- उपद्रवियों के सामने नतमस्तक नजर आई पुलिस- पुलिस व पत्रकारों को निशाना बनाने के बावजूद नहीं हुई कोई कार्रवाई
अमित गुप्ता
सहारनपुर। पिछले बीस दिनों में सहारनपुर तीन बार सुलग चुका है। मौके पर कार्रवाई के नाम पर पुलिस सिर्फ उपद्रवियों के आगे नतमस्तक दिखाई दी है। तीनों ही मामलों में पुलिस की कार्यप्रणाली ढुलमुल नज़र आई है। इन मामलों में समय रहते यदि पुलिस कार्रवाई करती तो शायद तीनों ही जगह पर उपद्रवियों का नंगा नाच देखने को नहीं मिलता। उपद्रवियों द्वारा पुलिस व पत्रकारों को निशाना बनाया गया लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही। यही नहीं रामनगर में मंगलवार को जो कुछ हुआ उसने पुलिस के इकबाल पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। बड़ा सवाल ये है कि आखिर वो कौन सी वजह है जिसने बवालियों के खिलाफ पुलिस के हाथ बाँध दिए हैं।
20 अप्रैल को सडक़ दूधली गांव में डा.भीमराव अंबेडकर की शोभायात्रा को लेकर बवाल हुआ था। उपद्रवियों ने पुलिस के सामने आगजनी, तोडफ़ोड़ और कवरेज कर रहे पत्रकारों के साथ मारपीट भी की थी। यही नहीं एसएसपी आवास पर भी घण्टों उपद्रवियों का कब्जा रहा था लेकिन पुलिस ने हल्का बल प्रयोग करना तो दूर विरोध करना भी उचित नहीं समझा। हालांकि तत्कालीन एसएसपी लव कुमार ने शहर में बवाल नहीं फैलने दिया था। बाद में एसएसपी और डीएम का शासन ने जनपद से तबादला कर दिया था। नए कप्तान के रूप में तेज़तर्रार आईपीएस सुभाष चंद दुबे की जनपद में तैनाती की गई थी।
दूधली कांड के ठीक पंद्रह दिन बाद 5 मई को थाना बडग़ांव क्षेत्र में फिर शोभायात्रा को निकालने को लेकर खूनी जातीय संघर्ष हो गया जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गये और एक युवक अपनी जान से हााि तक धोना पड़ा। यहां पर भी पुलिस उपद्रवियों पर काबू नहीं कर सकी। पुलिस के सामने ही उत्पाती युवक नंगी तलवारें लहराते रहे लेकिन पुलिस तमाशबीन बनी रही। दर्जनों घरों को आग के हवाले कर दिया गया। आग बुझाने पहुंची फायर ब्रिगेड तक को उपद्रवियों ने गांव में घुसने नहीं दिया।
पुलिस की सुस्त कार्यप्रणाली से उत्साहित उपद्रवियों ने मंगलवार को फिर जमकर बवाल काटा। मंगलवार की सुबह से ही भीम आर्मी के लोगों ने गांधी पार्क में जुटना शुरू कर दिया था। लेकिन पुलिस का खुफिया तंत्र यहां पूरी तरह फेल नज़र आया। दलित संगठनों से जुडे सैकड़ों लोगों को पुलिस ने लाठियां भांजकर तितर-बितर किया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और यहीं से भीम आर्मी से जुड़े लोग शहर के अलग-अलग कोनों में पहुंचकर हिंसा पर उतारू हो गए। सबसे बुरा हाल मल्हीपुर रोड के गांव रामनगर में देखने को मिला। आठ पत्रकारों की बाइकें आग के हवाले कर दी गई। पुलिस पर फायरिंग और पथराव हुआ। मौके पर मौजूद एसपी सिटी, एडीएम प्रशासन, सिटी मजिस्ट्रेट और पुलिसकर्मियों ने भागकर जान बचाई। बाद में डीएम और एसएसपी भारी पुलिस बल के साथ गांव में पहुंचे लेकिन उपद्रवियों पर कार्रवाई करने के बजाए बातचीत से ही रास्ता निकालने की कवायद की गई।
सहारनपुर में यह पहला मौका नहीं था जब पुलिस उपद्रवियों से निपटने में पूरी तरह विफल नज़र आई। बलवाईयों के प्रति ऐसा नरम रूख जहां पुलिस बल के हौंसलों को मंद कर रहा है तो वहीं आने वाले समय में कानून व्यवस्था के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
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