बाबरी विध्वंस केस में सीबीआई ने आज सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा. सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बाबरी विध्वंस मामले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और बाकी लोगों के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र के आरोप के मामले को फिर से देखा जाना चाहिए. सीबीआई ने आपराधिक केस चलाने की मांग की. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- दो साल में सुनवाई पूरी होने के आदेश देंगे.
सीबीआई ने कोर्ट से लखनऊ और रायबरेली केस की साझा सुनवाई की भी मांग की. सीबीआई ने लखनऊ कोर्ट में विशेष ट्रायल की मांग की. वहीं सीबीआई ने कोर्ट से 13 लोगों के खिलाफ केस चलाने की भी मांग की. सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि आपराधिक साजिश रचने के मामले में इन लोगों के नाम छूट गए थे.
कोर्ट को ये तय करना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई होनी चाहिए या नहीं, जिसमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी समेत कई नेताओं पर आपराधिक साजिश का आरोप है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद विध्वंस मामल में निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा था. जिसमें लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी समेत दूसरे आरोपियों को क्लीन चिट दी गई थी.
इसके पहले 22 मार्च को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने 6 अप्रैल की तारीख दी थी. अदालत ने सीबीआई और हाजी महबूब अहमद की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह तारीख तय की थी.
इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सीबीआई की याचिका पर 6 मार्च की सुनवाई में शीर्ष अदालत ने इन नेताओं के खिलाफ लगे आरोप हटाने के आदेश का परीक्षण करने का विकल्प खुला रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने विध्वंस मामले की सुनवाई में देरी पर भी चिंता जताई थी. कोर्ट ने तब साफ कहा था कि पहली नजर में इन नेताओं को आरोपों से बरी करना ठीक नहीं लगता. यह कुछ अजीब है. सीबीआई को इस मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ समय पर सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करनी चाहिए थी. निचली अदालत ने तकनीकी आधार पर इन नेताओं को बरी किया था, जिस पर हाइकोर्ट ने भी मुहर लगाई थी.
21 मई 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा था. जिसमें मस्जिद विध्वंस के आरोपी लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, राजस्थान के कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी समेत अन्य आरोपियों को निर्दोष पाया गया था. इन पर आपराधिक साजिश का का आरोप था.
सीबीआई ने कोर्ट से लखनऊ और रायबरेली केस की साझा सुनवाई की भी मांग की. सीबीआई ने लखनऊ कोर्ट में विशेष ट्रायल की मांग की. वहीं सीबीआई ने कोर्ट से 13 लोगों के खिलाफ केस चलाने की भी मांग की. सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि आपराधिक साजिश रचने के मामले में इन लोगों के नाम छूट गए थे.
कोर्ट को ये तय करना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई होनी चाहिए या नहीं, जिसमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी समेत कई नेताओं पर आपराधिक साजिश का आरोप है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद विध्वंस मामल में निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा था. जिसमें लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी समेत दूसरे आरोपियों को क्लीन चिट दी गई थी.
इसके पहले 22 मार्च को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने 6 अप्रैल की तारीख दी थी. अदालत ने सीबीआई और हाजी महबूब अहमद की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह तारीख तय की थी.
इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सीबीआई की याचिका पर 6 मार्च की सुनवाई में शीर्ष अदालत ने इन नेताओं के खिलाफ लगे आरोप हटाने के आदेश का परीक्षण करने का विकल्प खुला रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने विध्वंस मामले की सुनवाई में देरी पर भी चिंता जताई थी. कोर्ट ने तब साफ कहा था कि पहली नजर में इन नेताओं को आरोपों से बरी करना ठीक नहीं लगता. यह कुछ अजीब है. सीबीआई को इस मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ समय पर सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करनी चाहिए थी. निचली अदालत ने तकनीकी आधार पर इन नेताओं को बरी किया था, जिस पर हाइकोर्ट ने भी मुहर लगाई थी.
21 मई 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा था. जिसमें मस्जिद विध्वंस के आरोपी लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, राजस्थान के कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी समेत अन्य आरोपियों को निर्दोष पाया गया था. इन पर आपराधिक साजिश का का आरोप था.
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