उत्तराखंड की सहसपुर विधानसभा सीट पर सड़क किनारे प्रचार कर रही निर्दलीय उम्मीदवार लक्ष्मी अग्रवाल लोगों से कहती हैं कि वोट के दिन ध्यान रखना कि चुनाव के वक्त कौन बरसाती मेढ़क की तरह आता है और कछुए की तरह सालों से तुम्हारे साथ चल रहा है. उत्तराखंड में सरकार बनाने में निर्दलीयों की भूमिका अहम रहती है और ये निर्दलीय अक्सर अपनी पार्टी से टिकट न मिलने पर खड़े होते हैं. लक्ष्मी अग्रवाल ने बीजेपी विधायक और इन चुनावों में फिर से उम्मीदवार बने सहदेव पुंडीर के लिए सिरदर्द पैदा कर दिया है.
“भाजपा में कार्यकर्ता का कोई सम्मान नहीं है. सुबह आओ और शाम तक बाप-बेटे दोनों टिकट पाओ.. ये क्या है किस सिद्धांत की बात करती है पार्टी.” लक्ष्मी अग्रवाल का इशारा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए यशपाल आर्य और उनके बेट संजीव आर्य की ओर है. दोनों को पार्टी में शामिल होने के कुछ घंटों में ही बीजेपी ने टिकट दे दी. अग्रवाल की नाराज़गी बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं और नेताओं की भावना व्यक्त कर रही है क्योंकि पार्टी ने इस बार एक दर्जन से अधिक उन नेताओं को टिकट दिए हैं जो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए. पार्टी में इसे लेकर काफी नाराज़गी है.
“ये साबित हो चुका है कि उत्तराखंड में इस बार कम से कम 10-12 लोग निर्दलीय उम्मीदवार जीत कर आएंग, क्योंकि ये वे हैं जो सुख-दुख में जनता के बीच रहकर उनके काम आते हैं.” लक्ष्मी अग्रवाल सहसपुर की जनता को समझाती हैं जिनके व्यापारी पति ने बीजेपी की काफी सेवा की है. लक्ष्मी ने 2012 के पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट से लड़कर करीब 5600 से अधिक वोट हासिल किए थे.
बगावत का ही असर है कि उत्तराखंड में बीजेपी के लिए कई सीटों पर बागी मुश्किल बने हैं. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सतपाल महाराज चौबटाखाल से लड़ रहे हैं. बीजेपी ने महाराज को लड़ाने के लिए अपने नेता तीरथ सिंह रावत का टिकट काटा. रावत चुनाव तो नहीं लड़ रहे लेकिन उनके ‘करीबी’ कहे जाने वाले कवीन्द्र इस्टवाल खड़े हो गए हैं और यहां से सतपाल महाराज के लिए सिरदर्द हैं.
उधर, नरेंद्र नगर सीट पर बीजेपी ने कांग्रेस से आए सुबोध उनियाल को टिकट दिया जिनके सामने बीजेपी के बागी ओम गोपाल रावत खड़े हो गए हैं. कांग्रेसी से भाजपाई बने हरक सिंह रावत की वजह से बीजेपी के शैलेन्द्र रावत ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में आ गए. हरक सिंह रावत को बीजेपी ने कोटद्वार से टिकट दिया जहां से शैलेन्द्र रावत लड़ना चाहते थे. कांग्रेस ने तुरंत शैलेन्द्र रावत को गढ़वाल की यमकेश्वर सीट से टिकट दे दिया. बताया जा रहा है कि शैलेन्द्र रावत के समर्थक कोटद्वार में अब हरक सिंह के खिलाफ काम में लग गए हैं.
aryendra
उत्तराखंड की 70 सीटों पर नज़र डालें तो आधे से अधिक सीटों पर बागी खेल बिगाड़ने में लगे हैं लेकिन बगावत सिर्फ बीजेपी की समस्या नहीं है. सहसपुर सीट पर ही प्रचार कर रहे आर्येंन्द्र शर्मा कांग्रेस से टिकट न मिलने पर नाराज़ हुए और निर्दलीय खड़े हुए हैं. यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय मैदान में हैं. मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उपाध्याय की परम्परागत टिहरी सीट से उन्हें नहीं लड़ाया जिससे उपाध्याय बी नाराज़ माने जा रहे हैं.
आर्येन्द्र शर्मा ने सहसपुर से पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे थे. पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के खास रहे शर्मा जनता से कहते हैं, कुछ ऐसी षड्यंत्रकारी साजिशें जो हमारे सहसपुर का विकास रोकना चाहतीं थीं, जो हमारे उत्तराखंड का विकास रोकना चाहती थीं. उस राज्य के नेता जो भविष्य का खतरा देख रहे थे उन्होंने एक षड्यंत्र रचा.”
कांग्रेस के लिए दिक्कतें और भी हैं. हरिद्वार की ज्वालापुर सीट पर पार्टी उम्मीदवार एसपी सिहं के खिलाफ बागी ब्रजरानी खड़ी हैं तो कुमाऊं की भीमताल सीट पर दान सिंह भंडारी के खिलाफ राम सिंह कैड़ा बागी उम्मीदवार हैं. कुमाऊं की ही द्वाराहाट सीट पर कांग्रेस के मदन बिष्ट के खिलाफ कुबेर कठायत खड़े हैं.
सहसपुर में संघर्ष कर रहे प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कहते हैं, इन बागियों और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गई विधायकों में कोई अंतर नहीं है. वे लोग तो हमारी सरकार गिरा रहे थे लेकिन ये लोग पार्टी को खत्म करना चाहते हैं. इन लोगों ने अपनी मां को धोखा दिया है पार्टी मां समान होती है.”
बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल हुए 13 नेताओं को टिकट दिया है तो कांग्रेस ने बीजेपी से आए 7 नेताओं को टिकट दिया है. इससे दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक घमासान मचा है और खुले या छुपे रूप से बागी अपने काम में लगे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार एसएएम काज़मी कहते हैं, “हर बार बागियों की समस्या दोनों पार्टियों को रहती है खासतौर से कांग्रेस को, लेकिन इस बार जो नेताओं का होलसेल ट्रांसफर हुआ है उससे यह स्थिति बनी है. अगर आप रुड़की सीट देखें तो प्रदीप बतरा जो पिछली बार के कांग्रेस के उम्मीदवार थे वह बीजेपी के उम्मीदवार हैं और वहां कांग्रेस उन्हें लड़ा रही है जो बीजेपी के प्रत्याशी थे. ऐसे माहौल में बागी काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि इनमें से कई लोगों का काफी जनाधार है. अगर आप गंगोत्री सीट पर देखेंगे तो वहां सूरतराम नौटियाल हैं, जो आरएसएस के हैं और काफी मज़बूत हैं. उधर कांग्रेस के लिए आर्येंद्र शर्मा मुसीबत बने हैं, जो पिछली बार उसी दूसरे नंबर पर रहे थे. इन बागियों को देखने से साफ हो जाता है कि चुनाव के बाद निर्दलीयों की संख्या ठीक-ठाक रहेगी और अगर त्रिशंकु विधानसभा बनी तो सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त और खींचतान का बाज़ार गरम रहेगा.
“भाजपा में कार्यकर्ता का कोई सम्मान नहीं है. सुबह आओ और शाम तक बाप-बेटे दोनों टिकट पाओ.. ये क्या है किस सिद्धांत की बात करती है पार्टी.” लक्ष्मी अग्रवाल का इशारा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए यशपाल आर्य और उनके बेट संजीव आर्य की ओर है. दोनों को पार्टी में शामिल होने के कुछ घंटों में ही बीजेपी ने टिकट दे दी. अग्रवाल की नाराज़गी बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं और नेताओं की भावना व्यक्त कर रही है क्योंकि पार्टी ने इस बार एक दर्जन से अधिक उन नेताओं को टिकट दिए हैं जो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए. पार्टी में इसे लेकर काफी नाराज़गी है.
“ये साबित हो चुका है कि उत्तराखंड में इस बार कम से कम 10-12 लोग निर्दलीय उम्मीदवार जीत कर आएंग, क्योंकि ये वे हैं जो सुख-दुख में जनता के बीच रहकर उनके काम आते हैं.” लक्ष्मी अग्रवाल सहसपुर की जनता को समझाती हैं जिनके व्यापारी पति ने बीजेपी की काफी सेवा की है. लक्ष्मी ने 2012 के पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट से लड़कर करीब 5600 से अधिक वोट हासिल किए थे.
बगावत का ही असर है कि उत्तराखंड में बीजेपी के लिए कई सीटों पर बागी मुश्किल बने हैं. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सतपाल महाराज चौबटाखाल से लड़ रहे हैं. बीजेपी ने महाराज को लड़ाने के लिए अपने नेता तीरथ सिंह रावत का टिकट काटा. रावत चुनाव तो नहीं लड़ रहे लेकिन उनके ‘करीबी’ कहे जाने वाले कवीन्द्र इस्टवाल खड़े हो गए हैं और यहां से सतपाल महाराज के लिए सिरदर्द हैं.
उधर, नरेंद्र नगर सीट पर बीजेपी ने कांग्रेस से आए सुबोध उनियाल को टिकट दिया जिनके सामने बीजेपी के बागी ओम गोपाल रावत खड़े हो गए हैं. कांग्रेसी से भाजपाई बने हरक सिंह रावत की वजह से बीजेपी के शैलेन्द्र रावत ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में आ गए. हरक सिंह रावत को बीजेपी ने कोटद्वार से टिकट दिया जहां से शैलेन्द्र रावत लड़ना चाहते थे. कांग्रेस ने तुरंत शैलेन्द्र रावत को गढ़वाल की यमकेश्वर सीट से टिकट दे दिया. बताया जा रहा है कि शैलेन्द्र रावत के समर्थक कोटद्वार में अब हरक सिंह के खिलाफ काम में लग गए हैं.
aryendra
उत्तराखंड की 70 सीटों पर नज़र डालें तो आधे से अधिक सीटों पर बागी खेल बिगाड़ने में लगे हैं लेकिन बगावत सिर्फ बीजेपी की समस्या नहीं है. सहसपुर सीट पर ही प्रचार कर रहे आर्येंन्द्र शर्मा कांग्रेस से टिकट न मिलने पर नाराज़ हुए और निर्दलीय खड़े हुए हैं. यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय मैदान में हैं. मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उपाध्याय की परम्परागत टिहरी सीट से उन्हें नहीं लड़ाया जिससे उपाध्याय बी नाराज़ माने जा रहे हैं.
आर्येन्द्र शर्मा ने सहसपुर से पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे थे. पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के खास रहे शर्मा जनता से कहते हैं, कुछ ऐसी षड्यंत्रकारी साजिशें जो हमारे सहसपुर का विकास रोकना चाहतीं थीं, जो हमारे उत्तराखंड का विकास रोकना चाहती थीं. उस राज्य के नेता जो भविष्य का खतरा देख रहे थे उन्होंने एक षड्यंत्र रचा.”
कांग्रेस के लिए दिक्कतें और भी हैं. हरिद्वार की ज्वालापुर सीट पर पार्टी उम्मीदवार एसपी सिहं के खिलाफ बागी ब्रजरानी खड़ी हैं तो कुमाऊं की भीमताल सीट पर दान सिंह भंडारी के खिलाफ राम सिंह कैड़ा बागी उम्मीदवार हैं. कुमाऊं की ही द्वाराहाट सीट पर कांग्रेस के मदन बिष्ट के खिलाफ कुबेर कठायत खड़े हैं.
सहसपुर में संघर्ष कर रहे प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कहते हैं, इन बागियों और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गई विधायकों में कोई अंतर नहीं है. वे लोग तो हमारी सरकार गिरा रहे थे लेकिन ये लोग पार्टी को खत्म करना चाहते हैं. इन लोगों ने अपनी मां को धोखा दिया है पार्टी मां समान होती है.”
बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल हुए 13 नेताओं को टिकट दिया है तो कांग्रेस ने बीजेपी से आए 7 नेताओं को टिकट दिया है. इससे दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक घमासान मचा है और खुले या छुपे रूप से बागी अपने काम में लगे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार एसएएम काज़मी कहते हैं, “हर बार बागियों की समस्या दोनों पार्टियों को रहती है खासतौर से कांग्रेस को, लेकिन इस बार जो नेताओं का होलसेल ट्रांसफर हुआ है उससे यह स्थिति बनी है. अगर आप रुड़की सीट देखें तो प्रदीप बतरा जो पिछली बार के कांग्रेस के उम्मीदवार थे वह बीजेपी के उम्मीदवार हैं और वहां कांग्रेस उन्हें लड़ा रही है जो बीजेपी के प्रत्याशी थे. ऐसे माहौल में बागी काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि इनमें से कई लोगों का काफी जनाधार है. अगर आप गंगोत्री सीट पर देखेंगे तो वहां सूरतराम नौटियाल हैं, जो आरएसएस के हैं और काफी मज़बूत हैं. उधर कांग्रेस के लिए आर्येंद्र शर्मा मुसीबत बने हैं, जो पिछली बार उसी दूसरे नंबर पर रहे थे. इन बागियों को देखने से साफ हो जाता है कि चुनाव के बाद निर्दलीयों की संख्या ठीक-ठाक रहेगी और अगर त्रिशंकु विधानसभा बनी तो सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त और खींचतान का बाज़ार गरम रहेगा.
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