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    Wednesday 4 January 2017

    अखाड़े में सियासी ‘पहलवान‘, कौन बनेगा असली ‘सुल्तान‘ ? Election Dates and Political Parties, Hindi Story

    • यूपी में बदले हालात में दिलचस्प होगा चुनावी मुकाबला 
    • बिखराव की शिकार समाजवादी पार्टी में चरम पर बेचैनी
    • बसपा, भाजपा व कांग्रेस भी चुनावी गुणा-भाग में व्यस्त 
    • 2012 चुनाव के आंकड़ों को लेकर भी हो रही माथापच्ची

    पवन शर्मा 
    सहारनपुर। सूबे में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही तमाम पार्टियों ने सियासी रणनीति को अमली जामा पहनाने की कवायद तेज कर दी है। सबसे ज्यादा बेचैनी सत्ताधारी समाजवादी पार्टी में है, जहां दिग्गज नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक दो खेमों में बंट चुके हैं। ऐसे हालात में, जहां दोनों खेमों का अलग-अलग चुनाव लड़ना तकरीबन तय माना जा रहा है वहीं, इस पूरे घटनाक्रम के मद्देनजर बसपा, भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम छोटे-बड़े दल नफा-नुकसान आंकने की कसरत में जुटे हैं। इसके लिए, 2012 में हुए चुनाव से जुड़े आंकड़ों को भी मौजूदा हालात के आइने में बेहद बारीकी से परखा जा रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि, इस बार सात चरणों में होने जा रहे यूपी चुनाव में आखिर किसके सिर यूपी के ‘सुल्तान‘ का ताज सजेगा। 
    2012 के विधानसभा चुनाव में तब बेहद रोचक तस्वीर उभरकर आई थी, जब सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और उसकी धुर विरोधी बहुजन समाज पार्टी को मिले कुल वोट का प्रतिशत काफी कम रहा था। 403 सीटों पर हुए चुनाव में तब सपा के 224 प्रत्याशियों ने जीत का परचम लहराया था जबकि, बसपा को बमुश्किल 80 सीट ही मिली थीं। लेकिन, इससे भी कहीं दिलचस्प झलक दोनों पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत में सामने आई थी। 401 सीटों पर चुनाव लड़ी सपा को तब कुल 29.13 प्रतिशत यानी दो करोड़ 20 लाख 90571 वोट मिले थे जबकि, बसपा ने चुनाव तो सभी 403 सीटों पर लड़ा लेकिन, उसे महज 80 सीटों से संतोष करना पड़ा था। 53 सीटों पर सपा और 51 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। बसपा को 25.91 प्रतिशत यानी, एक करोड़ 96 लाख 47303 वोट मिले थे। इस तरह, सूबे की इन दोनों प्रमुख पार्टियों के कुल वोट प्रतिशत में महज तीन प्रतिशत से कुछ अधिक का ही अंतर रहा था। जाहिर है कि, इस आंकड़े को लेकर मौजूदा हालात में बसपाई खेमा ही खुद को सबसे ज्यादा बेहतर स्थिति में अनुभव कर रहा होगा। खासकर, इसलिए क्योंकि इस बार सपा को न केवल ‘एंटी इनकमबेंसी फैक्टर‘ का सामना करना पड़ेगा बल्कि, दो अलग-अलग विपरीत धु्रवी खेमों में बंटने से भी पार्टी को बड़े नुकसान की आशंका नजर आने लगी है। 
    दूसरी ओर, केंद्र में करीब तीन वर्ष से सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी भी चुनावी समर को लेकर जोशोखरोश से लबरेज है। दरअसल, सूबे में नोटबंदी से लेकर ‘सपा संग्राम‘ तक पेश आए पूरे घटनाक्रम को पार्टी अपने हक में देख-परख रही है। जहां तक चुनावी प्रदर्शन का सवाल है तो 2012 में भाजपा ने कुल 403 सीटों में 398 पर ही प्रत्याशी खडे़ किए लेकिन, इनमें केवल 47 ही जीत हासिल कर सके थे। पार्टी को कुल मतदाताओं के 15 फीसदी यानी एक करोड़ 13 लाख 71,080 वोट मिले थे। जबकि, 229 भाजपा प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। कांग्रेस का प्रदर्शन 2012 में औसत ही रहा था। तब उसने 355 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन, 240 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। इस तरह, केवल 28 सीटों पर कांग्रेसी परचम लहराया जबकि, उसे कुल 11.65 प्रतिशत यानी 88 लाख 32,895 वोट हासिल हुए। इसके अलावा, राष्ट्रीय लोकदल ने 46 सीटों पर चुनाव  लड़कर नौ सीटों पर जीत दर्ज की और उसे महज 2.33 यानी, 17 लाख 84,258 वोट हासिल हुए। बीस रालोद प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। 208 सीटों पर चुनाव लड़ी पीस पार्टी को केवल चार सीट हासिल हुईं। हालांकि, उसका वोट प्रतिशत रालोद से कुछ अधिक 2.35 प्रतिशत यानी 17 लाख 84,258 वोट रहा। पीस पार्टी के 193 प्रत्याशियों को जमानत गंवानी पड़ी। 2012 में निर्दलीय प्रत्याशियों का संख्या प्रतिशत सर्वाधिक रहा और कुल 1691 उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में ताल ठोकी। लेकिन, इनमें 1681 प्रत्याशी जमानत बचाने में नाकामयाब रहे और केवल छह ने जीत का स्वाद चखा। निर्दलीय प्रत्याशियों का कुल वोट प्रतिशत 4.13 यानी 31 लाख 34,336 वोट रहा। 
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    किस तरफ झुकेगा वोटरों का पलड़ा
    सहारनपुर। चुनावी जंग में हमेशा की तरह इस बार भी तमाम पार्टियां अपने-अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ अन्य वर्गों को भी लुभाने की जुगत भिड़ा रही हैं। सबसे ज्यादा फोकस पिछड़ी जातियों व मुस्लिम मतदाताओं पर है, जिन्हें अपने पक्ष में खींचने की चिंता कांग्रेस और सपा को सर्वाधिक है। सूबे में पिछड़ी जाति के करीब 35 और मुस्लिम 18 प्रतिशत मतदाता हैं। 2007 विधानसभा चुनाव में बसपा ने दलित व सवर्ण वर्ग में खासकर, ब्राह्मण-वैश्यों के साथ मुस्लिम वोटरों का भी अच्छा समर्थन जुटाया था लेकिन, 2012 में इसी वर्ग की बेरुखी ने बसपा को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया। यही कारण है कि, इस चुनाव में बसपा ओबीसी के बाद सबसे ज्यादा 87 मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेलने जा रही है। वहीं, सपा का हाल फिलहाल बेहद चिंताजनक है। एक तरफ, एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर तो दूसरी तरफ, पार्टी में मचे घमासान के बाद हुए विभाजन ने एक किस्म से उसकी पूरी रणनीति पर पानी फेर दिया है। ऐसे में, अब सपा के वोट बैंक के सामने गहरा असमंजस है, जिसे दूर करने में पार्टी का कांग्रेस से संभावित गठजोड़ ही अब कुछ हद तक कारगर कदम साबित हो सकता है। कांग्रेस के लिए तो ऐसा होना और भी जरूरी है क्योंकि, वह करीब 27 साल से यूपी में ‘वनवास‘  भोग रही है। 1985 में आखिरी बार उसे 260 सीट मिली थीं जब, यूपी के रास्ते स्वर्गीय राजीव गांधी ने बेहद शानदार ढंग से दिल्ली की सल्तनत का रास्ता तय किया और प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन, 1989 से कांग्रेस का सूबे में बेहद खराब प्रदर्शन कर रही है। 
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    वोट प्रतिशत बढ़ने से भाजपा उत्साहित
    सहारनपुर। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 29.13 प्रतिशत, बसपा को 25.91 प्रतिशत और भाजपा को महज 17 प्रतिशत वोट मिले थे। 2007 में भी भाजपा को इतने ही मत हासिल हुए थे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उसने जबरदस्त प्रदर्शन किया। गजब की छलांग लगाते हुए भाजपा ने तब 42.1 प्रतिशत वोट हासिल करके सपा और बसपा, सूबे की दोनों मुख्य पार्टियों को सकते में डाल दिया था। सत्ताधारी होने के बावजूद सपा बमुश्किल 22.6 प्रतिशत वोट पर सिमट गई थी जबकि, बसपा को महज 19.5 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा था।
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