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    Sunday 7 May 2017

    नीतीश कुमार के शासन में शहाबुद्दीन की दुर्गति तय है - mohammad sahabuddin nitish kumar

    पटना: बिहार में महागठबंधन की सरकार है और इस सरकार का संयोग है कि क़रीब 20 वर्षों तक एक दूसरे के घोर विरोधी रहे नीतीश कुमार और लालू यादव सत्ता में सहयोगी हैं. पहली बार, लालू यादव ने नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता माना. ये बात लग है कि ये क़दम उनकी राजनीतिक मजबूरी के कारण उठाना पड़ा. लेकिन शनिवार को एक नए नवेले चैनल ने अपने ख़ुलासे में एक ज़माने में सिवान के डॉन और अब पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन और उनके पार्टी के अध्यक्ष लालू यादव के बातचीत का अंश दिखाया है. शहाबुद्दीन, लालू यादव से सिवान के एसपी, सौरव शाह की शिकायत कर रहे हैं. इसके अलावा दो और ऑडियो क्लिप हैं जिसमें शहाबुद्दीन अपने समर्थकों से बातचीत कर रहे हैं और एक क्लिप में बीडीओ को औक़ात दिखाने की बात कर रहे हैं.

    इस ऑडियो क्लिप के सार्वजनिक होने से निश्चित रूप से राजनीतिक तूफ़ान दिल्ली से पटना तक शुरू हो गया है. इस बात मे कोई संदेह नहीं कि लालू यादव के कट्टर समर्थकों के पास भी इस बात का कोई तर्क नहीं कि आख़िर लालू यादव की क्या मजबूरी है कि वह शहाबुद्दीन जैसे सजायाफता लोगों से बात करते हैं. हालांकि चारा घोटाले में लालू यादव ख़ुद दोषी पाए गए हैं और बेल पर बाहर चल रहे हैं.

    अगर लालू यादव की बातचीत ग़लत और ग़ैरकानूनी थी तब साथ-साथ ये भी सच है कि ये बिहार की पुलिस है जो जेल में बंद कुख्यात, सजायाफ्ता अपराधियों के ऊपर उनके मोबाइल फ़ोन को रिकॉर्डिंग पर रखती है और शहाबुद्दीन भले सत्तारुढ़ गठबन्धन के नेता हों, लेकिन उनके प्रति पुलिस ने कोई नरमी नहीं बरती. लेकिन सब जानते हैं कि लालू यादव की सारी मुश्किलों में अधिकांश ग़लत लोगों को संरक्षण देने के कारण या पैरवी में किसी को फोन लगा देने के कारण अब तक हुई हैं. माना जाता है कि लालू यादव अपनी आदत से सुधरने वाले नहीं, इसी कारण उनकी मुश्किलें खत्म नहीं हो रहीं.

    विपक्षी भाजपा के नेता सुशील मोदी का आरोप है कि नीतीश कुमार अब लालू यादव के साथ गठबन्धन के कारण सख़्त रुख़ नहीं अख़्तियार करते. हालांकि भाजपा के नेता मानते हैं कि नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के बाद 2005 से अपराधियों ख़ासकर शहाबुद्दीन जैसे कुख्यात अपराधियों के ख़िलाफ़ वो चाहे विशेष कोर्ट बनाने का निर्णय हो या स्पीडी ट्रायल का, उन फ़ैसले के कारण ना केवल आधे दर्जन से अधिक मामलों में दोषी क़रार हुए बल्कि राजनीतिक हैसियत की ये दुर्गति हुई की 2005 नवंबर के चुनाव के बाद लोकसभा और विधानसभा तो दूर की बात है नगरपालिका चुनाव में भी शहाबुद्दीन अपने समर्थकों को अपने प्रभाव से नहीं जीता पाते.

    लालू, नीतीश के एक साथ आने से पहले ये धारणा घर करती जा रही थी कि अगर सिवान की राजनीति में आपके ऊपर शहाबुद्दीन का हाथ है तो हार निश्चित है क्योंकि वोटों का ध्रुविकरण हो जता था. ये बात किसी के समझ से दूर है कि जिस सिवान जेल में एक ज़माने में जेलर शहाबुद्दीन को कुर्सी देते थे उसी जेल में बिहार पुलिस के एक अधिकारी ने उनकी पिटाई इस हद तक कर डाली कि आज तक राजद के नेता भी मानते हैं कि कमर के दर्द से वो उबर नहीं पाए हैं. इसके अलावा जेल में ख़ासकर उनके वार्ड में छापेमारी आम बात हो गई थी. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद एक बार फिर जब जेल में दरबार लगने लगा और उसके फ़ोटो वायरल हुए तब जेल के अधिकारियों पर गाज गिरी.

    शहाबुद्दीन अपनी इस राजनीतिक दुर्गति के लिए नीतीश कुमार को दोषी मानते हैं और इसलिये पिछले साल जेल से निकलने के बाद उन्होंने पहला निशाना नीतीश कुमार पर ये कह कर साधा कि वो परिस्थितियों के नेता हैं और सब जानते हैं कि शहाबुद्दीन के वापस जेल जाने में इस एक वक्तव्य ने सबसे अधिक भूमिका निभायी. बाद में सर्वोच्च न्यायालय में जब तिहार जेल भेजने का मामला आया तब राज्य सरकार ने अपनी सहमति देने में कोई देर नहीं की. ये बात अलग है कि शहाबुद्दीन द्वारा नीतीश पर दिए गए वक्तव्य पर लालू आज तक मौन हैं जो उनकी राजनीति और अभी तक शहाबुद्दीन के प्रति उनके एहसान के कारण हैं.

    शहाबुद्दीन, अगर लालू यादव को फोन कर किसी की शिकायत या फ़रियाद करते हैं तो उसके पीछे कई राजनीतिक कारण हैं लेकिन सबसे प्रमुख है 2000 के वो 7 दिन जब नीतीश कुमार की इतने ही दिनों की सरकार बनी थी और कांग्रेस के कई विधायक नीतीश के लिये अपना पाला बदलने का मन बना चुके थे. अधिकांश विधायक को पटना के एक होटेल में ठहराया गया था और उस समय शहाबुद्दीन के ऊपर उन विधायकों की निगरानी और नीतीश के योजना को विफल करने का ज़िम्मा दिया गया था. ये बात किसी से छिपी नहीं कि शहाबुद्दीन ने इस काम के लिये पूरे देश से अपने समर्थक अपराधियों को जमा किया था और तब पटना पुलिस में अपनी वर्दी से ज़्यादा लालू यादव के प्रति उनके स्वजातीय निष्ठावान अधिकारियों ने इस काम में उनकी मदद की.

    नीतीश सरकार को जाना पड़ा और शहाबुद्दीन के सामने लालू यादव नतमस्तक हो गए  ये सिलसिला आज भी जारी है. लेकिन आज की बिहार की राजनीति की सचाई है कि सिवान में वही पुलिस अधीक्षक हैं जिन्हें शहाबुद्दीन ख़त्म बता रहे हैं और बीडीओ भी अपने पद पर विराजमान है केवल एसडीओ का तबादला उसके प्रमोशन होने के कारण हुआ है. ये तथ्य नीतीश, लालू और शहाबुद्दीन तीनों के सम्बन्ध और उनकी राजनीतिक हैसियत आज के बिहार में बयाँ करती है.

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