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    Thursday 2 February 2017

    बनाएंगे या ‘खेल‘ बिगाड़ देंगे साइलेंट वोटर ? - UP Election 2017 depends on silent voter


    * सहारनपुर शहर सीट पर रोचक मुकाबले के आसार  
    * प्रमुख सियासी खेमों में बेचैनी का आलम 
    * चुनावी बिसात पर डटे हैं तमाम महारथी 
    * शुरुआत से ही खामोशी ओढ़े हैं कई वर्ग 
    * समर्थन के लिए प्रत्याशी भिड़ा रहे जुगत 
    * ऐन मौके पर ही पत्ते खुलने की संभावना

    पवन शर्मा
    सहारनपुर। वेस्ट यूपी की महत्वपूर्ण सीटों में शुमार सहारनपुर नगर की चुनावी बिसात पर सधे अंदाज में तमाम दांव-पेच चले जा रहे हैं। इससे पूरा मुकाबला नित नए दिलचस्प मोड़ ले रहा है। लेकिन, मतदाताओं के बड़े हिस्से ने शुरुआत से ही जस की तस ‘खामोशी‘ ओढ़ी हुई है। इससे सियासी महारथियों के बीच अलग ही बेचैनी झलक रही है। लाख जतन के बावजूद वे इस सवाल का सटीक जवाब नहीं ढूंढ पा रहे हैं कि, मतदाताओं की अटूट खामोशी का यह सिलसिला उनका ‘खेल‘ बनाएगा या फिर बिगाड़ेगा ? वहीं, बीते दौर की हकीकत पर यकीन करें तो ‘साइलेंट वोटर‘ की पहचान रखने वाले इन तबकों के पत्ते इस बार भी मतदान से ऐन पहले ही खुलने के स्पष्ट आसार हैं।

    सूबे के सीमांत जिले सहारनपुर की सातों विधानसभा सीटों पर चुनावी सरगर्मी दिनोंदिन बढ़ रही है। नाम वापसी के बाद अब सभी सीटों पर 80 उम्मीदवार चुनाव मैदान में डटे हैं। नगर सीट पर सबसे ज्यादा 14 और देवबंद सीट पर आठ उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है। चूंकि, अब मतदान में बमुश्किल 12 दिन का वक्त बचा है, लिहाजा तमाम सियासी खेमों में अपनी-अपनी चुनावी रणनीति को अमली जामा पहनाने का सिलसिला जोरों पर है। इसके लिए, फिलहाल तमाम इलाकों में सघन जनसंपर्क का सहारा लिया जा रहा है। सभी छोटे-बड़े प्रत्याशियों के साथ उनके समर्थक समय रहते हवा का रुख अपनी ओर करने की खातिर एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। लेकिन, इतना कुछ करने के बावजूद मतदाताओं के एक बड़े हिस्से की खामोशी टूटने का नाम नहीं ले रही। इसे लेकर प्रत्याशियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें साफ झलकने लगी हैं।
    बात सहारनपुर नगर सीट की करें तो यहां जिले में सबसे अधिक 14 उम्मीदवारों के नाम जरूर सामने आए हैं लेकिन, दर-हकीकत पूरा मुकाबला कुल मिलाकर तीन प्रमुख चेहरों के बीच ही होने की उम्मीद है। इनमें, कांग्रेस समर्थित और सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे संजय गर्ग, भाजपा के राजीव गुम्बर और बसपा के मुकेश दीक्षित शामिल हैं। चूंकि, ये तीनों ही प्रत्याशी अलग-अलग जातियों की नुमाइंदगी करते हैं लिहाजा, फिलहाल हर कोई उन्हें मिलने वाले समर्थन को लेकर तमाम कयास लगा रहा है। जबकि, प्रत्याशियों के रणनीतिकार भरसक कोशिश कर रहे हैं कि, वे किसी भी तरह अपने परंपरागत मतदाताओं को थामे रखने के साथ ही दूसरे प्रत्याशियों या पार्टियों के वोट बैंक में भी यथासंभव ‘सेंध‘ लगा दें। लेकिन, अभी तक ऐसे प्रयास बहुत अधिक सफल होते नजर नहीं आ रहे।

    दूसरी ओर, मतदाताओं के कई वर्गों का हाल इस बार भी पिछले मौकों सरीखा ही है। मसलन, एक तरफ जहां व्यापारी और उद्यमी वर्ग का बड़ा हिस्सा एक बार फिर भाजपा के पक्ष में ही लामबंद नजर आ रहा है तो दूसरी ओर, सपा-कांग्रेस उम्मीदवार संजय गर्ग के करीबियों का स्पष्ट दावा है कि इस बार उन्हें कुछ ऐसे वर्गों का साथ मिलना तय है, जिसका रुझान पहले भाजपा की तरफ रहा है। इसी तरह, बसपा के परंपरागत वोटर माने जाने वाले तबके से भी उन्हें अच्छा समर्थन मिलने की उम्मीद है। वहीं, ऐसे तमाम दावों के बावजूद भाजपाई खेमा अपनी स्थिति को लेकर आश्वस्त है। उसके नेताओं का कहना है कि, 2014 के लोकसभा चुनाव की तर्ज पर एक बार फिर चुनाव में मोदी लहर का असर हर तरफ झलक रहा है। इसी के चलते, जो मतदाता अभी तक खामोश नजर आ रहे हैं, वे भी अंतिम समय में भाजपा के ही पक्ष में लामबंद हो जाएंगे। जबकि, चुनावी मुकाबले को तीसरा कोण दे रहे बसपा प्रत्याशी मुकेश दीक्षित और उनके सियासी सिपहसालार भी इस बार नया समीकरण तैयार करने पर बेहद बारीकी से ध्यान दे रहे हैं। इसके लिए, वे बसपा का परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले दलितों के साथ बड़े पैमाने पर मुस्लिम वर्ग का समर्थन हासिल करने की योजना पर तेजी से अमल कर रहे हैं ताकि, इन दोनों वर्गों की मदद से पहली दफा जिले की शहर सीट पर उनकी पार्टी के लिए जीत का रास्ता साफ हो सके।
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    चुनौतियों से घिरा है सफर
    सहारनपुर। नगर सीट पर छिड़े चुनावी घमासान के बीच मौजूदा दौर की तस्वीर को करीब से परखें तो इन तीनों सियासी महारथियों की ओर से लगातार किए जा रहे दावों से हकीकत का सफर अभी न केवल तमाम चुनौतियों से घिरा है बल्कि, हमेशा की तरह इस बार भी साइलेंट वोटरों की खामोशी चुनावी घमासान के अंतिम क्षणों तक बनी रहने के पुख्ता आसार हैं। इससे मुकाबला हर गुजरते पल के साथ रोचक रंगत में ढलता चला जा रहा है। वहीं, इन प्रत्याशियों का खेल बनाने या बिगाड़ने में अन्य उम्मीदवार भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। मसलन, शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रविंद्र अरोड़ा पंजाबी समुदाय से होने के चलते जहां इसी बिरादरी की नुमाइंदगी करने वाले भाजपा प्रत्याशी राजीव गुम्बर की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं तो वहीं, इस बार चुनाव मैदान में एआईएमआईएम प्रत्याशी तलत खान समेत चार मुस्लिम प्रत्याशियों की मौजूदगी के चलते सपा-कांग्रेस उम्मीदवार संजय गर्ग को मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव की चिंता सता रही है। जबकि, बसपा प्रत्याशी मुकेश दीक्षित के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि, वे पार्टी के परंपरागत मतदाताओं में शामिल दलित वर्ग को थामे रखने के साथ खुद अपनी बिरादरी यानी ब्राह्मणों का भी भरपूर समर्थन हासिल कर लें।

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