आंध्र प्रदेश में छह न्यूक्लियर रिएक्टर लगाने की भारत की कोशिश पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. अमेरिका की न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने वाली कंपनी वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक दिवालिया हो सकती है. बुधवार को वैश्विक परमाणु क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वेस्टिंगहाउस ने दिवालिया से बचने के लिए याचिका दायर की है. भारत ने अमेरिका के साथ आंध्र प्रदेश में छह परमाणु रिएक्टर बनाने का करार किया है. ऐसे में यह भारत के परमाणु कार्यक्रम के लिए झटका माना जा रहा है. जापान की तोशिबा कंपनी वेस्टिंगहाउस की पैरेंटल कंपनी है.
साल 2008 में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग को लेकर ऐतिहासिक करार हुआ था. इसके बाद दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस परमाणु कार्यक्रम को लागू करने के लिए मापदंड तैयार किए. दोनों पक्ष जून 2017 तक आंध्र प्रदेश में परमाणु रिएक्टर बनाने के समझौते को अंतिम रूप देने को तैयार हुए थे. इन परमाणु रिएक्टरों को वेस्टिंगहाउस और न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) को बनाना है.
पीएम मोदी और ओबामा परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जवाबदेही तय करने और इनकी निगरानी को लेकर लंबे समय से चले आ रहे मतभेद को दूर कर लिया था. भारत इस बात पर सहमत हुआ कि वह इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी से न्यूक्लियर रिएक्टर की कड़ी जांच कराएगा. इसके जवाब में अमेरिका ने भारत के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी करने के अपने कदम को पीछे खींच लिया. भोपाल गैस दुर्घटना से सबक लेते हुए भारत ने परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदारी तय करने पर सख्ती दिखाई.
भारत ने कहा कि परमाणु दुर्घटना होने पर इसको संचालित करने वाली कंपनी जिम्मेदार होंगी. वह इसके मुआवजे की भरपाई करेगी. इसके बाद उपकरणों की आपूर्ति करने वाली कंपनी का दायित्व होगा. इसके अलावा भारत की ओर गठित बीमा कंपनी 15 सौ करोड़ रुपये का बीमा कवर देगी. दरअसल, भारत 2024 तक अपनी परमाणु क्षमता को बढ़ाकर तीन गुना करना चाहता है. वेस्टिंगहाउस श्रीकाकुलम जिले में दो हजार एकड़ में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने वाली थी, जिसका संचालन NPCIL करेगी. हाल ही में वेस्टिंगहाउस के सीईओ जोस गुजिएर्रेज NPCIL और परमाणु ऊर्जा विभाग से बातचीत करने को लेकर भारत आए थे. भारतीय इंजीनियरिंग ग्रुप लार्जन एंड टुब्रो ने वेस्टिंगहाउस के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किया है. यह इंजीनियरिंग कंपनी मामले में भागीदार हो सकती है.
वेस्टिंगहाउस को अमेरिका में चल रहे परमाणु प्रोजेक्टों में भारी भरकम नुकसान उठाना पड़ा है. ऐसे में कंपनी को दिवालिया घोषित किया जा सकता है. फिलहाल कंपनी ने दिवालिया घोषित होने से बचने के लिए याचिका दायर की है. अभी तक माना जा रहा है कि घाटे से जूझने के चलते वेस्टिंगहाउस आंध्र प्रदेश में लगने वाले न्यूक्लियर रिएक्टर के लिए सिर्फ उपकरण उपलब्ध करा सकती है. हालांकि अब इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
साल 2008 में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग को लेकर ऐतिहासिक करार हुआ था. इसके बाद दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस परमाणु कार्यक्रम को लागू करने के लिए मापदंड तैयार किए. दोनों पक्ष जून 2017 तक आंध्र प्रदेश में परमाणु रिएक्टर बनाने के समझौते को अंतिम रूप देने को तैयार हुए थे. इन परमाणु रिएक्टरों को वेस्टिंगहाउस और न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) को बनाना है.
पीएम मोदी और ओबामा परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जवाबदेही तय करने और इनकी निगरानी को लेकर लंबे समय से चले आ रहे मतभेद को दूर कर लिया था. भारत इस बात पर सहमत हुआ कि वह इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी से न्यूक्लियर रिएक्टर की कड़ी जांच कराएगा. इसके जवाब में अमेरिका ने भारत के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी करने के अपने कदम को पीछे खींच लिया. भोपाल गैस दुर्घटना से सबक लेते हुए भारत ने परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदारी तय करने पर सख्ती दिखाई.
भारत ने कहा कि परमाणु दुर्घटना होने पर इसको संचालित करने वाली कंपनी जिम्मेदार होंगी. वह इसके मुआवजे की भरपाई करेगी. इसके बाद उपकरणों की आपूर्ति करने वाली कंपनी का दायित्व होगा. इसके अलावा भारत की ओर गठित बीमा कंपनी 15 सौ करोड़ रुपये का बीमा कवर देगी. दरअसल, भारत 2024 तक अपनी परमाणु क्षमता को बढ़ाकर तीन गुना करना चाहता है. वेस्टिंगहाउस श्रीकाकुलम जिले में दो हजार एकड़ में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने वाली थी, जिसका संचालन NPCIL करेगी. हाल ही में वेस्टिंगहाउस के सीईओ जोस गुजिएर्रेज NPCIL और परमाणु ऊर्जा विभाग से बातचीत करने को लेकर भारत आए थे. भारतीय इंजीनियरिंग ग्रुप लार्जन एंड टुब्रो ने वेस्टिंगहाउस के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किया है. यह इंजीनियरिंग कंपनी मामले में भागीदार हो सकती है.
वेस्टिंगहाउस को अमेरिका में चल रहे परमाणु प्रोजेक्टों में भारी भरकम नुकसान उठाना पड़ा है. ऐसे में कंपनी को दिवालिया घोषित किया जा सकता है. फिलहाल कंपनी ने दिवालिया घोषित होने से बचने के लिए याचिका दायर की है. अभी तक माना जा रहा है कि घाटे से जूझने के चलते वेस्टिंगहाउस आंध्र प्रदेश में लगने वाले न्यूक्लियर रिएक्टर के लिए सिर्फ उपकरण उपलब्ध करा सकती है. हालांकि अब इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
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