अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्द सुनवाई संभव नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दोनों पक्षकारों को और समय देने की जरुरत है. पक्षकार वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि स्वामी कोई पार्टी नहीं हैं, मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करने दें. उन्होंने कहा कि किसी तीसरे व्यक्ति के कहने पर जल्द सुनवाई नहीं हो सकती, यह एक बड़ा फैसला है.
यह अर्जी बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दाखिल की है. पिछली सुनवाई में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की बेंच ने मामले से जुड़े पक्षकारों से कहा था कि आपसी सहमति से मसले का हल निकलाने की कोशिश की जानी चाहिए. अदालत ने यह भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट के जज इस बातचीत की मध्यस्थता कर सकते हैं. अदालत ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को आज यानी 31 मार्च तक की समय सीमा दी थी.
यहां यह गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीमकोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं.
अदालत की इस टिप्पणी का केंद्र सरकार ने भी स्वागत किया था. केंद्रीय कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा था कि वो अदालत की इच्छा का स्वागत करते हैं और इस विवाद को अदालत से बाहर सुलझाने की कोशिश करेंगे.
इस विवाद को कोर्ट से बाहर सुलझाने की कोशिशें पह्ले भी हुई हैं. अलग-अलग सरकारों और प्रधानमंत्रियों ने 9 बार इस मामले में सुलह करवाने की कोशिशें की लेकिन हर बार असफलता हाथ लगी. 3 प्रधानमंत्रियों ने इस मामले को सुलझाने की कोशिशें की हैं.
यह अर्जी बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दाखिल की है. पिछली सुनवाई में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की बेंच ने मामले से जुड़े पक्षकारों से कहा था कि आपसी सहमति से मसले का हल निकलाने की कोशिश की जानी चाहिए. अदालत ने यह भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट के जज इस बातचीत की मध्यस्थता कर सकते हैं. अदालत ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को आज यानी 31 मार्च तक की समय सीमा दी थी.
यहां यह गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीमकोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं.
अदालत की इस टिप्पणी का केंद्र सरकार ने भी स्वागत किया था. केंद्रीय कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा था कि वो अदालत की इच्छा का स्वागत करते हैं और इस विवाद को अदालत से बाहर सुलझाने की कोशिश करेंगे.
इस विवाद को कोर्ट से बाहर सुलझाने की कोशिशें पह्ले भी हुई हैं. अलग-अलग सरकारों और प्रधानमंत्रियों ने 9 बार इस मामले में सुलह करवाने की कोशिशें की लेकिन हर बार असफलता हाथ लगी. 3 प्रधानमंत्रियों ने इस मामले को सुलझाने की कोशिशें की हैं.
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