निश्चित ही दैनिक जन लीडर उन समाचार पत्रों में शुमार हो रहा है जो कि नित दिन नई ऊंचाईयों को अर्जित कर रहे है। सहारनपुर का भी सौभग्य हैं कि जन लीडर ने उस दाग को यहां धोने का काम किया हैं, जिसमें कोई भी अखबार इस महानगर से आगे नहीं बढ सका।
आज पूरे जन लीडर ग्रुप को यह कहते हुए सौभाग्य महसूस हो रहा है कि एक-एक कदम कर हम दो साल पूरे कर चुके हैं। निश्चित है कि किसी भी समाचार पत्र को अपने आप को खड़ा करने के लिए उसी तरह की स्थिति से रूबरू होना पड़ता हैं, जिस प्रकार से एक पौधे के रोपण के बाद उसे संजोए रखना बड़ी चुनौती होती है। जिस तरह पौधे को खाद व पानी के साथ-साथ सुरक्षा व संरक्षण की दरकार होती हैं, उसी तरह से एक समाचार पत्र को भी आपसी सौहार्द, हिम्मत व ईमानदारी व सच्चाई पर तपना पड़ता हैं। सोभाग्य है कि दो वर्ष से इस स्थिति पर हम खरे साबित हुए है और तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गये है। इस बीच हम उन अपने सहयोगियों को भी याद कर रहे हैं, तथा प्रिय पाठकों का भी हम तहे दिल से शुक्रिया अदा करते है जिन्होंने जन लीडर को समय-समय लोगों बीच चर्चा कर लोगों को जोडऩे का काम किया है एवं भ्रष्टाचार पर चोट करने वाले जन लीडर अखबार को पूरा सहयोग किया हैं। तय है कि अब सरकारें हो या फिर संस्थाएं उन्हें आगे बढऩे के लिए अपना रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करना पड़ता है। ऐसे में हम भी दो वर्ष पूरे कर तीसरे वर्ष के पायदान में कदम रखने जा रहे है।
‘जन लीडऱ’ का साप्ताहिक से दैनिक का सफर
समाचार पत्रों की दुनिया मे आने और उसकी यात्रा मे समय तो अवश्य लगा और पहले संवाद प्रतिनिनिधि के रूप मे अपनी सेवायें प्रदान की और और संवाद प्रतिनिधि के समक्ष आने वाली समस्याओं और चुनौतियों से रूबरू हुआ। उसके बाद लखनऊ से प्रकाशित एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक के जिला संवाददाता के दायित्व का निर्वहन किया और समचार पत्रों मे आपसी व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा को गहराई से समझा। मेरठ से प्रकाशित एक क्षेत्रीय दैनिक से जुडक़र पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सामाजिक और राजनीतिक प्रष्ठभूमि को समझने का अवसर मिला और इसी बीच न जाने कब अपने स्वंय के प्रकाशन का बीज अंकुरित हों गया जो गाहे बगाहे कभी भी यक्ष प्रश्न के रूप मे सामने आया तो इस दिशा मे सोचना शुरू किया और प्रकाशन के लिये नीति निर्धारण करते-करते जनसाधारण की दशा और दिशा पर चिन्तन किया तो ‘जन लीडऱ’ नामक शीर्षक सामने आया और इसे ही जीवन का लक्ष्य बना लिया। जन लीडऱ के प्रकाशन कें साथ ही उसके लिये जब तिथि के निर्धारण का भी प्रश्न आया तों राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त 2014 दिन शुक्रवार नियत हुई जिसमे भी शहर के प्रबुद्ध जनो सहित प्रख्यात प्रतिष्ठानो एंव शुभचिन्तकों का अपेक्षा से अधिक सहयोग एंव मार्गदर्शन मिला जिसमे वरिष्ठ प़त्रकार श्री अरविन्द नैब से जंहा पत्रकारिता के मूल्यों को समझने और उन्हे आत्मसात करने को सौभाग्य प्राप्त हुआ वंही वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार श्री अखिलेश मिश्र प्रभाकर द्वारा साप्ताहिक जन लीडऱ का विमोचन कर आशीष प्रदान किया जिसका ही परिणाम यह रहा कि जन लीडर साप्ताहिक की विश्वसीनता और लोकप्रियता बढ़ी साथ ही जनसहभागिता बढ़ी तो लोगो ने अल्पावधि मे ही साप्ताहिक जन लीडऱ को हिन्दी दैनिक का रूप प्रदान करने का सुझाव दिया, लेकिन दैनिक समाचार पत्र की अपनी अपेक्षांओं और अपनी क्षमताओं के बीच जब गम्भीरता पूर्वक चिंतन किया तो लगा कि कंही रास्ते मे ही प्रयासों को सफलता नही मिली तो ऐसी स्थिति मे जग हंसाई ही होगी लेकिन अपनी क्षमताओं और अपने अनुभवों के आधार पर तथा सामाजिक मान्यताओं को ध्यान मे रखते हुए कि समाज उनका सहयोग जरूर करता है जिनके चिंतन और कार्यो मे समाज सेवा की सोच होती है तथा उनकी कथनी और करनी मे कोई अन्तर नही होता है। अन्तत: वह दिन भी आया जब जन लीडर हिन्दी दैनिक के रूप मे प्रकाशित हुआ और दिन सोमवार तथा तिथि 11 मई 2015 थी। प्रथम अंक पर जंहा लोगो का भरपूर सहयोग और समर्थन मिला वंही तीखी प्रतिक्रियाएं भी हुई लेकिन हतोत्साहित करने वालों को अपनी प्रेरणा मानते हुए हौसलों को धार देने का काम किया और बहुत से खट्टें,मीठे और कड़वे अनुभवों से जूझते हुए 11 मई 2017 को दो वर्ष की यात्रा पूर्ण की जिसमे पूर्व की भांति जंहा हतोत्साहित करने वाले धीरे-धीरे कम होते गये वंही सहयोगियों की संख्या बढ़ती गई और जनसहभागिता का बढऩा समाचार पत्र की रीढ़ बन गया जो क्रम जारी है।
विकासित हुआ सूचना तंत्र
समाचार पत्र की नीति जन सहभागिता बढ़ाने की रही जिसे दृष्टिगत रखते हुए जन लीडऱ को हिन्दी दैनिक बनाने का सबसे बडा लाभ यह हुआ कि संवाद प्रतिनिधि, जिला संवाददाता के रूप मे काम करते हुए जिसका अभाव सर्वाधिक खटकता था वह था सूचना तंत्र का कमज़ोर होना और दैनिक समाचार पत्र का संपादन प्रारम्भ करने के समय जो अनुभव सामने आये थे उसमे समाचार पत्र जगत मे कार्य करने वालों की विश्वसनीयता को सर्वाधिक महत्व की बात समझ मे आई जिसे गांठ बांध ली और विश्वसनीयता का सही अर्थ समाचार पत्र जगत मे आने के बाद ही ज्ञात हुआ और उसके लिये जरूरी बात यह भी रही कि प्रत्येक विषय जो समाज हित के होते हैं उस पर दृष्टिकोण भी साफ होना चाहिये जिससे अध्ययन की आवश्यकता को समझा और धीरे-धीरे अपने ज्ञान मे वृद्वि की और साथ ही साथ विश्वसनीय तंत्र विकसित करने मे सफलता अर्जित की। किसी शायर की इन पंक्तियों ने मानसिक रूप से डंावाडोल होने की स्थिति मे सहारा दिया-‘‘ जो सफर इखि़्तयार करते हैं, वो ही दरिया को पार करते हैं’’।
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