लखनऊ: जेल में बंद सपा नेता गायत्री प्रसाद प्रजापति को जमानत देने वाले जज ओम प्रकाश मिश्र को इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दिलीप बी भोंसले ने सस्पेंड कर दिया है. दरअसल राज्य सरकार ने POCSO कोर्ट के इस आदेश को चीफ जस्टिस के सामने चुनौती दी थी. चीफ जस्टिस ने POCSO कोर्ट के अतिरिक्त सेशन जज मिश्र को सस्पेंड करने के साथ ही प्रजापति को जमानत देने के ऑर्डर को अगले आदेश तक स्थगित करने का निर्देश दिया है.
चीफ जस्टिस ने अपने आदेश में लिखा 'जिस तरह से जानकार जज ने अपराध की गंभीरता को अनदेखा करते हुए आरोपी को जमानत देने में जल्दबाज़ी दिखाई, उससे हमें इन न्यायाधीश की मंशा पर संदेह है जो खुद 30/4/2017 को रिटायर हो रहे हैं.' इस मसले पर जस्टिस मिश्र ने जमानत देने के पीछे अपने आदेश में यह तर्क दिया था कि 'प्रजापति मामले में पीड़ित महिला ने 2014-16 के दौरान बलात्कार की शिकायत नहीं की. इससे पीड़ित महिला के दावे पर संदेह होता है.'
गौर करने वाली बात यह है कि जमानत देने के मसले पर जांच अधिकारी आयोग ने जस्टिस मिश्र के सामने अपनी राय रखने के लिए कुछ वक्त मांगा था. इसके अलावा अतिरिक्त जिला परिषद ने लिखित में जस्टिस मिश्र से इस मामले पर अपनी बात रखने के लिए तीन दिन का समय मांगा था. लेकिन बावजूद इसके जस्टिस मिश्र ने एक दिन के भीतर की प्रजापति को ज़मानत दे दी.
बताते चलें कि कि यूपी के चित्रकूट जिले की एक महिला ने गायत्री प्रजापति पर अक्टूबर 2014 से लेकर जुलाई 2016 तक गैंग रेप करने का आरोप लगाया है. जब गायत्री ने महिला की बेटी के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने की कोशिश की तो शिकायतकर्ता ने डीजीपी को चिट्ठी लिखी. इसके बाद 49 साल के इस पूर्व मंत्री और छह अन्य के खिलाफ महिला के साथ गैंग रेप और नाबालिग के साथ बलात्कार करने की कोशिश के मामले में एफआईआर दर्ज की गई.
गायत्री करीब एक महीने तक गिरफ्तारी से बचते रहे लेकिन इसी साल 15 मार्च को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गायत्री के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया था और वह देश से भाग न जाए इसलिए सभी शहरों के हवाई अड्डों पर अलर्ट जारी कर दिया गया था. बताते चलें कि प्रजापति, मुलायम सिंह यादव के नज़दीकी बताएं जाते हैं और उन्हें 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंत्री पद से हटा दिया था. हालांकि बाद में उनकी फिर से बहाली हो गई थी. प्रजापति ने हालिया हुए विधानसभा चुनाव अमेठी से लड़े थे जहां वह बीजेपी की गरिमा सिंह से हार गए.
चीफ जस्टिस ने अपने आदेश में लिखा 'जिस तरह से जानकार जज ने अपराध की गंभीरता को अनदेखा करते हुए आरोपी को जमानत देने में जल्दबाज़ी दिखाई, उससे हमें इन न्यायाधीश की मंशा पर संदेह है जो खुद 30/4/2017 को रिटायर हो रहे हैं.' इस मसले पर जस्टिस मिश्र ने जमानत देने के पीछे अपने आदेश में यह तर्क दिया था कि 'प्रजापति मामले में पीड़ित महिला ने 2014-16 के दौरान बलात्कार की शिकायत नहीं की. इससे पीड़ित महिला के दावे पर संदेह होता है.'
गौर करने वाली बात यह है कि जमानत देने के मसले पर जांच अधिकारी आयोग ने जस्टिस मिश्र के सामने अपनी राय रखने के लिए कुछ वक्त मांगा था. इसके अलावा अतिरिक्त जिला परिषद ने लिखित में जस्टिस मिश्र से इस मामले पर अपनी बात रखने के लिए तीन दिन का समय मांगा था. लेकिन बावजूद इसके जस्टिस मिश्र ने एक दिन के भीतर की प्रजापति को ज़मानत दे दी.
बताते चलें कि कि यूपी के चित्रकूट जिले की एक महिला ने गायत्री प्रजापति पर अक्टूबर 2014 से लेकर जुलाई 2016 तक गैंग रेप करने का आरोप लगाया है. जब गायत्री ने महिला की बेटी के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने की कोशिश की तो शिकायतकर्ता ने डीजीपी को चिट्ठी लिखी. इसके बाद 49 साल के इस पूर्व मंत्री और छह अन्य के खिलाफ महिला के साथ गैंग रेप और नाबालिग के साथ बलात्कार करने की कोशिश के मामले में एफआईआर दर्ज की गई.
गायत्री करीब एक महीने तक गिरफ्तारी से बचते रहे लेकिन इसी साल 15 मार्च को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गायत्री के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया था और वह देश से भाग न जाए इसलिए सभी शहरों के हवाई अड्डों पर अलर्ट जारी कर दिया गया था. बताते चलें कि प्रजापति, मुलायम सिंह यादव के नज़दीकी बताएं जाते हैं और उन्हें 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंत्री पद से हटा दिया था. हालांकि बाद में उनकी फिर से बहाली हो गई थी. प्रजापति ने हालिया हुए विधानसभा चुनाव अमेठी से लड़े थे जहां वह बीजेपी की गरिमा सिंह से हार गए.
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