खतरनाक रूप से चर्चित मामलों में स्कॉर्पीन पनडुब्बी का मामला हाल ही में खूब उछला है और आखिर उछले भी क्यों नहीं! आज जब आतंकवादी और चरमपंथी गतिविधियों को देखते हुए सभी को हर कदम पर सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे समय में गलती से भी कोई चूक हो जाती है, तो इससे अनगिनत जानें जा सकती हैं तो असीमित सम्पदा का नुक्सान हो सकता है. भारत जैसे देश के मामले में तो यह और भी गंभीर है, जिसकी प्रगति और लोकतंत्र से जलने वाले उसके खुद के पड़ोसी ही हैं. जिस तरह भारत दिन पर दिन ताकतवर होता जा रहा है, उसी अनुपात में उसे सावधान (Scorpene Submarine India, Indian Navy, Hindi Article, Be Alert) रहने की भी आवश्यकता है. पर हाल ही में स्कॉर्पीन पनडुब्बी का मामला जिस तरह से लीक होने की बात कही गयी है, चाहे उसमें जिसकी गलती हो, उसने रक्षा मंत्रालय और रक्षामंत्री दोनों के कान खड़े कर दिए हैं. सवाल देश की सुरक्षा का जो है. कल्पना करने मुश्किल नहीं है कि किसी दूसरे देश को आपकी ख़ुफ़िया जानकारी हाथ लग जाय तो फिर आपका सुरक्षा-चक्र ही खतरे में पड़ सकता है और जाहिर सी बात है कि भारत जैसे देश की सुरक्षा में सेंध लगाने की तैयारी में कई वैश्विक एजेंसियां भी हैं, जो हनी ट्रैप से लेकर दूसरे कई फॉर्मूले अपनाती हैं. पिछले दिनों ऐसे कई वाकये सामने आये हैं जब सेनाधिकारियों या सिपाहियों को सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बरगलाकर सुरक्षा की गोपनीयता को लीक करने का मामला सामने आया है, किन्तु स्कॉर्पीन पनडुब्बी का मामला इन सबमें बेहद गंभीर है.
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गौरतलब है कि भारत की आधुनिक पनडुब्बी स्कॉर्पीन से सम्बंधित लगभग 22,000 पन्नों का दस्तावेज आस्ट्रेलिया के किसी अखबार के हाथ लगा है, जिसमें इस पनडुब्बी के परिचालन से जुड़े लगभग सारे तथ्यों का लेखा जोखा है. मसलन खुफिया जानकारी जुटाने की बारंबारता, रडार से बचने की गोपनीय क्षमता, गोते की विभिन्न गहराई, रेंज और मजबूती, पेरिस्कोप का इस्तेमाल करने के लिए जरूरी गति और स्थितियों का ब्यौरा इत्यादि. समझा जा सकता है कि जब यह सब तकनीकी जानकारी पहले ही लीक हो जायेगी तो फिर शत्रु-पक्ष उसकी काट भी तैयार कर लेगा. इतना ही नहीं, बल्कि कहा तो यह भी जा रहा है कि स्कॉर्पीन पनडुब्बी की विभिन्न गति पर शोर, पनडुब्बी में ऐसे सुरक्षित स्थान (Scorpene Submarine India, Indian Navy, Hindi Article, Technical aspects, sea war) कौन से हैं, जहां पर होने वाली बातचीत को दुश्मन के उपकरण नहीं पकड़ सकते, पनडुब्बी की सतह पर आने के बाद प्रोपेलर से होने वाले शोर और तरंगों के स्तर के साथ ही चालक दल के द्वारा दुश्मन से बचकर सुरक्षित ऑपरेशन को अंजाम देना जैसी अति गोपनीय जानकारियां भी लीक हो चुकी हैं. अगर इस पूरे मामले को हम सामरिक दृष्टि से देखते हैं तो पाकिस्तान की अगस्ता 90 डी पनडुब्बी के जवाब में बनी स्कॉर्पीन के दस्तावेजों के लीक होने के पीछे व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा का मामला भी हो सकता है. यूं तो डीसीएनएस में कार्यरत फ्रेंच नेवी के पूर्व ऑफिसर को प्रथम दृष्टया दोषी करार दिया जा रहा है, जो 2011 में भारत ट्रेनिंग के लिए आया था, जिसे उस समय निकल दिया गया था. हालाँकि, जिस तरह 22000 पृष्ठों के दस्तावेज लीक होने की बात कही जा रही है, उससे यह भी संकेत मिलता है कि मामला सिर्फ एक अधिकारी भर का ही नहीं है, बल्कि इसमें और भी कई लोग जुड़े हो सकते हैं.
संभव है कि उसी ने इस दस्तावेज को तीसरी पार्टी को सौंपा होगा, लेकिन क्या वाकई 'पनडुब्बी' जैसे महत्वपूर्ण और बड़े यंत्र की इतनी महत्वपूर्ण जानकारियां किसी खुली आलमारी पर रखी गयीं थीं, जिसे एक आफिसर ने उठाकर दूसरे को दे दिया? साफ़ है कि यह दस्तावेज भारत और फ्रांस की निर्माता कंपनी डीसीएनएस के बीच साझा हुआ था और इन दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए जरूरी मानक फॉलो नहीं किये गए. जहाँ तक सुरक्षा से जुड़े अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि कोई भी एक व्यक्ति महत्वपूर्ण सूचनाओं को एक्सेस नहीं कर सकता और किसी और को भेजना या देना तो बहुत दूर की बात है. साफ़ जाहिर है कि मामला जितना दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा है. जानकारी योग्य बात यह भी है कि फ्रांस की सम्बंधित कंपनी (Scorpene Submarine India, Indian Navy, Hindi Article, Defence companies) के साथ भारत ने कुल छह स्कॉर्पीन सबमरीन का सौदा किया था, जिसकी लागत लगभग 3.5 अरब डॉलर बताई जा रही है. मुंबई स्थित मझगांव डॉक पर तैयार की जा रही स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बी की डील 2005 में कांग्रेस की यूपीए सरकार में फाइनल हुई थी. उस समय रक्षामंत्री प्रणब मुखर्जी थे. हालाँकि, ऐसी बात भी हो रही है कि यह डॉक्यूमेंट पुराने हैं, जिससे आधुनिक तकनीक का कोई लेना देना नही है. अगर ऐसा है तब भी इस तरह के मामले का लीक होना बेहद गंभीर श्रेणी में आता है. सामरिक विषयों से जुड़े मामले तो दशकों तक नहीं, बल्कि सदियों तक सुरक्षित रखे जाते हैं. महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के मामले को ही ले लीजिये, जब उनकी सूचनाएं कई दशकों तक छुपा कर रखी गयीं और आज भी कई सूचनाएं पब्लिक डोमेन में नहीं लाई गयी हैं.
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यह भी बेहद आश्चर्य की बात है कि भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, चिली और ब्राजील के पास भी यही पनडुब्बियां हैं और इस दस्तावेज के लीक होने से ये सभी देश भी उतने ही परेशान होंगे, जितना खुद भारत! हालाँकि, शुरुआत में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने इसे हैकिंग का मामला बताते हुए इससे होने वाले किसी भी नुकसान से इंकार किया, किन्तु स्कॉर्पीन पनडुब्बी लीक मामले पर पहली बार टिप्पणी करते हुए नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा है कि पनडुब्बी से संबंधित जानकारी के लीक होने को ‘‘बेहद गंभीरता’’ से लिया जा रहा है. हालांकि प्रवक्ता ने आगे यह भी जोड़ा कि ‘‘यह मामला ज्यादा चिंताजनक नहीं है. साफ़ है कि सेना के एक हथियार की जानकारी लीक होना ही बेहद चिंताजनक है और यह तो (Defence Minister, Terrorism, Secret Leaks, Serious Defense matter) पनडुब्बी ही है. अलग-अलग आ रही जानकारियों में यह भी कहा जा रहा है कि नौसेना में शामिल होने वाली स्कॉर्पीन को थोड़ा और समय लग जायेगा, क्योंकि दस्तावेजों के लीक होने के बाद उसमें बदलाव की जरूरत है. अब मामला चूंकि सेना और सुरक्षा का है तो इस पर ज्यादा किन्तु-परंतु नहीं किया जाना चाहिए, पर इसके पीछे के कारणों और इससे उत्पन्न समस्या के निवारणों पर अवश्य ही कारगर उपाय किया जाना चाहिए. अब तक स्कॉर्पीन समबमरीन का समुद्र में ट्रायल नहीं हुआ है, जिसकी वजह से उससे बदलाव हो सकता है, लेकिन इसकी आधारभूत तकनीक में बदलाव करना इतना आसान भी नहीं होगा, क्योंकि इससे उसकी कॉस्टिंग कई गुणा बढ़ जाएगी. इस मामले को नज़ीर बनाते हुए आगे से और भी सावधानी बरतनी होगी, अन्यथा सुरक्षा की संवेदनशीलता नज़रअंदाज ही होगी और उसका नतीजा निश्चित तौर पर अच्छा नहीं निकलेगा.
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