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    Tuesday 21 March 2017

    अवैध बूचड़खाने बंद करने की मुहिम से मीट कारोबारियों में मच गया हड़कंप - slaughter house seal side effects on up people

    यूपी में अवैध बूचड़खाने बंद करने की मुहिम से मीट कारोबारियों में हड़कंप मच गया है. चुनाव से पहले बीजेपी ने संकल्प पत्र में अवैध बूचड़खानों को बंद करने का वादा किया था. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनते ही बीजेपी के इस वादे को और मजबूती मिल गई है. चुनाव रैलियों से लेकर दूसरे सार्वजनिक मंचों पर योगी आदित्यनाथ बूचड़खानों को बंद करने की वकालत करते रहे हैं. यही वजह है कि रविवार को जैसे ही योगी ने सीएम पद की शपथ ली उसके बाद बूचड़खानों पर गाज गिरनी शुरु हो गई. यूपी के अलग अलग इलाकों में बूचड़खाने सील किए जा रहे हैं. हालांकि सरकार की तरफ से औपचारिक तौर पर इस संबंध में कोई आदेश नहीं दिया गया है.

    यूपी में अवैध बूचड़खाने बंद करना बीजेपी के लिए भले ही चुनावी मुद्दे को पूरा करने का मामला हो. लेकिन ऐसा होने से लाखों लोगों के रोजगार का संकट भी खड़ा हो जाएगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में फिलहाल 40 बूचड़खाने वैध हैं. ये वो बूचड़खाने हैं जिन्हें केंद्र सरकार की एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) से बाकायदा लाइसेंस मिला हुआ है. जबकि एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में अवैध बूचड़खानों की संख्या साढ़े तीन सौ से ज्यादा है. बता दें कि यूपी देश में भैंस के मीट का सबसे बड़ा निर्यातक है.

    पश्चिमी यूपी की बात की जाए तो मेरठ, गाजियाबाद और अलीगढ़ जिलों में बड़ी संख्या में बूचड़खाने चलाए जाते हैं. मेरठ शहर में ही वैध बूचड़खानों की आड़ में बड़े पैमाने पर अवैध बूचड़खाने चलाए जा रहे हैं. इन अवैध बूचड़खानों से हजारों की संख्या में लोगों का रोजगार जुड़ा है. ऐसे में अगर ये बूचड़खाने बंद कर दिए जाते हैं तो बड़ी तादाद में लोगों पर रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा.

    वाराणसी में भी अवैध बूचड़खानों को बंद करने की कार्रवाई की जा रही है. वाराणसी के जैतपुरा इलाके में मंगलवार को पुलिस ने एक अवैध बूचड़खाना बंद कराया. यहां भी बूचड़खानों से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं. करीब 15 हजार लोगों का रोजगार बूचड़खानों से जुड़ा है. इनमें ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो पुश्तों से मीट काटने का काम करते आ रहे हैं. ऐसे में इस काम के अलावा उनके पास रोजगार का विकल्प बचता नजर नहीं आता है.

    कानपुर को यूपी की आर्थिक राजधानी माना जाता है. कानपुर से सबड़े बड़ा कारोबार चमड़े का होता है. चमड़े की बेल्ट से लेकर बैग और जूते कानपुर में बनते हैं. देशभर में कच्चा चमड़ा भी कानपुर से जाता है. कानपुर से करीब हर साल 12 अरब डॉलर का चमड़े का सामान विदेशों को निर्यात किया जाता है. यहां सिर्फ 6 बूचड़खाने वैध हैं जबकि अवैध बूचड़खानों की संख्या पचास से ज्यादा है. अकेले कानपुर से हर रोज करीब 50 करोड़ के गोश्त का व्यापार होता है.

    बूचड़खानों को बंद करने का फैसला सिर्फ कारोबारियों या मजदूरों को ही प्रभावित नहीं करेगा. बल्कि किसानों पर भी इसका व्यापक असर पड़ेगा. 2012 के पशुधन जनसंख्या के अनुसार यूपी में भैंस और गाय की तादाद में भारी इजाफा हुआ है. 2007 के मुकाबले भैंसों की संख्या में 28 फीसदी बढ़ोतरी हुई जबकि गाय की संख्या में 10 फीसदी इजाफा हुआ. बिना दूध वाली गाय और भैंस को पालना किसान के लिए बड़ी चुनौती होती है. आमतौर पर किसान उन्हीं मवेशियों को अपने पास रखते हैं जो या तो खेती के काम में आते हैं या जो दुधारू होते हैं. बाकी दूसरे मवेशियों को किसान बेच देते हैं. ऐसे मवेशियों को चारा खिलाना भी किसानों के लिए बड़ा संकट माना जाता है.


    पुलिस प्रशासन ने अवैध बूचड़खाने बंद कराने शुरू कर दिए हैं. सोमवार को गजरौला में जब पुलिस अवैध मीट की दुकान बंद कराने पहुंची, तो दुकानदार ने कैरोसीन डालकर खुद को जलाने की कोशिश की. हालांकि पुलिस ने उसे तुरंत दबोच लिया. इसके बाद मंगलवार को इलाहाबाद में दो बूचड़खाने सील कराए गए. जबकि गाजियाबाद के केला भट्टा इलाके में पुलिस ने 15 बूचड़खाने बंद कराए.


    यूपी में अवैध बचड़खाने बंद होने जनता पर व्यापक असर पड़ेगा. ऐसे में योगी आदित्यनाथ को अपने चुनावी वादे पूरे करने के साथ इस कदम से प्रभावित जनता के लिए रोजगार के विकल्प भी तलाशने होंगे.
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