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    Tuesday 16 May 2017

    राम अयोध्या में पैदा हुए हैं तो तीन तलाक भी 1400 साल पुरानी प्रथा है: कपिल सिब्बल - aimplb supreme court kapil sibal ram ayodhya triple talaq

    नई दिल्ली: तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान  AIMPLB के वकील कपिल सिब्बल ने तीन तलाक की तुलना राम के अयोध्या में जन्म से कर डाली. कपिल ने कहा कि तीन तलाक आस्था से जुड़ा विषय है, ठीक उसी तरह जैसे कि मान लीजिए अगर मेरी आस्था राम में है तो मेरा मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. ये आस्था से जुड़ा मामला है. उस पर सवाल नहीं तो तीन तलाक पर क्यों. इसलिए इस मामले में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए.

    कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है.

    यही नहीं तीन तलाक की तुलना कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से की. उन्होंने कहा कि संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है. हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया.

    सुनवाई के दौरान तीन तलाक को लेकर केंद्र सरकार ने कोर्ट के सामने कुछ सवाल रखे :
    1. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तीन तलाक, हलाला और बहु-विवाह की इजाजत संविधान के तहत दी जा सकती है या नहीं ?
    2. समानता का अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसको दी जाए?
    3. पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं?
    4. क्या तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सही है, जिस पर भारत ने भी दस्तखत किये हैं?

    AIMPLB ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील
    - ट्रिपल तलाक को महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन बताने वाले केंद्र सरकार का रुख बेकार की दलील है.
    - पर्सनल लॉ को मूल अधिकार के कसौटी पर चुनौती नहीं दी जा सकती.
    -  ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला जैसे मुद्दे पर कोर्ट अगर सुनवाई करता है तो ये जूडिशियल लेजिस्लेशन की तरह होगा.
    - केंद्र सरकार ने इस मामले में जो स्टैंड लिया है कि इन मामलों को दोबारा देखा जाना चाहिए ये बेकार का स्टैंड है.

    ट्रिपल तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लिखित जवाब दाखिल कर कहा है कि
    - ट्रिपल तलाक के खिलाफ दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है.
    - मुस्लिम पर्सनल लॉ को संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत प्रोटेक्शन है उसे मूल अधिकार के कसौटी पर नहीं आंका जा सकता.
     -कोर्ट पर्सनल लॉ को दोबारा रिव्यू नहीं कर सकती उसे नहीं बदला जा ससकता. कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल नहीं दे सकती.
    - मुस्लिम पर्सनल लॉ में एक बार में ट्रिपल तलाक, हलाला और बहु विवाह इस्लमिक जो इस्लामिक रिलिजन का महत्वपूर्ण पार्ट है और वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के चारों स्कूलों द्वारा परिभाषित है.
    -  मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद-25, 26 व 29 में प्रोटेक्टेड है और क्या इसका व्याख्या या रिव्यू हो सकता है ?
    - संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का जहां तक सवाल है तो वह एग्जेक्युटिव के खिलाफ लोगों को अधिकार मिला हुआ है लेकिन इसे प्राइवेट पार्टी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं हो सकता.
    - किसी व्यक्तिगत शख्स के खिलाफ इसे लागू नहीं कराया जा सकता. संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत जनहित याचिका का इस्तेमाल प्राइवेट शख्स के खिलाफ इस्तेमाल के लिए नहीं हो सकता क्योंकि ये मामला पर्सनल है.
    - सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कई मामलों में ये व्यवस्था दे रखी है कि किसी व्यक्ति विशेष या आइडेंटिकल केस जूडिशियल रिव्यू नहीं हो सकता.
    -सवाल था कि क्या बहुविवाह संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 के खिलाफ है क्या एक तरफा तलाक लिया जाना समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है. एक से ज्यदा पत्नी रखा जा सकता है क्या ये क्रुअल्टी नहीं है. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये मामला विधायिका का है. कोर्ट इस मालमे में विधान नहीं बना सकती.
    - बोर्ड की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि संवैधानिक स्कीम के तहत जूडिशयिरी का महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन धर्म और धार्मिक कार्यक्रम को कोर्ट तय नहीं कर सकता.
    - अगर किसी धार्मिक मसले पर विभेद होगा तो धार्मिक ग्रंथ व किताबों का सहारा लिया जाएगा्. धार्मिक सवाल पर कोर्ट के पास अपना विचार रखने का स्कोप नहीं है.
    -इस्लाम में शादी को सिविल कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है. शरियत शादी को जीवन भर का साथ मानता है.
    - इसे टूटने से बचान के तमाम प्रयास किए जाते हैं. लेकिन इसे अखंडनीय नहीं माना जाता और जबरन रहने के लिए मजबूर नहीं किया जाता.
    -शादी के वक्त ही तलाक आदि के प्रावधान के बारे में पता होता है और शर्त मानने या न मानने के लिए पार्टी स्वतंत्र होता है.
    -  एक बार में तीन तलाक का जहां तक सवाल है तो ये अवांछनीय जरूर है लेकिन तीन तलाक से शादी खत्म हो जाती है. तीन तलाक कहने के बाद पत्नी का दर्जा खत्म हो जाता है.
    -मुस्लिम पर्सनल लॉ को संविधान के अनुच्छेद25 व 26 में प्रोटेक्ट किया गया है. - पर्सनल लॉ कल्चरल मुद्दा है और इसे प्रोटेक्शन दिया गया है. कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल नहीं दे सकती.
    - जहां भी दुनिया में पर्सनल लॉ में बदलाव हुआ है तो वह भारतीय समाजिक व सास्कृतिक परिस्थितियों से अलग है. भारतीय संदर्भ में उसे देखना होगा. अगर उसमें बदलाव हुआ तो इस्लाम धर्म मानने वाले लोगों के साथ न्याय नहीं होगा.
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    Item Reviewed: राम अयोध्या में पैदा हुए हैं तो तीन तलाक भी 1400 साल पुरानी प्रथा है: कपिल सिब्बल - aimplb supreme court kapil sibal ram ayodhya triple talaq Rating: 5 Reviewed By: Sonali
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