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    Thursday 11 May 2017

    जातीय हिंसा की वजह से सुलग रहा है सहारनपुर - Saharanpur ethnic violence

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सहारनपुर जनपद एक बार फिर सुर्ख़ियों में है. महज 30 दिनों के भीतर यहां दो बड़ी हिंसा की घटनाओं ने उत्तर प्रदेश की नई-नवेली योगी सरकार के कानून व्यवस्था दुरुस्त किए जाने के तमाम दावों की हवा निकाल दी है. अमूमन शांत रहने वाला ये जिला अब संगीनों के साए में जी रहा है.


    महीने भर के भीतर सहारनपुर में दो बड़ी हिंसा हो चुकी हैं. पहले सड़क दूधली गांव में अंबेडकर जयंती पर शोभायात्रा निकाले जाने को लेकर सांप्रदायिक हिंसा और अब 5 मई को महाराणा प्रताप जयंती पर शब्बीरपुर गांव में दलितों और राजपूतों के बीच जातीय हिंसा. इस मामल में अब तक 9 FIR दर्ज हो चुकी हैं. 17 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और लगभग 60 लोग फरार हैं.

    एफआईआर में कई सौ अज्ञात लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज कराया गया है. इस जातीय हिंसा की शुरुआत 5 मई को तब हुई जब शब्बीरपुर गांव के कुछ लड़के पास ही के शिमलाना गांव में महाराणा प्रताप की जयंती में शामिल होने के लिए गाजे बाजे के साथ जाने की तैयारी कर रहे थे.

    लड़कों की टोली के साथ डीजे था. गांव के दलितों ने लड़कों को DJ बजा कर जाने से रोका. दोनों पक्षों में गहमा-गहमी के बाद इलाके की पुलिस वहां पहुंची. आरोप है कि इस दौरान दलितों ने पथराव शुरु कर दिया. जिससे पुलिस की गाड़ियों को भी नुकसान हुआ और कई लड़कों को चोटें भी आई.

    इस पथराव की खबर मिलते ही शिमलाना गांव में जमा हुए तमाम राजपूत शबीरपुर गांव की ओर चल पड़े. यहीं से मामला उग्र होता गया. जिसके बाद आगजनी का वह दौर चला, जिसमें कइयों के घर जलकर खाक हो गए. इस जातीय हिंसा में राजपूत समाज के एक शख्स की मौत हो गई. दलितों के कई घर आग के हवाले कर दिए गए.


    आखिर यह जातीय हिंसा कैसे शुरू हुई और क्यों फैली?  गांव में सन्नाटा पसरा है. कुछ लोग खेतों में काम कर रहे हैं. तो औरतें और बुजुर्ग जले हुए घरों के बाहर बुझते और सुलगते हुए धुएं की तरफ देख रहे हैं. गांव में घुसते ही घरों में जली हुई मोटरसाइकिलें. जले हुई दीवारें और जले हुए घर. ये सारा मंजर 5 मई को शब्बीरपुर में हुई जातीय हिंसा की कहानी कह रहे हैं.

    गांव में घुसते ही पहला घर है कुसुम का. जो आग के हवाले किया जा चुका है. घर का सारा सामान जल चुका है. कुसुम बताती है कि, 'वो लोग DJ लेकर के आ रहे थे और नारे लगा रहे थे. महाराणा प्रताप जिंदाबाद और अंबेडकर मुर्दाबाद. हमने उनसे कहा कि मुर्दाबाद के नारे मत लगाओ.' कुसुम ने यह भी बताया कि जब आगजनी शुरू हुई तो तमाम दलित समाज के लोग भागकर अपने छतों पर चले गए.

    कुसुम की बात सुनकर इस हिंसा के पीछे की असली वजह भी सामने आई. हिंसा का केंद्र शब्बीरपुर गांव में रविदास मंदिर था. जहां दलित समाज बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा लगाना चाहता था. क्योंकि यह सार्वजनिक जगह थी, इसलिए बिना प्रशासन के अनुमति के वहां नई प्रतिमा का अनावरण नहीं हो सकता था.

    दलित समुदाय का आरोप है गांव के दूसरे हिस्से में बसे राजपूत अंबेडकर की मूर्ति लगाने के खिलाफ हैं. दलित समाज का यह भी आरोप है कि राजपूतों के विरोध के चलते ही प्रशासन ने उन्हें अंबेडकर की मूर्ति लगाने की इजाजत नहीं दी. हिंसा के वक्त इस मंदिर में भी तोड़फोड़ किए जाने का आरोप है. इस मंदिर में हमारी मुलाकात गांव के रहने वाले सोदास से हुई.

    दलित समाज के सोदास ने बताया कि दलित समाज इस मंदिर में अंबेडकर की मूर्ति लगाना चाहता था जिसका राजपूत लगातार विरोध कर रहे थे. सूरदास ने ये भी कहा, 'राजपूत समाज इस गांव में दोबारा एक हरिजन के प्रधान बनने से नाराज था.' आगे चलते गए तो कई महिलाओं ने लगभग यही आरोप दोहराए की महाराणा प्रताप के लिए निकले गए जुलूस में अंबेडकर के खिलाफ नारे लगाए गए थे.

    आगे बढ़े तो कई जले हुए घर दिखाई दिए. घरों का सामान जमींदोज़ हो चुका था. गांव में सन्नाटा पसरा है. ज्यादातर लड़के FIR दर्ज होने के बाद से फरार हैं. कई दुकानें जल चुकी थी, तो कई घरों में तोड़फोड़ की गई थी.

    दलितों का पक्ष जानने के बाद हम गांव में उस छोर पर पहुंचे जहां राजपूत समाज के लोग रहते हैं. हमारी मुलाकात यहां सबसे पहले अरविंद ठाकुर से हुई. 5 मई को हुई हिंसा में अरविंद के हाथ पर चोट लगी थी और हाथ पर प्लास्टर आज भी मौजूद है. अरविंद ने हमें बताया कि जब वो ट्रैक्टर लेकर गांव में लौट रहे था, तब दोनों तरफ से हो रही हिंसा में उन्हें भी चोट लगी.

    जब हमने अरविंद से पूछा कि क्या इस पूरे विवाद की जड़ अंबेडकर की मूर्ति लगाए जाने है. तो अरविंद ठाकुर ने कहा 'हमें अंबेडकर की मूर्ति लगाने से आपत्ति नहीं है, लेकिन कानून कहता है कि नई मूर्ति लगाने के लिए परमिशन की जरूरत है. उन्हें लगाना है तो परमिशन लेकर लगाएं.'

    आगे हमारी मुलाकात जीतेंद्र कुमार से हुई. जितेंद्र का कहना था कि बिना इजाजत के वह मूर्ति लगाना चाहते थे. जितेंद्र ने बताया कि लड़के जब जा रहे थे तो DJ उनके साथ था लेकिन बंद था. वह गांव के बाहर बजाना चाहते थे और पुलिस पर भी दलितों ने पथराव शुरु कर दिया.

    राजपूत समाज के बृजेश का आरोप है इस पूरी घटना के लिए गांव के प्रधान शिवकुमार जिम्मेदार हैं, जिन्होंने पथराव करवाया. वहीं राजपूत समाज की महिलाएं जिन्होंने 5 मई की पूरी घटना को अपनी आंखों से देखा. उनका आरोप है कि हिंसा की शुरुआत दलितों की ओर से हुई ना कि ठाकुरों की ओर से.

    राजपूत समाज की महिला सुनीता ने बताया कि घटना के दिन कुछ बच्चे ही थे जो महाराणा प्रताप की जयंती के लिए इस गांव से शिमलाना गांव जा रहे थे. उन्हें DJ बजाने से रोका गया. जब बच्चों ने सवाल उठाया तो दलितों और उनके बीच तू-तू मैं-मैं हुई. इन बच्चों ने शिमलाना में आए हुए तमाम लोगों से बात की. बच्चों ने उन्हें बताया कि दलित समाज के लोग DJ लेकर जाने नहीं दे रहे हैं. दलितों के प्रधान ने DJ लेकर जाने नहीं दिया.



    सुनीता ने आगे बताया कि दोनों पक्षों में बहस बढ़ने के बाद बाहर से और ज्यादा लड़के आ गए. जिसके बाद दलितों ने पत्थरबाजी शुरू की. उसी पत्थरबाजी के बाद मामला उग्र हो गया. इतना ही नहीं सुनीता ने आरोप लगाते हुए यहां तक कह दिया कि अपने घरों में आग खुद दलित महिलाओं ने लगाई. सुनीता के साथ मौजूद और महिलाओं ने भी बताया की झुंड में आए लोगों में कई बाहरी लोग थे. जो इस गांव के नहीं थे.

    सुनीता के मुताबिक जैसे ही पत्थरबाजी में राजपूत समाज के लड़के की मौत हुई. उसके बाद मामला बेहद उग्र हो गया. इस बातचीत के दौरान राजपूत समाज के कुछ और लड़के वहां पर आ गए. जिन्होंने आरोप लगाया कि दलितों ने खुद ही अपने घरों में आगजनी की है. राजपूतों ने यह भी दावा किया कि दलित समाज अंबेडकर की मूर्ति लगाने के लिए जिद पर अड़ा हुआ है. अगर उनकी जिद है, तो मूर्ति न लगाने देने की राजपूतों की भी जिद है.

    18 साल की सुवर्णा ने बताया कि जब वह देवबंद से अपने कॉलेज से लौट कर गांव में आ रही थी तो उसने सुना कि दलित लड़के कह रहे थे कि महाराणा प्रताप की जयंती नहीं निकलने देंगे. हमारे गांव के लड़के महाराणा प्रताप की जयंती के लिए DJ लेकर के आए लेकिन जब लड़ाई शुरु हुई. तो वह DJ लेकर वापस आ गए.

    सुवर्णा का कहना है कि राजपूत समाज के लड़कों ने कोई नारे नहीं लगाए बल्कि दलित समाज बाबा साहब अंबेडकर की जय जयकार के नारे लगा रहा था. सुवर्णा का आरोप है कि मारपीट और पत्थरबाजी की शुरुआत सबसे पहले दलितों की ओर से हुई. जिसके बाद राजपूतों ने जवाब दिया.

    इस हिंसा के बाद प्रशासनिक कार्यवाई में इलाके के थानाध्यक्ष एमपी सिंह को लाइन हाजिर कर दिया गया. अब पूर्व हो चुके थानाध्यक्ष एमपी सिंह ने कैमरे पर कुछ भी कहने से मना कर दिया. लेकिन छिपे हुए कैमरे पर उन्होंने जो कुछ भी बताया वह आजतक की पड़ताल पर मुहर लगाता है.


    पूर्व थानाध्यक्ष एमपी सिंह ने बताया कि इस जातीय हिंसा के पीछे असली वजह दलितों की अंबेडकर प्रतिमा लगाए जाने की जिद है. राजपूत प्रतिमा को न लगने देने की जिद में हैं. हिंसा के पीछे एक बड़ी वजह शब्बीरपुर गांव के प्रधान शिवकुमार की जिद भी है. दलितों के पथराव के बाद शिमलाना गांव में महाराणा प्रताप जयंती मनाने के लिए जमा हुए तमाम राजपूत शब्बीरपुर गांव पहुंचे और फिर आगजनी हुई. राजपूतों में कई आस-पास के गांव से थे तो कई पड़ोसी राज्य हरियाणा से आए थे.

    पुलिस की रिपोर्ट कहती है कि दलितों की ओर से हुए पथराव में रसूलपुर गांव से महाराणा प्रताप जयंती मनाने के लिए आए राजपूत समाज के सुमित सिंह की मौत हो गई. मौत का बदला लेने के लिए आए तमाम लोगों के हाथों में लाठी डंडे और तलवारें थी. पुलिस ने हथियारों से के साथ आए पूरे हुजूम को रोकने की पूरी कोशिश की थी.

    इस हिंसा की सारी जड़ मूर्ति का विवाद ही है हालांकि एलआईयू की रिपोर्ट बताती है कि दलितों ने कभी वहां मूर्ति लगाने के लिए कोई परमिशन नहीं मांगी. खुफिया सूत्रों मुताबिक रविदास मंदिर के अंदर मूर्ति लगाने के लिए जो ढांचा तैयार किया गया है. वह भी अवैध है.


    शब्बीरपुर में भडकी इस जातीय हिंसा के पीछे केवल दलितों और राजपूतों की जिद है. दलित रविदास मंदिर में अंबेडकर की मूर्ति लगाना चाहते हैं लेकिन राजपूतों के विरोध के चलते प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं देता. इस बार राजपूत महाराणा प्रताप की जयंती पर जुलूस लेकर निकलना चाहते थे, तो दलितों ने सालों तक दबी हुई नाराजगी बाहर निकाली. जिसके बाद मामला इस हद तक गंभीर हो गया. एक घर का चिराग बुझ गया और कई घर चिराग के हवाले कर दिए गए. उत्तर प्रदेश में एक बाद एक और खासकर सहारनपुर में इस तरह की घटनाएं योगी सरकार के दावों और कानून व्यवस्था की लचर होती स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है.
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