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    Wednesday 15 February 2017

    शहाबुद्दीन को एक हफ्ते के भीतर दिल्ली की तिहाड़ जेल लाया जाए : सुप्रीम कोर्ट - Shahabuddin transfer to tihar jail : supreme court

    नई दिल्ली: आरजेडी के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है. शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि शहाबुद्दीन को एक हफ्ते के भीतर बिहार की सिवान जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल लाया जाए. ट्रांसफर के दौरान उसे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिलेगा. सिवान की ट्रायल कोर्ट में चल रहे 45 मामले वहीं चलते रहेंगे जिनकी सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से होगी.

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि संविधान का राइट टू फेयर ट्रायल सिर्फ आरोपी के लिए नहीं बल्कि पीड़ित के लिए है. यहां सिर्फ सवाल आरोपी के अधिकारों का नहीं है बल्कि पीडितों के स्वतंत्रता से जीवन जीने के अधिकार का भी है. आरोपी शहाबुद्दीन की इस दलील से कोर्ट सहमत नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट को किसी को दूसरे राज्य में जेल ट्रांसफर नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट की ये जिम्मेदारी है कि वो हर केस में फ्री एंड फेयर ट्रायल को सुनिश्चित करे. कोर्ट हर मामले के तथ्यों को देखकर और जनता के हित को ध्यान में रखकर ये फैसला कर सकता है कि फेयर ट्रायल हो.

    मोहम्मद शहाबुद्दीन और उनके खिलाफ मामलों को दिल्ली ट्रांसफर करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन और तीन बेटों को गंवा चुके चंद्रेश्वर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर शहाबुद्दीन को बिहार से तिहाड़ जेल ट्रांसफर करने की मांग की थी. इससे पहले पिछले साल 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए जमानत रद्द करते हुए शहाबुद्दीन को वापस जेल भेज दिया था.

    हालांकि शहाबबुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उन पर लगाये गए आरोप राजनीति से प्रेरित हैं. मीडिया ने उनके मामले को बड़ा तूल दिया है. अगर उनको तिहाड़ जेल ट्रान्सफर करेंगे तो उनके अधिकारों का हनन होगा.

    अगर सारे 45 केस सीबीआई को ट्रांसफर किये गए तो मामले की सुनवाई में और देरी होगी क्योंकि मामलों से सम्बंधित दस्तावेज जुटाने में 2 साल लग जायेंगे. बिहार के RJD नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन और उनके खिलाफ मामलों को दिल्ली ट्रांसफर करने को लेकर कोर्ट ने अहम सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रखा था.

    सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि अगर निचली अदालत ने शहाबुद्दीन को बहस के लिए वकील मुहैया कराया था तो उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनोती देने की जरूरत क्या थी? अगर शहाबुदीन अदालत से लीगल ऐड मांग रहा था तो उसको देने में हर्ज़ क्या था. जिस पर बिहार सरकार ने कहा शहाबुद्दीन को लीगल ऐड की जरूरत नहीं थी और सरकार लीगल ऐड का खर्चा नहीं उठाना चाहती थी क्योंकि शहाबुद्दीन सक्षम है कि वो अपने लिए किसी वकील को बहस के लिए नियुक्त कर सके.

    दरअसल सेशन कोर्ट ने शहाबुद्दीन को उसके खिलाफ लंबित मामलों में बहस के लिए लीगल ऐड के जरिये वकील उपलब्ध कराया था जिसको बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में चुनोती दी थी. और हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद उसके खिलाफ सभी मामलों पर रोक लग गई थी.

    वही बिहार सरकार ने फिर कहा शहाबुद्दीन को बिहार से ट्रांसफर न किया जाये और न ही केस को. वही शहाबुद्दीन की तरफ से कहा गया कि वो पिछले 11 साल से जेल में है ऐसे में उसके पास पैसे नहीं की वो बहस के लिए वकील रख सके.

    मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि जिस तरफ पप्पू यादव को बिहार की जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में ट्रान्सफर किया गया था और मामले की सुनवाई बिहार में ही हो रही थी उसी तरह शहाबुद्दीन को बिहार से तिहाड़ जेल ट्रांसफर कर मामले की सुनवाई बिहार में ही की जा सकती है और अगर जरूरत होगी हो शहाबुदीन को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अदालत में पेश किया जा सकता है.

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