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    Saturday 11 March 2017

    2014 में चली मोदी 2019 में सुनामी से काम नही - 2017 bjp wave beat all before 2019 loksabha elections

    देश में 5 राज्यों की विधानसभा चुनावों का नतीजा आ चुका है. इन 5 राज्यों में बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई है. पार्टी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे अहम राज्यों में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का साफ मैनडेट पाया है. वहीं मणिपुर में बीजेपी ने न सिर्फ खाता खोला बल्कि सबसे बड़े और प्रभावी दल के रूप में अपनी जगह बनाई है. बीजेपी ने इन 5 राज्यों के नतीजों से एक बात साफ कर दी है कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में उसे सत्ता से हटाने का दम किसी राजनीतिक दल में नहीं है- क्योंकि 2014 में चली मोदी लहर, 2017 में आंधी बनी और 2019 में सुनामी बनने जा रही है.

    उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीट, पंजाब में 13, उत्तराखंड में 5, गोवा और मणिपुर में 2-2 सीट हैं. कुल मिलाकर 102 सीट. 2014 के लोकसभा चुनावों में इन राज्यों में बीजेपी को कुल 80 सीट पर जीत दर्ज हुई थी. पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में उसकी पकड़ मजबूत थी लेकिन आंकड़े कमजोर थे. मणिपुर में बीजेपी थी नहीं और सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में वह दोनों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से कमजोर थी. 2017 के इन 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में 4 राज्यों में बीजेपी की स्थिति 2014 से मजबूत हो चुकी है.


    2014 के लोकसभा चुनावों के बाद मोदी लहर को रोकने का एक मात्र उदाहरण आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनावों में देखने को मिला. अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी का विरोध करते हुए दिल्ली विधानसभा पर कब्जा कर केन्द्र सरकार में बैठी बीजेपी की नाक के बाल को खींच लिया था. अब 2017 के चुनावों में आम आदमी पार्टी गोवा और पंजाब में अपना असर नहीं दिखा पाई. वहीं उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बड़े राज्य में आप ने पहले ही घुटने टेक दिए थे. जाहिर है इन नतीजों ने यह भी साफ कर दिया है कि बीजेपी के लिए अब 2019 के चुनावों में आम आदमी पार्टी कोई अहम चुनौती नहीं है.




    उत्तर प्रदेश में लंबे अर्से के बाद बीजेपी ने वापसी की है. इससे पहले 2014 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 71 सीटों पर जीत दर्ज कर राज्य में अहम समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को हैरान कर दिया था. उस वक्त दोनों पार्टियों ने इसे केन्द्र की सरकार का मैनडेट करार दिया था. लेकिन अब 2017 में पूर्ण बहुमत की सरकार के साथ बीजेपी की वापसी हो गई है. इससे साफ है कि राज्य के वोटरों ने क्षेत्रीय दलों को नकार दिया है. राज्य के वोटरों ने इस नतीजे से साफ कर दिया है कि केन्द्र और राज्य की राजनीति के लिए उसकी पसंद एक है.


    लिहाजा साफ तौर पर कहा जा सकता है कि 2019 में आने वाली मोदी की सुनामी को टक्कर देने के लिए इस राज्य में कोई नेता नहीं बचा है. वहीं उत्तर प्रदेश का नतीजा इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि यहां मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस युवराज राहुल गांधी ने 2019 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए पोलिटिकल इंजीनियरिंग की कोशिश की थी. वहीं, इस कोशिश के चलते यदि अखिलेश यादव एक बार फिर 2017 में चुनाव जीतने में सफल हो जाते तो बीजेपी के लिए 2014 की जीत की पुनरावृत्ति करना मुश्किल हो जाता.


    कांग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी के गठबंधन को सत्ता से उखाड़ फेंका है. लेकिन यह इस बात का संकेत नहीं है कि राज्य में कांग्रेस मजबूत हुई है. कांग्रेस प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी है. लेकिन इस जीत के लिए कांग्रेस पार्टी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए. इस जीत में कैप्टन अमरिंदर की पकड़ ज्यादा अहम है. वहीं अकाली के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी को साधने में बीजेपी और आप की विफलता भी कांग्रेस की जीत के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. लिहाजा, पंजाब के नतीजे यदि कांग्रेस को खुश भी करती हैं तो यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकेगी.
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