नई दिल्ली: खुद पर लगे मानहानि के मुकदमे का खर्च सरकारी खजाने से उठाने के मामले में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने सफाई दी है। उनका कहना है कि यह सीएम की निजी कानूनी लड़ाई नहीं है क्योंकि दिल्ली सरकार की ओर से शहर के क्रिकेट असोसिएशन में भ्रष्टाचार के मामले की जांच के आदेश देने की वजह से मानहानि का यह मुकदमा हुआ है। इस वजह से दिल्ली सरकार के खजाने से इसका पेमेंट करने में कोई हर्जा नहीं है।
हालांकि, थोड़ा पीछे जाएं और कोर्ट के दस्तावेज पर नजर डालें तो पता चलता है कि केजरीवाल ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की तरफ से दाखिल मानहानि के मुकदमे को 'प्राइवेट इन कैरक्टर' या निजी बताया था। पिछले साल सीएम ने दिल्ली हाई कोर्ट के सामने अपने खिलाफ जेटली द्वारा आपराधिक मानहानि की शिकायत को इस आधार पर खत्म करने की मांग की थी कि वह निजी है। जस्टिस पीएस तेजी ने केजरीवाल की उस याचिका को खारिज कर दी थी, जो जेटली द्वारा दर्ज कराई गई आपराधिक मानहानि की शिकायत में ट्रायल कोर्ट की तरफ समन जारी किए जाने के खिलाफ दाखिल की गई थी। बीते साल 19 अक्टूबर को दिए कोर्ट के इस फैसले में सीएम की ओर से की यह मांग किस आधार पर की गई, उसका ब्योरा दर्ज है।
हाई कोर्ट के रेकॉर्ड में केजरीवाल की ओर से की गई मांग का ब्योरा इस तरह दर्ज है, 'वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता (केजरीवाल) की ओर से इस आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रोकने की मांग की गई है कि इस मामले में दीवानी मुकदमा समान तथ्यों और आरोपों के आधार पर दाखिल किया गया है। यह भी वजह दी गई है कि प्रतिवादी (जेटली) की ओर से शुरू की गई दोनों न्यायिक कार्यवाही में समानताएं हैं। मसलन-वादी और प्रतिवादी, घटनाएं, केस दाखिल करने की तारीख, कार्रवाई की वजह तक समान हैं। साथ ही दोनों ही कानूनी कार्यवाही की प्रकृति निजी है।' बता दें कि जेटली ने केजरीवाल के खिलाफ आपराधिक मानहानि के अलावा दीवानी मुकदमा दायर किया है। दीवानी केस के तहत उन्होंने हर्जाने की मांग की है, जबकि आपराधिक मानहानि के केस में वह केजरीवाल को सजा दिलाने के लिए मुकदमा लड़ रहे हैं।
कोर्ट ने केजरीवाल के आपराधिक अभियोजन पर स्टे देने की इस याचिका को खारिज करते हुए कहा था, 'हालांकि, यह सही है कि दोनों ही मामलों में वादी और प्रतिवादी समान हैं, लेकिन तथ्य यही है कि दोनों मामलों की प्रकृति अलग-अलग है। जहां तक दीवानी मुकदमे का सवाल है, उसमें प्रतिवादी संख्या 1 (जेटली) की ओर से अपनी प्रतिष्ठा के नुकसान का हवाला देते हुए हर्जाने की मांग की गई है। वहीं, दूसरा केस आपराधिक मानहानि का है। दोनों केसों पर विचार करने से एक ही अपराध में किसी को दो बार सजा होने का खतरा नहीं है।' कोर्ट की तरफ से यह भी साफ किया गया था कि मानहानि के लिए दीवानी और आपराधिक कार्यवाही एक साथ शुरू करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है।
हालांकि, थोड़ा पीछे जाएं और कोर्ट के दस्तावेज पर नजर डालें तो पता चलता है कि केजरीवाल ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की तरफ से दाखिल मानहानि के मुकदमे को 'प्राइवेट इन कैरक्टर' या निजी बताया था। पिछले साल सीएम ने दिल्ली हाई कोर्ट के सामने अपने खिलाफ जेटली द्वारा आपराधिक मानहानि की शिकायत को इस आधार पर खत्म करने की मांग की थी कि वह निजी है। जस्टिस पीएस तेजी ने केजरीवाल की उस याचिका को खारिज कर दी थी, जो जेटली द्वारा दर्ज कराई गई आपराधिक मानहानि की शिकायत में ट्रायल कोर्ट की तरफ समन जारी किए जाने के खिलाफ दाखिल की गई थी। बीते साल 19 अक्टूबर को दिए कोर्ट के इस फैसले में सीएम की ओर से की यह मांग किस आधार पर की गई, उसका ब्योरा दर्ज है।
हाई कोर्ट के रेकॉर्ड में केजरीवाल की ओर से की गई मांग का ब्योरा इस तरह दर्ज है, 'वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता (केजरीवाल) की ओर से इस आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रोकने की मांग की गई है कि इस मामले में दीवानी मुकदमा समान तथ्यों और आरोपों के आधार पर दाखिल किया गया है। यह भी वजह दी गई है कि प्रतिवादी (जेटली) की ओर से शुरू की गई दोनों न्यायिक कार्यवाही में समानताएं हैं। मसलन-वादी और प्रतिवादी, घटनाएं, केस दाखिल करने की तारीख, कार्रवाई की वजह तक समान हैं। साथ ही दोनों ही कानूनी कार्यवाही की प्रकृति निजी है।' बता दें कि जेटली ने केजरीवाल के खिलाफ आपराधिक मानहानि के अलावा दीवानी मुकदमा दायर किया है। दीवानी केस के तहत उन्होंने हर्जाने की मांग की है, जबकि आपराधिक मानहानि के केस में वह केजरीवाल को सजा दिलाने के लिए मुकदमा लड़ रहे हैं।
कोर्ट ने केजरीवाल के आपराधिक अभियोजन पर स्टे देने की इस याचिका को खारिज करते हुए कहा था, 'हालांकि, यह सही है कि दोनों ही मामलों में वादी और प्रतिवादी समान हैं, लेकिन तथ्य यही है कि दोनों मामलों की प्रकृति अलग-अलग है। जहां तक दीवानी मुकदमे का सवाल है, उसमें प्रतिवादी संख्या 1 (जेटली) की ओर से अपनी प्रतिष्ठा के नुकसान का हवाला देते हुए हर्जाने की मांग की गई है। वहीं, दूसरा केस आपराधिक मानहानि का है। दोनों केसों पर विचार करने से एक ही अपराध में किसी को दो बार सजा होने का खतरा नहीं है।' कोर्ट की तरफ से यह भी साफ किया गया था कि मानहानि के लिए दीवानी और आपराधिक कार्यवाही एक साथ शुरू करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है।
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