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    Saturday 25 February 2017

    बीएमसी में कांग्रेस और शिवसेना साथ आना फड़णवीस सरकार के लिए होगी खतरे की घंटी - Congress shivsena talk on alliance in bmc polls

    क्या अब कांग्रेस और शिवसेना मिलकर देश की सबसे अमीर महानगरपालिका को चलाएंगे? खबर है कि दोनों पार्टियां बीएमसी में गठबंधन को लेकर अंदरखाते बातचीत कर रही हैं. सूत्रों के मुताबिक उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को दूत भेजकर कांग्रेस से मेयर पद के लिए समर्थन मांगा है. बदले में कांग्रेस को डिप्टी-मेयर की पोस्ट देने का वायदा किया गया है. बीएमसी मेयर का चुनाव 9 मार्च को होना है.  अगर बीएमसी में कांग्रेस और शिवसेना साथ आते हैं तो ये फड़णवीस सरकार के लिए भी खतरे की घंटी होगी क्योंकि शिवसेना बीजेपी को कमजोर करने के लिए प्रदेश सरकार के समर्थन वापस ले सकती है. अगर ऐसा हुआ तो या तो मध्यावधि चुनाव होंगे या फिर बीजेपी को एनसीपी का साथ लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. एक रास्ता ये भी हो सकता है कि शिवसेना खुद बीएमसी की तरह राज्य में भी कांग्रेस और एनसीपी की मदद से सरकार बना ले.

    हालांकि बीजेपी और शिवसेना के कुछ नेता अब भी बीएमसी में गठबंधन की संभावना तलाश रहे हैं. शुक्रवार को बीजेपी नेता नितिन गडकरी ने शुक्रवार को कहा था कि हालात के मद्देनजर दोनों पार्टियों को साथ आना चाहिए. हालांकि उन्होंने साफ किया था कि इस बारे में आखिरी फैसला मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस और उद्धव ठाकरे को लेना है. शिवसेना ने भी बीजेपी के साथ हाथ मिलाने की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया है. हालांकि ठाकरे के हालिया तेवरों को देखते हुए ये आसान नहीं लगता. हालांकि ठाकरे ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं और हालात पर चर्चा के लिए आज पार्टी के सीनियर नेताओं और पार्षदों की बैठक बुलाई है.

    शिवसेना के कुछ नेता मानते हैं कि राष्ट्रपति के लिए प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी के चुनाव के वक्त भी कांग्रेस और शिवसेना साथ आ चुके हैं. लिहाजा इस बार भी गठबंधन में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

    बीएमसी में चुने गए 5 में से 3 आजाद पार्षदों ने शिवसेना को समर्थन देने का ऐलान किया है. ये सभी पार्टी के ही बागी उम्मीदवार थे. इसके अलावा डॉन अरुण गवली की पार्टी एबीएस का इकलौता पार्षद भी शिवसेना के हक में है. पार्टी की कोशिश जहां 7 सीटों वाली एमएनएस को रिझाने की है. वहीं, शिवसेना के कुछ नेता 9 सीटों वाली एनसीपी के भी संपर्क में हैं. पार्टी के रणनीतिकार इस कोशिश में हैं कि समाजवादी पार्टी और असुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को मेयर चुनाव के दौरान वोटिंग से दूर रहने के लिए राजी किया जाए.

    वहीं, कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक पार्टी शिवसेना को बाहर से समर्थन देने का विकल्प तलाश रही है. पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने कहा है कि बीजेपी और शिवसेना के बीच गठजोड़ पर आखिरी फैसला आने के बाद ही वो किसी नतीजे तक पहुंचेंगे. उनके करीबी विधायक अब्दुल सत्तार के मुताबिक पार्टी की राज्य इकाई शिवसेना को समर्थन पर हाईकमान को प्रस्ताव भेजेगी. प्रस्ताव में बीएमसी ही नहीं बल्कि राज्य भर के स्थानीय निकायों में शिवसेना से गठबंधन की इजाजत मांगी जाएगी. हालांकि कुछ कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि शिवसेना से हाथ मिलाना यूपी में मुस्लिम वोटरों को नागवार गुजर सकता है.

    अगर शिवसेना स्थानीय निकायों में कांग्रेस और एनसीपी के करीब आती है तो उसके लिए राज्य और केंद्र में बीजेपी के साथ गठबंधन की सफाई जनता के सामने पेश करना मुश्किल होगा. ऐसे में सवाल बीजेपी पर उठेंगे. लिहाजा बीएमसी की सियासत से पैदा होने वाले समीकरण राज्य सरकार की सेहत पर भी असर डाल सकते हैं. मौजूदा विधानसभा में 122 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है जबकि शिवसेना के पास महज 63 सीटें हैं. लेकिन अगर इनमें कांग्रेस की 42 और एनसीपी की 41 सीटें जोड़ दी जाएं तो शिवसेना ना सिर्फ बहुमत का आंकड़ा पार करती है बल्कि राज्य में उसका मुख्यमंत्री भी हो सकता है. हालांकि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन शिवसेना से हाथ मिलाएगा, इस पर गंभीर सवाल बरकरार हैं.
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