागवत तक ने बाहरियों के शामिल होने पर टिपण्णी कर डाली कि 'इसका असर कुछ दिन बाद दिखेगा'! इन चर्चाओं से इतर थोड़ा ध्यान से देखा जाए तो दलबदलुओं से भाजपा को उत्तर प्रदेश चुनाव में क्या वाकई लाभ मिलने वाला है? इससे पहले यदि हम दिल्ली विधानसभा चुनाव की बात करें वहां भी चुनाव से पहले कई ऐसे नेता शामिल हुए जिनको भाजपा ने मैदान में उतार दिया था. कांग्रेस से ब्रह्म सिंह विधूड़ी और यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री रह चुकीं कृष्णा तीरथ जैसे नामों को दिल्ली चुनाव में टिकट मिला था, तो पूर्व एमएलए बिनोद कुमार बिन्नी को भी भाजपा ने टिकट दिया था जिनको अंततः हार का सामना करना पड़ा था. 

    इसे भी पढ़ें: नज़र न लगे 'भारत रूस' की दोस्ती को ... 

    BJP Idealogy and defector, Hindi Article, New
    यहाँ तक कि भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले क्षेत्र से मुख्यमंत्री की दावेदार किरण बेदी तक हार गयीं और आम आदमी पार्टी की लहार के बावजूद यह बात खूब उछली कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं था. ऐसे ही बिहार में भी हुआ. यूं तो दूसरे पार्टी के नेताओं का भाजपा में शामिल होना पार्टी के कुनबे को बढ़ाने का नाम दिया जा रहा है, जबकि  भाजपा के नेताओं का अप्रत्यक्ष तौर पर कहना है कि 'पार्टी को बाहरियों पर विश्वास नहीं करना चाहिए'. हालाँकि, दूसरी पार्टी के भी नेता भाजपा में शामिल हुए है, किन्तु इसके केंद्र में बसपा ही है क्योंकि बसपा छोड़ने वाले नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी में टिकट का खरीद फरोख्त होती है. मायावती को भी इस बात को सोचना चाहिए कि उनकी पार्टी पर टिकटों की खरीद-फरोख्त का इतना ज्यादा आरोप क्यों लग रहा है? पिछले दिनों दयाशंकर-मायावती का विवाद लोगों के जेहन में है, जिसमें दयाशंकर की जो बदनामी हुई सो हुई, किन्तु यह बात उछल कर सामने आयी कि मायावती की पार्टी में टिकटों की खरीद-फरोख्त होती है. भाजपा के कोर समर्थक भी इस बात से हैरान होंगे कि दलबदलू नेताओं की पहली पसंद भाजपा बन गयी है, जिसमें अभी तक बसपा के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या , ब्रजेश पाठक , उदय लाल, बाला प्रसाद अवस्थी, राजेश त्रिपाठी, कांग्रेस से संजय जायसवाल, विजय दुबे, माधुरी वर्मा और सपा से शेर बहादुर सिंह जैसे नेता शामिल हो चुके हैं. आखिर, अमित शाह ने इन नेताओं की महत्वाकांक्षा को कुछ तो आश्वासन दिया होगा? वैसे भी ये लोग महात्मा तो हैं नहीं जो भाजपा के हित में लग जायेंगे. साफ़ है कि कहीं इनकी वजह से 'आधी छोड़ सारी को धावे, सारी रहे न आधी पावे' वाली कहावत सच न हो जाए! अमित शाह अपने तमाम बयानों में उत्तर प्रदेश से भाजपा को 73 (अपना दल सहित) लोकसभा सीटें मिलने की बात दुहराते हैं और यूपी में सरकार बनाने का दावा ठोकते हैं, किन्तु बड़ा सवाल यह है कि उनके इस दावे पर खुद भाजपा और संघ को कितना विश्वास है? साफ़ है कि मामला उलझता चला जा रहा है और दलबदलुओं ने न केवल भारतीय जनता पार्टी के अंदर 'सीएम पद' पर पड़ी दरार को चौड़ी करने का काम किया है, बल्कि विचारधारा के स्तर पर भी 'भाजपा और संघ' को पीछे धकेला है. देखना दिलचस्प होगा कि जनता भाजपा में 'दलबदलुओं' की एंट्री को कैसे देखती है, आखिर लोकतंत्र में वही तो सर्वोपरि है!

    • Blogger Comments
    • Facebook Comments

    0 comments:

    Post a Comment

    Item Reviewed: ... तो 'दलबदलू' करेंगे 'भाजपाई विचारधारा' की रक्षा! BJP Idealogy and defector, Hindi Article Rating: 5 Reviewed By: Unknown
    Scroll to Top