अयोध्या: राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले में देश की सर्वोच्चय अदालत ने दोनों पक्षों से कहा है कि वे इस मामले को आपसी बातचीत से सुलझाएं. इसके लिए उन्होंने 31 मार्च तक का समय भी दिया है. 21 मार्च को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजीआई) जेएस केहर ने दोनों पक्षों को बातचीत का एक और मौका दिया है. 1986 के बाद से ये 11वां मौका है जब इस मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की गई है. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का यह मामला कितना पेचीदा है. यहां तक की कोर्ट भी इस मामले में फैसला सुनाने से बचती रही है. ऐसे में कई लोगों के जेहन में सवाल उठ रहा होगा कि इस मामले की सुनवाई करने वाले जज इस विवादित जगह के बारे में क्या सोचते होंगे. तो आइए जानें इस मामल में 2010 में फैसला सुनाने वाली इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों में से एक जस्टिस एस यू खान अपने फैसले की शुरुआत किन शब्दों से की थी.
जस्टिस एस यू खान ने अपने फैसले की शुरुआत करते हैं, 'यहां 1500 वर्ग गज जमीन का एक टुकड़ा है जहां देवता भी गुजरने से डरते हैं. यह अनगिनत बारूदी सुरंगों, लैंड माइंस से भरा हुआ है. हमें इसे साफ करने की जरूरत है. कुछ भले लोगों ने हमें सलाह दी है कि कोशिश भी मत करो. हम भी नहीं चाहते हैं कि किसी मूर्ख की तरह जल्दबाजी करें और खुद को उड़ा लें. बावजूद इसके हमें जोखिम तो लेना ही है. किसी ने कहा है कि जीवन में सबसे बड़ा जोखिम होता है कि मौका आने पर जोखिम ही न लिया जाए. एक बार देवताओं को भी इंसानों के आगे झुकने के लिए मजबूर किया गया था. ये एक ऐसा ही मौका है. हम सफल हुए हैं या नाकाम रह गए हैं? अपने केस में कोई जज नहीं हो सकता है. इस तरह ये रहा वो फैसला जिसका पूरा देश सांस रोके इंतजार कर रहा है.
जस्टिस एस यू खान ने अपने फैसले की शुरुआत करते हैं, 'यहां 1500 वर्ग गज जमीन का एक टुकड़ा है जहां देवता भी गुजरने से डरते हैं. यह अनगिनत बारूदी सुरंगों, लैंड माइंस से भरा हुआ है. हमें इसे साफ करने की जरूरत है. कुछ भले लोगों ने हमें सलाह दी है कि कोशिश भी मत करो. हम भी नहीं चाहते हैं कि किसी मूर्ख की तरह जल्दबाजी करें और खुद को उड़ा लें. बावजूद इसके हमें जोखिम तो लेना ही है. किसी ने कहा है कि जीवन में सबसे बड़ा जोखिम होता है कि मौका आने पर जोखिम ही न लिया जाए. एक बार देवताओं को भी इंसानों के आगे झुकने के लिए मजबूर किया गया था. ये एक ऐसा ही मौका है. हम सफल हुए हैं या नाकाम रह गए हैं? अपने केस में कोई जज नहीं हो सकता है. इस तरह ये रहा वो फैसला जिसका पूरा देश सांस रोके इंतजार कर रहा है.
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