एग्जिट पोल आते ही अखिलेश कैंप में बेचैनी नजर आने लगी है. एक ओर जहां पार्टी के वरिष्ठ नेता रविदास महरोत्रा ने सपा के लिए कांग्रेस को 'हानिकारक' बताया वहीं दूसरी ओर सपा के कद्दावर नेता आजम खान ने मीडिया से बातचीत में कहा कि अगर समाजवादी पार्टी हारेगी तो अखिलेश दोषी नहीं होंगे. इन दोनों नेताओं के ताजा बयानों पर गौर करें तो ऐसा लग रहा है कि सपा ने यूपी में रिजल्ट आने से पहले ही हार स्वीकार कर ली है.
इसी बीच बीबीसी से हुई खास बातचीत में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी यहां तक कह दिया कि "कोई भी यह नहीं चाहेगा कि यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू हो और बीजेपी रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाए." मतलब साफ है कि अगर सपा जादुई आंकड़े (202 सीट) तक नहीं पहुंच पाती है तो यूपी का 'बबुआ' समर्थन की आस में अपनी 'बुआ' की ओर देखता नजर आएगा.
मायावती के रिश्ते सपा की पहली पीढ़ी से चाहे जैसे भी रहे हों लेकिन अखिलेश ने मायावती के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कभी नहीं किया और न ही उस ओर से मायावती ने. निशाना साधने के लिए अखिलेश मायावती को बुआ बुलाते रहे तो मायावती पलटवार के तौर पर अखिलेश को बबुआ ही पुकारती रहीं. चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों की भाषा ज्यादा तल्ख नहीं हुई.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यूपी में बीजेपी को सत्तासीन होने से रोकने के लिए अन्य राजनैतिक पार्टियां कुछ भी करने को तैयार हो सकती हैं. अखिलेश और मायावती के हालिया बयान इसी ओर इशारा करते हैं. बिहार चुनावों में हम ऐसा होते देख चुके हैं.
गठबंधन की सरकार यूपी के लिए कोई नई बात नहीं है. पिछली दो सरकारों को छोड़ दें तो उससे पहले मायावती तीन बार और मुलायम सिंह यादव एक बार गठबंधन की सरकार के मुखिया बन चुके हैं. हालांकि गठबंधन की सरकार ने कभी भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है.
पहले भी एक साथ आ चुकी है सपा-बसपा अब तक एक बार यूपी की चिर प्रतिद्वंदी पार्टियों सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ है, बात 1993 में हुए चुनावों की है. चुनाव में इस गठबंधन की जीत हुई और मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुखिया बने. लेकिन, आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कस लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी. मायावती के इस कदम से मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई. सरकार बचाने के लिए जोड़-घटाव किए गए. अंत में जब बात नहीं बनी तो नाराज सपा के कार्यकर्ता और तमाम नेता गुस्से में लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए. उसके बाद जो हुआ उसे आज 'गेस्ट हाउस कांड' के नाम से जाना जाता है. गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बीएसपी में 36 का आंकड़ा हो गया.
इसी बीच बीबीसी से हुई खास बातचीत में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी यहां तक कह दिया कि "कोई भी यह नहीं चाहेगा कि यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू हो और बीजेपी रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाए." मतलब साफ है कि अगर सपा जादुई आंकड़े (202 सीट) तक नहीं पहुंच पाती है तो यूपी का 'बबुआ' समर्थन की आस में अपनी 'बुआ' की ओर देखता नजर आएगा.
मायावती के रिश्ते सपा की पहली पीढ़ी से चाहे जैसे भी रहे हों लेकिन अखिलेश ने मायावती के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कभी नहीं किया और न ही उस ओर से मायावती ने. निशाना साधने के लिए अखिलेश मायावती को बुआ बुलाते रहे तो मायावती पलटवार के तौर पर अखिलेश को बबुआ ही पुकारती रहीं. चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों की भाषा ज्यादा तल्ख नहीं हुई.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यूपी में बीजेपी को सत्तासीन होने से रोकने के लिए अन्य राजनैतिक पार्टियां कुछ भी करने को तैयार हो सकती हैं. अखिलेश और मायावती के हालिया बयान इसी ओर इशारा करते हैं. बिहार चुनावों में हम ऐसा होते देख चुके हैं.
गठबंधन की सरकार यूपी के लिए कोई नई बात नहीं है. पिछली दो सरकारों को छोड़ दें तो उससे पहले मायावती तीन बार और मुलायम सिंह यादव एक बार गठबंधन की सरकार के मुखिया बन चुके हैं. हालांकि गठबंधन की सरकार ने कभी भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है.
पहले भी एक साथ आ चुकी है सपा-बसपा अब तक एक बार यूपी की चिर प्रतिद्वंदी पार्टियों सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ है, बात 1993 में हुए चुनावों की है. चुनाव में इस गठबंधन की जीत हुई और मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुखिया बने. लेकिन, आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कस लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी. मायावती के इस कदम से मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई. सरकार बचाने के लिए जोड़-घटाव किए गए. अंत में जब बात नहीं बनी तो नाराज सपा के कार्यकर्ता और तमाम नेता गुस्से में लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए. उसके बाद जो हुआ उसे आज 'गेस्ट हाउस कांड' के नाम से जाना जाता है. गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बीएसपी में 36 का आंकड़ा हो गया.
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