-अब यूपी में भाजपा की अग्नि परीक्षाजन लीडर न्यूज़
सहारनपुर। यूपी में प्रचंड़ बहुमत मिलने से भाजपा की बल्ले-बल्ले हो रही है। उससे भी ज्यादा बल्ले-बल्ले जितना कि 2007 में बसपा व 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा की हुई थी। चुनाव होने पर इन दोनों पार्टियों की बहुमत की ऊंची इमारतें किस तरह मतदाओं ने मलवे के ढ़ेर में बदल दी। इसके प्रत्यक्ष परिणाम पहले व अब 2017 के विधानसभा चुनाव में सामने आए है। जाहिर है कि पहले बसपा ओर फिर सपा पार्टी की बहुमत की सरकारे प्रदेश की जनता को राश नहीं आई। भाजपा का यूपी में भविष्य क्या होगा ये तो आने वाले वक्त में ही जनता फैसला करेगी।
वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा पार्टी ने सपा व भाजपा को करारी शिकस्त देकर 206 विधायक के सहारे यूपी की सत्ता पर काबिज हुई थी। वहीं समाजवादी पार्टी 97 व भारतीय पार्टी को 51 विधायकों से संतोष करना पड़ा था। बसपा की सपा व भाजपा पर ये करारी चोट थी। मजेदार बात ये है कि इतना बहुमत मिल जाने पर सुश्री मायावती के विधायक व कार्यकर्ता एक ही रट लगाने लगे थे कि बहन जी को अब दिल्ली की गद्दी पर बैठाना है।
दिल्ली की गद्दी तो दूर यूपी की जनता ने वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में बसपा का पासा ही पलट दिया। जो सड़क दिल्ली की ओर मायावती को ले जाने के लिए बन रही थी वो बीच में टूट गई। यूपी की जनता ने मायावती को शिरे से नकार दिया ओर सपा को 2012 के विधानसभा चुनाव में 224 विधायक देकर नेता जी के पुत्र अखिलेश यादव को प्रदेश की कमान सौंप दी। जनता की नाराजगी इस कदर रही थी कि जिस पार्टी की मुखिया मायावती को जनता ने यूपी की कुर्सी पर बैठाया था उसे मात्र 80 विधायक देकर बैठने की हिदायत दे डाली। बुरा हाल तो भाजपा का भी था जिसे पहले की अपेक्षा चार कम 47 ही विधायक मिल पाये थे। अखिलेश यादव ने यूपी की सड़कों पर काम भी बहुत किये, परंतु गलियारों तक नहीं पहुंच पाए। बल्कि चुनाव आने से पूर्व घरेलू झगड़ों में उलझकर रह गये।
2017 के विधानसभा चुनाव की एहमियत इसलिए ज्यादा थी क्योंकि सत्ता पर ढाई वर्ष पूर्व प्रचंड़ बहुमत से भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार तो दोनों ही पार्टियों की ओर से जमकर हुआ। मजेदार बात ये है कि विकास ओर मतदाताओं के भीतर विश्वास जगाने के लिए अपने साथ कांगे्रस से राहुल गांधी को लेकर आए अखिलेश यादव ने बाते तो बहुत लंबी-चौड़ी की मगर इसी बीच गधे-घोड़ों को दौड़ाने का काम शुरू कर दिया। कमाल की बात ये है कि अखिलेश के मुंह खोलने पर भाजपा के शीर्ष नेता भी गधे-घोड़ों की चर्चा में पीछे नहीं रहे। मगर इसी के साथ प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी मतदाताओं के दिलो दिमाग पर कब्जा करने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी थी। लगता है अखिलेश यादव मोदी की इस ताकत पर ध्यान देने बजाए राहुल की ताकत के भरोसे रहे। यूपी के मतदाओं को भाजपा की ओर अधिक से अधिक संख्या में घेरने का काम भीतर ही भीतर हो गया। जिसकी कांगे्रस,सपा व बसपा को भनक तक नहीं लगी। जो कभी वर्ष 2012 में 224 विधायकों के बल पर यूपी की सत्ता पर विराजमान हुए थे वे 2017 में मात्र 47 विधायकों को ही यूपी में समेट पाये। ठीक उतने जितने की 2012 के चुनाव में भाजपा को यूपी से विधायक मिले थे। अभी हाल ही के चुनाव में भाजपा को 324, सपा को 47+7 व बसपा को 17 ही विधायक मिल पाये।
अब तक के तीन विधानसभाओं के चुनाव ने साफ कर दिया है कि बहुमत हासिल करना यूपी में मुश्किल नहीं है परंतु भविष्य के लिए उसे बचाए रखना सबसे बड़ा काम है। भाजपा का इतने बड़े प्रदेश में आगामी भविष्य क्या होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। यूपी की चुनौतियों को पूरा करने में यदि भाजपा कामयाब रही तो तभी वे पिछले दो बार की बहुमत सत्ताओं की इमारतों के ढहने के क्रम को तोड़ पायेगी।
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इंसेट
यूपी में अनेकों समस्याएं व जनता की अपेक्षाएं मुंह बाए खड़ी है। रोटी, रोजी के अलावा स्वास्थ्य, महंगाई का बोझ, शिक्षा, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, बहुबलियों व भूमाफियाओं पर शिकंजा, सरकारी महकमों में रिश्वतखोरी पर रोक व समस्याओं का सहज समाधान, कमजोर वर्गो को सुरक्षा, यातायात ओर सबसे अहम जरूरत शिक्षा के बाद सरकारी महकमों में ईमानदारी से काबलियत के आधार पर नौकरी अन्य विकास के कार्य जिनमें सड़के, नाली, बिजली बाद की बातें है।
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