* चुनाव में पर्दे के पीछे चल रहा बड़ा ‘खेल‘
* रणनीतिकारों ने की कई क्षेत्रों में की ‘रेकी‘
* बारीकी से ‘चिन्हित‘ किए जा रहे मतदाता
* सोशल मीडिया पर की जा रही सौदेबाजी
* एक-एक वोट के लिए लगाए जा रहे दाम
* नोटबंदी में भी पानी की तरह बह रहा पैसा
पवन शर्मा
सहारनपुर। आपने अक्सर सुना होगा कि, सियासत के मैदान में सब कुछ जायज है। साम-दाम-दंड-भेद ! जीत का ताज सिर पर पहनने की खातिर यहां कोई भी तिकड़म भिड़ाने से कतई गुरेज नहीं किया जाता। लिहाजा, विधानसभा चुनाव की जंग में तमाम ‘महारथी‘ इसी तर्ज पर पर्दे के पीछे बड़े ‘खेल‘ को अंजाम दे रहे हैं। इसके तहत, बेहद सधे अंदाज में ‘वोट के बदले नोट‘ का लेन-देन शुरू हो गया है। तमाम पाबंदियों और पुलिस-प्रशासन की सख्ती के बावजूद सोशल मीडिया के जरिए यह पूरा सिलसिला तेजी से जोर पकड़ रहा है। नतीजतन, एक-एक वोट की सौदेबाजी में जुटे सियासी खेमों ने नोटबंदी की रत्ती भर परवाह न करते हुए नई करेंसी का अच्छा-खासा ‘स्टाॅक‘ जमा कर लिया है ताकि, इसकी मदद से समय रहते पुख्ता ‘इलेक्शन मैनेजमेंट‘ कर लिया जाए।
वेस्ट यूपी में चुनावी सफर हर दिन दिलचस्प मोड़ से गुजर रहा है। चूंकि, यहां के तकरीबन सभी जिलों में तय कार्यक्रम के मुताबिक, पहले और दूसरे चरण में ही मतदान होना है। लिहाजा, सभी सियासी खेमों में हवा का रुख जानने की गरज से अलग ही बेचैनी नजर आ रही है। राजनीति के जानकार भी मान रहे हैं कि बीते ज्यादातर मौकों की तर्ज पर इस बार भी विधानसभा चुनाव के सबसे बड़े घमासान में वेस्ट यूपी के मतदाता ही तय करेंगे कि, सूबे में दर-हकीकत किसकी लहर चल रही है ? यही कारण है कि, चुनाव प्रक्रिया के इस शुरुआती दौर में ही सभी प्रमुख पार्टियों की ओर से अपने-अपने सियासी महारथियों को स्पष्ट शब्दों में समय रहते ‘इलेक्शन मैनेजमेंट‘ कर लेने की हिदायत की गई है। इसके चलते, इन दिनों सुबह से लेकर शाम और रात से लेकर सुबह तक, तमाम इलाकों में एक-एक वोट की खातिर पर्दे के पीछे जमकर सौदेबाजी किए जाने का सिलसिला लगातार तेज हो रहा है। गांव-देहात में तो इसके लिए केवल नोट ही नहीं, बल्कि शराब से लेकर मनचाही दावत तक की ‘व्यवस्था‘ की गई है। जबकि, शहर में भी बड़े पैमाने पर लेन-देन की प्लानिंग को अमली जामा पहनाया जा रहा है।
‘जन लीडर‘ को मिली सटीक जानकारी पर यकीन करें तो, चूंकि इस बार नोटबंदी के चलते नई करेंसी का इंतजाम करने में सियासी खेमों को ऐन मौके पर तगड़ी मुश्किल पेश आने की आशंका थी। लिहाजा, तकरीबन सभी प्रमुख पार्टियों ने अब से बहुत पहले ही अपने-अपने ‘नेटवर्क‘ का भरपूर इस्तेमाल करते हुए अच्छी-खासी नई करेंसी का ‘जुगाड़‘ कर लिया था, जिसकी मदद से अब बेहद ‘सीक्रेसी‘ के साथ हर स्तर पर वोटरों को अपने पक्ष में लामबंद किया जा रहा है। इस काम में सोशल मीडिया से लेकर उन तमाम चेहरों की भी जमकर मदद ली जा रही है, जो अपने मजबूत जातीय जनाधार या सामाजिक सक्रियता के कारण आम लोगों के बीच गहरी पैठ रखते हैं। तमाम सियासी रणनीतिकारों ने ऐसे चेहरों को आगे करके बाकायदा हर इलाके की पुख्ता ‘रेकी‘ तक की है ताकि, न केवल अपने परंपरागत वोटों को जड़ों तक गहरे ‘इलेक्शन मैनेजमेंट‘ के बूते हर हाल में काबू में रखा जा सके बल्कि, संभव हो तो दूसरे प्रत्याशियों के वोट बैंक में सेंधमारी करने में भी कहीं किसी स्तर पर कोई कमी न छूटने पाए। इतना ही नहीं, जिन जाति-बिरादरियों ने इस बार अभी तक अपने समर्थन को लेकर ‘पत्ते‘ नहीं खोले हैं, उन्हें भी बिना वक्त गंवाए फौरी ‘मदद‘ तो पहुंचाई ही जा रही है वहीं चुनाव के बाद और भी ‘रसद‘ पहुंचाने का ‘लाॅलीपाप‘ थमाने में भी ये सियासी सिपहसालार कोई कसर नहीं छोड़ रहे। चुनावी रैलियों और अन्य गतिविधियों में भीड़ जुटाने की खातिर भी इसी ‘ट्रिक‘ का सहारा लिया जा रहा है। यह बात दीगर है कि, इतनी तगड़ी जद्दोजहद के बावजूद अभी तक आम मतदाताओं का वास्तविक ‘मूड‘ पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पा रहा, जिसे लेकर सियासी महारथियों के बीच अलग ही बेचैनी का आलम है। माना जा रहा है कि, तमाम किस्म के उतार-चढ़ाव से गुजरने के बाद ज्यादातर मतदाता अंतिम समय में ही तय करेंगे कि, इस बार चुनाव में किसका ‘पलड़ा‘ भारी रहेगा ?
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जेल और जुर्माने की सजा
सहारनपुर। यह अजब-गजब स्थिति तब है, जब इस बार निर्वाचन आयोग से लेकर पुलिस-प्रशासन की ओर से पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि, वोट के बदले नोट लेने पर सख्त कार्रवाई होगी। इसके तहत, यदि कहीं कोई उम्मीदवार या उसके समर्थक किसी व्यक्ति को वोट देने की खातिर रकम या अन्य कपड़े, गहने, अनाज या शराब सरीखा कोई उपहार देता है तो यह दंडनीय अपराध होगा। पैसा या उपहार लेने वाला व्यक्ति भी बराबर का दोषी होगा। इसके लिए नोट लेने-देने वाले को एक वर्ष जेल या जुर्माना अथवा, दोनों भुगतना पड़ सकता है। वहीं कोई व्यक्ति किसी प्रत्याशी या किसी वोटर को चोट पहुंचाने की धमकी देता है तो उसे भी एक वर्ष की जेल या जुर्माना हो सकता है। तमाम क्षेत्रों में इस गड़बड़झाले पर नजर रखने के लिए बाकायदा विशेष उड़नदस्ते भी बनाए गए हैं। लेकिन इक्का-दुक्का मामलों को छोड़कर इस पूरी कवायद का फिलहाल खास नजर कहीं नजर नहीं आ रहा।
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ReplyDeleteसियासत के मैदान में सब कुछ जायज है। साम-दाम-दंड-भेद !......bahut sunder likha hai
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