सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य की रचना की. लेकिन अपने सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है. विष्णु जी से सलाह लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का. पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ.
यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी.
ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. जैसे ही देवी ने वीणा बजाना शुरू किया, पूरे संसार में एक मधुर ध्वनि फैल गई. संसार के जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई.
तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. मां सरस्वती विद्या और बुद्धि प्रदान करती हैं. बसंत पंचमी के दिन इनकी उत्पत्ति हुई थी, इसलिए बसन्त पंचमी के दिन इनका जन्मदिन मनाया जाता है. मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा की जाती है और विद्या और बुद्धि का वरदान मांगा जाता है.
ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले पीतांबर धारण करके भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन माघ शुक्ल पंचमी को किया था. तब से बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का प्रचलन है. देवी सरस्वती की आराधना बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी जैसे अनेक नामों से होती है.
ज्योतिष के अनुसार पीले रंग का संबंध गुरु ग्रह से है जो ज्ञान, धन और शुभता के कारक माने जाते हैं.
हिंदू धर्म में पीला रंग बहुत शुभ माना जाता है, बसंत उत्सव मानने के लिए अपनी खुशी का इजहार करने के लिए बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के चावल बनाये जाते है. हल्दी व चन्दन का तिलक लगाया जाता है.
पीले लड्डू और केसरयुक्त खीर बना कर मां सरस्वती , भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है. पीले रंग के वस्त्र धारण कर पूजा, उपासना की जाती है आने वाला समय शुभ हो, उन्नति हो, जीवन में और सफलता मिले ऐसी प्रार्थना मां सरस्वती, भगवान कृष्ण और श्रीहरि विष्णु जी से की जाती है.
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