-- गठबंधन की निकली हवा, नहीं चल पा रहा कोई दांव -- ‘इमरान विरोधी लहर‘ के शिकार बन रहे मसूद अख्तर -- आजाद प्रत्याशी साद अली खान दे रहे तगड़ी चुनौती-- बसपा उम्मीदवार जगपाल सिंह की स्थिति भी बेहतर
मौ. फारुख
सहारनपुर। एक दौर में केवल जिले ही नहीं, बल्कि सूबे की सबसे ज्यादा ‘वीवीआईपी‘ रुतबे वाली विधानसभा हरौड़ा को अब सहारनपुर देहात सीट की नई पहचान हासिल हो चुकी है। यहां हो रहे चुनावी मुकाबले के बीच सबकी नजरें तमाम उतार-चढ़ाव से गुजरने के बाद कांग्रेस-सपा गठबंधन प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे मसूद अख्तर पर टिकी हैं, जो चौतरफा चुनौतियों के चक्रव्यूह में घिरे चुके हैं। आलम यह है कि, पूरे जिले में चल रही ‘इमरान विरोधी‘ लहर के बीच इस सीट पर मसूद अख्तर से कई गुना बेहतर स्थिति में आजाद उम्मीदवार साद अली खान तक हैं, जिन्हें फिलवक्त बसपा के जगपाल सिंह से कांटे की लड़ाई में माना जा रहा है।
सहारनपुर देहात सीट पर यूं कांग्रेस-सपा गठबंधन के प्रत्याशी मसूद अख्तर ने लंबी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस कोटे से टिकट हासिल किया लेकिन, अब चुनावी मुहिम के निर्णायक दौर में उनका हाल कमोबेश अपनी पार्टी की तरह ही ‘बेहाल‘ नजर आ रहा है, जो करीब 28 साल से यूपी की सत्ता से दूर है। हालांकि, मसूद अख्तर लगातार दावा कर रहे हैं कि, चुनाव में उन्हें सभी वर्गों का समर्थन हासिल है लेकिन, दैनिक ‘जन लीडर‘ की जमीनी पड़ताल में साफ हो गया कि, दर-हकीकत वे अपने ही वर्ग यानी गाड़ा बिरादरी तक का पर्याप्त समर्थन पाने में भी सिरे से नाकाम साबित हो रहे हैं। इतना ही नहीं, पूरे जिले में चल रही ‘इमरान मसूद विरोधी लहर‘ का शिकार बनकर यह सीट गंवाने का खतरा भी दिन-रात उनके सिर पर मंडरा रहा है। रही-सही कसर, लंबी तैयारी के बावजूद कांग्रेस कोटे से टिकट कटने के बावजूद आजाद उम्मीदवार के तौर पर ही बेहद मजबूती के साथ चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे सियासी दिग्गज नवाब मंसूर अली खां के नौजवान बेटे साद अली खान ने पूरी कर दी है, जो न केवल मसूद अख्तर और उनकी पार्टी के लिए ‘सिरदर्द‘ बने हुए हैं बल्कि, उन्हें तगड़ी चुनौती के साथ निर्णायक दौर में ‘पटखनी‘ देने का भी पूरा दमखम रखते हैं। जबकि, इसके ठीक समानांतर बसपा के जगपाल सिंह भी इस पूरे इलाके में अपनी पार्टी के मजबूत जनाधार की बदौलत कांग्रेस-सपा गठबंधन प्रत्याशी से चुनावी दौड़ में कोसों आगे नजर आ रहे हैं।
दरअसल, कांग्रेस-सपा गठबंधन की इतनी बुरी हालत अनायास ही नहीं हुई बल्कि, इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। मसलन, एक तरफ जहां इस सीट पर चुनाव से ऐन पहले गठबंधन को लेकर सपा और कांग्रेस के बीच लंबे समय तक चली खींचतान ने यहां दोनों ही पार्टियों की रणनीति को कदम-कदम पर नुकसान पहुंचाया वहीं, ऐसे हालात में टिकट कटने से नाराज बागियों की ओर से भी मसूद अख्तर के चुनाव अभियान को पलीता लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही। इतना ही नहीं, खुद भी कुछ माह पहले ही बसपा छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामने वाले मसूद अख्तर की अपनी सियासी छवि को भी कतई दमदार नहीं माना जा रहा, जिसका सीधा खामियाजा गठबंधन का झंडा-डंडा उठाकर चलने वालों को उठाना पड़ सकता है। एक और काबिल-ए-गौर पहलू यह भी है कि, जिस तरह पुराने और खानदानी कांग्रेसियों को नजरअंदाज करके एक किस्म से ‘बाहरी‘ उम्मीदवार के रूप में मसूद अख्तर को गठबंधन के परचम तले यहां चुनाव लड़वाने का निर्णय लिया गया, उससे अंदरुनी तौर पर दोनों ही पार्टियों के आम कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी है। इससे गठबंधन का चुनाव अभियान कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचना तो दूर, ठीक से सिरे भी नहीं चढ़ सका। जाहिर है कि, ऐसे हालात में इस बेहद ‘खोखले‘ गठबंधन की कमजोरी का सीधा लाभ न केवल उनके युवा प्रतिद्वंद्वी और आजाद उम्मीदवार साद अली खान को मिल रहा है बल्कि यहां के सिटिंग विधायक और बसपा प्रत्याशी जगपाल सिंह भी इस पूरी स्थिति को अपने लिए बेहद मुफीद मान रहे हैं। जबकि, भाजपा प्रत्याशी मनोज चौधरी यहां मसूद अख्तर की ही तरह ‘बाहरी‘ टैग लगा होने के चलते खास बेहतर स्थिति में नजर नहीं आ रहे। हालांकि, उनकी पूरी उम्मीद चुनावी जंग में ऐन मौके पर होने वाले वोटों के धुव्रीकरण पर टिकी हैं।
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...‘मैनेज्ड‘ है मसूद का चुनाव !
सहारनपुर। कांग्रेस-सपा गठबंधन प्रत्याशी मसूद अख्तर का चुनाव अभियान पर्दे के पीछे ही ‘मैनेज्ड‘ होने की चर्चा भी इन दिनों पूरे सहारनपुर देहात में जंगल की आग की तरह लगातार फैलती जा रही है। दरअसल, हाल में ही उन्होंने ‘जन लीडर‘ न्यूज़ पोर्टल से अपने वीडियो इंटरव्यू में पूछे गए एक सवाल के जवाब में साफ तौर पर यह कहा था कि, ‘उनका चुनाव पूरी तरह मैनेज्ड है और उनके लोग सब कुछ समय रहते मैनेज कर लेंगे ! ‘ जाहिर है कि, अब उनकी ओर से दिए गए ऐसे बयान और पूरे क्षेत्र में लगातार चल रही ‘इमरान मसूद विरोधी लहर‘ के नतीजे में कांग्रेस-सपा गठबंधन का साथ यहां न केवल ‘नापसंद‘ होने की प्रबल संभावना है बल्कि ऐसे में एक बार फिर सहारनपुर देहात सीट पर कांग्रेस का ‘हाथ‘ हर बार की तरह खाली ही रह जाएगा।
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