-पारिवारिक झगड़े के बाद शिवपाल की खामोशी खिला सकती है गुल -अखिलेश के बुआ का नाम लेते ही बदल सकते है समाजवादी के समीकरण
मुख्य संवाददाता
सहारनपुर। पिछले दो महीने में नेता जी के परिवार के बीच चले झगड़े भले ही शांत हो गये हो लेकिन उसके बाद से मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव की खामोशी के पीछे लगता है कोई बड़ा राज छुपा है। ऐसा ना हो कि चुनाव नतीजों के परिणाम आते ही शिवपाल अपने बड़े भाई व भतीजे को टाटा कर किसी ओर राजनैतिक दल में शामिल ना हो जाये। उम्मीद तो यहां तक जाहिर की जा रही है यदि भाजपा सत्ता पाने के करीब पहुंच गई तो शिवपाल यादव कही भाजपा का दामन ना थाम ले।
टीवी चैनलों के लगभग सभी एग्जिट पोल में भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी दर्शाया जा रहा है। सबकी नजर खासतौर से उत्तर प्रदेश पर है क्योंकि यहीं से दिल्ली की सत्ता को हमेशा ताकत मिली है चाहे वो किसी भी पार्टी की रही हो। शिवपाल यादव लगातार चुप्पी साधे है। पारिवारिक झगड़ों के बाद उन्होंने राजनीति पर बयानबाजी करने से लगभग अपने को दूर रखा है। उनके मन में इस बार क्या है इसका खुलासा एक बार भी स्पष्ट रूप से उन्होंने नहीं किया। उन्होंने इतना जरूर कहा कि चुनाव नतीजे आने पर ही 11 मार्च को वे अपना मुंह खोलेंगे। हालांकि वे उनके सहयोगी पार्टी के नेता सपा के सिम्बल पर यूपी का चुनाव लड़े। भले ही टिकट पार्टी के राष्ट्रीयाध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी मर्जी से बांटे, लेकिन ये भी किसी से छुपा नहीं कि सपा के कुल उम्मीदवारों में ऐसे बहुत से उम्मीदवार होंगे जो शिवपाल यादव को ही अपना नेता मानते है। ये बात किसी ने खुलकर जाहिर नहीं की।
राजनैतिक पंडि़तों का मानना है कि भले ही अखिलेश यादव ने यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती को अपने साथ जोडऩे का इशारा कर दिया। उनकी ये ओफर का संदेश भी दूसरी जा रहा है। अधिकांश विभिन्न पार्टियों के नेताओं खासतौर से भाजपा ने अखिलेश यादव के इस बयान पर दावा किया कि उनका कांग्रेस को साथ लेकर भी जब पेट नहीं भरा तो वह कुर्सी पर विराजमान होने के लिए बुआ जी की तरफ हाथ बढ़ा रहे है।
मायावती के बारे में सभी जानते है कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी की दावेदारी की शर्त पहले रखती है ओर यदि ये शर्त सपा ने मान भी ली तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि यूपी की सत्ता में यदि सपा-कांग्रेस ओर बसपा के गठबंधन की सरकार बनने के आसार बने तो मायावती अपने ही पार्टी के लोगों को मंत्री मंडल में अधिक से अधिक स्थान देने की शर्त रख देंगे। इन परिस्थितियों में बुआ जी का अखिलेश के साथ जुडऩा दूर-दूर तक भी जुडऩा मुश्किल हो जायेगा। क्योंकि अपने को पिछड़ता देख अखिलेश यादव बुआ जी की इस शर्त पर राजी हो गये तो सपा का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा।
इन परिस्थितियों में अखिलेश यादव के चाचा पिछले दिनों को याद कर कोई भी चौकानें वाला निर्णय ले सकते है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि भाजपा सरकार बनने में मुठ्ठी भर विधायकों की कमी रह गई तो ऐसा ना हो कि शिवपाल यादव को भाजपा की ओर से निमंत्रण मिले या फिर वे खुद ही घोषणा कर दें कि सपा की नीतियों से खिन्न होकर वे अपना दल बनाकर भाजपा को समर्थन दे रहे है। वे पहले भी कह चुके है कि वे अपनी अलग से पार्टी बनायेंगे। यदि ऐसा हो भी गया तो भाजपा मौके का फायदा उठाते हुए सम्मान के साथ अपने साथ ले लेगी और शिवपाल यादव भी संभव है, एक सम्मानित स्थान अपने साथी विधायकों के साथ भाजपा में पा जाये। अगर ऐसा हुआ तो उत्तर प्रदेश की इस नई राजनीति में एक बड़ा धमाका हो जायेगा, जिसका अभी तक आभास भी नहीं है।
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200 का आंकड़ा पार करना तीनों का मुश्किल
एग्जिट पोल के आधार पर भाजपा निश्चित हो गई कि वे बहुमत के साथ यूपी में बिना किसी का सहारा लिए अपनी सरकार बनायेगी। शुक्रवार को भाजपा के लगभग सभी नेता टीवी चैनलों पर दिये गये अपने बयानों में यूपी में अपनी सरकार आने का दावा ठोक रहे है। एग्जिट पोल को सपा व बसपा दोनों ही पार्टियों के नेता सरसर झूठा बता रहे है। अखिलेश व सपा केबड़े नेता दावा कर रहे है कि कुछ भी हो यूपी में सरकार सपा की ही बहुमत के साथ आयेगी। इसी तरह का बयान देने में सुश्री मायावती भी पीछे नहीं है। यदि मतदान व पार्टियों के समर्थकों के मन की बात ले तो ये जाहिर हो रहा है कि 100-100 तक भाजपा, सपा व बसपा के विधायकों का बनना निश्चित है। इसके बाद बचे 103 विधायक किस-किस पार्टी या निर्दलीय सामने आयेंगे ये अभी पूरी तरह पर्दे में है। सरकार उसी की बन पायेगी जो कम से कम 170 से 180 सीटें ले रहे है। इसके बाद किसी के लिए भी जोड़तोड़ करना मुश्किल नहीं रहेगा। ये पार्टी के शीर्ष नेताओं की खुबी होगी वे किन्हें अपने साथ जोड़ ले।
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