-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी नाथ की सोच से मिल रहे संकेत-सख्ती जात-पात या धर्म पर नहीं असामाजिक तत्वों पर होगी
रामभक्त वालिया
सहारनपुर। उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्य नाथ को सौंपे जाने पर समाज में एक अजीब सा माहोल व्याप्त हो गया है। एक विशेष सम्प्रदाय के लोग अपने भविष्य के बारे में तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे है, दूसरी और बहुसंख्यक ये समझ रहे है कि उन्हें जैसे योगी के रूप में हिंदू कट्टरवादी शक्ति मिल गई हो। योगी की विचारधारा, कार्यप्रणाली व अभी तक उनके द्वारा दिये गए कट्टरवादी बयानों के आधार पर ही ऐसा महसूस किया जा रहा है। गहराई से सोचें तो ऐसा कुछ नहीं होगा जिसमें एक विशेष सम्प्रदाय पर अनावश्यक दबाव बनेगा। दबाब बनेगा जरूर लेकिन उन तत्वों पर जो समाज में अराजकता फैलाने के साथ असुरक्षा का माहौल पैदा करते है। सुरक्षा देना सरकार का दायित्व बनाता है। सुरक्षा का मसला प्रत्येक नागरिक के लिए है चाहे व किसी भी जाति व धर्म से ताल्लुक रखता है।
शनिवार को जैसे ही योगी आदित्य नाथ के नाम की उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए घोषणा हुई तो एक बार को चारों और सन्नाटा सा पसर गया था। दिलचस्प बात ये हैं कि मुस्लिम क्षेत्रों में ही नहीं हिंदू समुदाय में भी एक बड़ा तबका ये सोचने को मजबूर हो गया कि योगी नाथ की कट्टवादी हिंदू नेता की छवि व सोच के कारण प्रदेश का आगे कैसा माहोल होगा? योगी नाथ के समर्थकों ने एक बार को झुंड़ बनाकर आधी रात तक सडक़ों पर उतर नारेबाजी भी की, कही-कही कुछ आपत्तिजनक नारेबाजी भी सुनने को मिली। पुलिस प्रशासन पूरी तरह सर्तक था कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी ना हो। उधर लखनऊ से भी संदेश आया कि उत्सव को उत्सव की तरह मनाये उपद्रव की तरह नहीं। जिसका परिणाम ये हुआ कि रविवार को कुछ ऐसा देखने को नहीं मिला जिसमें रात जोश की पुनरावृत्ति हो। योगी नाथ के नाम की घोषणा पर हिंदू बाहुलय क्षेत्रों में भी तरह-तरह की चर्चा हो रही थी कि कही योगी सत्ता संभालते ही भावावेश में कोई ऐसा कदम ना उठा ले कि असामाजिक तत्वों को कोई मौका मिल जाये। कारण ऐसे असामाजिक तत्व पूरे प्रदेश में है जो किसी एक सम्प्रदाय या जाति धर्म से नहीं बल्कि सभी धर्मो व जातियों से ताल्लुक रखते है। यहां ये कहावत भी खरी उतरती है कि शरारती तत्वों का कोई धर्म नहीं होता।
रात बीती ओर रविवार को अचानक सन्नाटे के माहौल में चल रही चर्चाए दूसरी और रूख कर गई। जो लोग तरह-तरह की अटकलें लगा रहे थें। उनके जहन में ये बात घूमने लगी कि नरेंद्र मोदी की छवि भी कट्टरवादी हिंदू नेताओं में है। केंद्र की सत्ता संभाले उन्हें ढाई वर्ष से भी अधिक का समय हो गया है। इस कार्यकाल में उन्होंने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जो किसी विशेष सम्प्रदाय या जाति धर्म को परेशानी आई हो। अपनी नीतियों के तहत मोदी ने जो भी कदम उठाया जैसे कि नोटबंदी उससे किसी एक जाति धर्म या सम्प्रदाय के लोगों को कष्ट नहीं हुआ बल्कि देश के हर नागरिक पर नोटबंदी की चोट पड़ी।
योगी आदित्य नाथ व नरेंद्र मोदी दोनों ही एक सोच तथा विचारधारा पर चलने वाले है। दोनों का मकसद एक ही कि देश में कोई व्यक्ति ऐसा सिर ना उठाए जिससे राष्ट्रहित में कोई हानि पहुंचे और कानून की जड़े कमजोर हो। दोनों के सपने बराबर है। इनकी टेड़ी निगाह आलिशान उन बंगलों पर है जो गरीब का हक छीनकर बनते है। दोनों नेता गरीब की झोपड़ी को लेंटर की छत में देखना चाहते है। उनकी शिक्षा, पेट की भूख व आमदनी से भी बखूबी वाकिफ है। योगी आदित्य नाथ ने भी अपनी कुर्सी का सफर इसी सोच से आरंभ किया और ये भी उम्मीद है कि वे उसमें खरे उतरेंगे।
---------------------------
इंसेट
एक राजा की अपनी प्रजा के प्रति बड़ी जिम्मेदारी होती है यदि योगी नाथ के आने से खासतौर पर विशेष सम्प्रदाय के यदि सभी लोग अपने लिए सरकार द्वारा कोई सख्त कदम उठाये जाने की बात सोच रहे है तो ये उनकी भूल होगी। प्रदेश के मुख्यमंत्री सख्ती जरूर करेंगे लेकिन ये सख्ती उन तमाम लोगों पर होगी जो लोकतंत्र की गरिमा को न समझ कानून से ऊपर उठकर वे काम करते है जो भारतीय संविधान में अपराध है। राष्ट्र के प्रति अच्छी सोच रखना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है जिसे पिछले कई दशकों से वह भूलता जा रहा है। भाजपा सरकार इसी भूल में सुधार लाने के लिए ठोस व सकारात्मक कदम उठायेगी। मुस्लिमों का इस्तेमाल भाजपा सरकार में वोट बैंक के लिए नहीं बल्कि उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए होगा। ऐसे संकेत मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह से महसूस किये गये है।
0 comments:
Post a Comment