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    Friday 24 February 2017

    महाराष्ट्र चुनाव का नतीजा मोदी मैजिक या नोटबंदी - maharashtra local body Modi Magic or demonetisation

    महाराष्ट्र निकाय चुनावों में बीजेपी ने जीत का परचम लहरा दिया है. शिवसेना हालांकि, बड़ी पार्टी है लेकिन बीजेपी बीजेपी भी पीछे नहीं है और 31 से बढ़कर उसकी सीटें 82 हो गई हैं. कोई इसे मोदी मैजिक बता रहा है तो कोई नोटबंदी के फैसले का फायदा बता रहा है.

    पहले चंडीगढ़, गुजरात फिर ओडिशा और अब महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में जीत से गदगद बीजेपी इसे देश के अन्य हिस्सों में भी भुनाने की तैयारी में है. बीजेपी के नेता इसे नोटबंदी के कड़े फैसले को जनता के समर्थन बता रहे हैं. यूपी चुनाव के बाकी बचे चरणों में इसे भुनाने के लिए पार्टी ने जश्न की पूरी तैयारी कर रखी है. हालांकि, यूपी समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे 11 मार्च को आएंगे तभी साफ हो पाएगा कि किस हद तक नोटबंदी के फैसले के साथ लोग खड़े हैं.

    227 में से 84 सीटें जीतकर शिवसेना हालांकि इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन बहुमत से दूर ही रह गई. बीजेपी को छोड़कर अन्य किसी दल के पास इतनी सीटें नहीं कि उसे सपोर्ट कर सके. कांग्रेस के साथ जाना उसके लिए आसान नहीं होगा. दो दशकों में पहली बार शिवसेना बीजेपी से अलग होकर बीएमसी चुनाव में उतरी थी. आखिर क्या थी टकराव की वजह? क्या शिवसेना बड़े भाई वाले रोल से निकलने को तैयार नहीं है जैसे कि 1990 में शुरुआत हुई थी. साल 2014 में हुए आम चुनाव में भाजपा ने पहली बार शिव सेना से अधिक सीटें जीतीं. विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर बात बिगड़ गई और दोनों ने अलग लड़ा. बीजेपी ने खुद को साबित किया और अधिक सीटें जीतकर सत्ता में आई. शिवसेना फिर साथ आई. बीएमसी में पिछली बार 31 सीटें जीतने वाली बीजेपी को शिवसेना 60 से अधिक सीट देने को तैयार नहीं थी. दोनों दल अलग-अलग मैदान में उतरे और नतीजा सबके सामने है. बीजेपी ने 81 सीटें जीत ली.


    इस बीएमसी चुनाव में लगभग सफाया हो गया है. 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद से ये सिलसिला जारी है. बीएमसी में पिछली बार के 52 सीटों के मुकाबले इस बार 31 पर आ गई है. इस नतीजे को लेकर कांग्रेस में घमासान छिड़ गया. नारायण राणे ने मुंबई कांग्रेस चीफ संजय निरुपम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो हार की जिम्मेदारी लेते हुए निरुपम ने इस्तीफा तो दिया लेकिन हार के लिए सीनियर नेताओं के भितरघात को जिम्मेदार बता दिया.

    मुंबई में बाहर से रोजी-रोटी के लिए आए लोगों के खिलाफ रणनीति और सड़क पर मारपीट के जरिए सुर्खियों में रहने वाले एमएनएस चीफ राज ठाकरे के लिए भी ये चुनाव एक सबक है. पिछली बीएमसी चुनाव में 28 सीटें जीतने वाली मनसे इस बार के चुनाव में 7 सीटों पर सिमट गई. इतना ही नहीं 2009 के विधनासभा चुनाव में 288 में से 13 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली मनसे 2014 के चुनाव में एक सीट पर सिमट गई और 203 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. साफ है कि निगेटिव पॉलिटिक्स लोगों के बीच अपनी जगह नहीं बना सकती.

    महाराष्ट्र की राजनीति लंबे समय से कांग्रेस-एनसीपी के गठजोड़ बनाम शिवसेना-बीजेपी के बीच मुकाबले की गवाह रही है. लेकिन अब स्थिति एकदम बदल गई है. शिवसेना बीजेपी अब अलग हैं, कांग्रेस एनसीपी सफाए की ओर हैं और एकता बरकरार रख पाना मुश्किल दिख रहा है. ओवैसी की पार्टी और सपा कई इलाकों में वोट बैंक में सेंध लगाती दिख रही है. शिवसेना ने गुजरात में बीजेपी के विरोधी हार्दिक पटेल को अपना चेहरा बना दिया. अगर बीएमसी में शिवसेना बीजेपी के साथ नहीं जाएगी तो क्या कांग्रेस के साथ जाएगी. ये सभी समीकरण महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश की राजनीति में चर्चा का केंद्र रहेंगी और काफी कुछ तय करेंगी.
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