नई दिल्ली. पिछले 11 सालों में राजनीतिक दलों को मिले चंदे के आंकड़ों से फंडिंग को पारदर्शी बनाने की जरूरत को बल मिला है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की ओर जारी आंकड़ों के अनुसार 11 सालों में राजनीतिक दलों को मिले कुल चंदे के 69 फीसद के स्त्रोत का पता ही नहीं है.
इस दौरान राजनीतिक दल ज्ञात स्त्रोत से केवल 16 फीसद ही चंदा जुटा पाए थे. आयकर विभाग के नियम के मुताबिक राजनीतिक दलों को 20 हजार से कम की चंदे की रकम का स्त्रोत बताना अनिवार्य नहीं है. मजेदार बात यह है कि बसपा एक मात्र ऐसी पार्टी है, जो उसे मिले चंदे को सौ फीसद अज्ञात स्त्रोत से बताती रही है.
एडीआर के आंकड़ों के मुताबिक 2004-05 से 2014-15 के बीच देश में सभी राजनीतिक दलों ने कुल 11367.34 करोड़ का चंदा मिलने का दावा किया है. इस चंदे के 69 फीसद यानी 7833 करोड़ के स्त्रोत की जानकारी उन्होंने नहीं दी है.
यानी ये सभी चंदे 20 हजार रुपये से कम में आए थे. ज्ञात दाताओं से राजनीतिक दलों को केवल 16 फीसद यानी 1835.63 करोड़ रुपये का ही चंदा मिला था. इसके अलावा राजनीतिक दलों ने अपनी संपत्तियों को बेचकर, सदस्यता फीस जुटाकर या फिर बैंक के ब्याज से 15 फीसद यानी 1698.73 करोड़ रुपये मिलने का दावा किया है.
आंकड़ों के मुताबिक 11 सालों में 10 साल तक सत्ता में रही कांग्र्रेस को मिले कुल चंदे का 83 फीसद यानी 3323.39 करोड़ रुपये के स्त्रोत का पता नहीं है. जबकि इसी दौरान भाजपा को मिले 65 फीसद चंदे यानी 2125.91 करोड़ रुपये का स्त्रोत अज्ञात रहा. जाहिर है इस दौरान भाजपा और कांग्र्रेस को अज्ञात लोगों ने ज्यादा चंदा दिया.
वहीं अज्ञात स्त्रोत से चंदा हासिल करने वाले क्षेत्रीय दलों में शिरोमणि अकाली दल और समाजवादी पार्टी अव्वल रहीं. समाजवादी पार्टी को 94 फीसद यानी 766.27 करोड़ मिले चंदे का स्त्रोत अज्ञात है, जबकि शिरोमणि अकाली दल को 86 फीसद यानी 88.06 करोड़ रुपये के चंदे के स्त्रोत का पता नहीं है.
हैरानी की बात यह है कि 2004-05 से 2014-15 के बीच राष्ट्रीय दलों को मिलने वाले अज्ञात स्त्रोत से चंदे में 313 फीसद का जबरदस्त इजाफा हुआ है. 2004-5 में जहां इन्हें केवल 274.13 करोड़ रुपये अज्ञात स्त्रोत से मिले थे, वहीं 2014-15 में यह बढ़कर 1130.92 करोड़ रुपये हो गया. जबकि क्षेत्रीय दलों को मिलने वाले अज्ञात चंदे में 652 फीसद की बढ़ोतरी होकर 37.39 करोड़ रुपये से 281.01 करोड़ रुपये हो गया.
इस दौरान राजनीतिक दल ज्ञात स्त्रोत से केवल 16 फीसद ही चंदा जुटा पाए थे. आयकर विभाग के नियम के मुताबिक राजनीतिक दलों को 20 हजार से कम की चंदे की रकम का स्त्रोत बताना अनिवार्य नहीं है. मजेदार बात यह है कि बसपा एक मात्र ऐसी पार्टी है, जो उसे मिले चंदे को सौ फीसद अज्ञात स्त्रोत से बताती रही है.
एडीआर के आंकड़ों के मुताबिक 2004-05 से 2014-15 के बीच देश में सभी राजनीतिक दलों ने कुल 11367.34 करोड़ का चंदा मिलने का दावा किया है. इस चंदे के 69 फीसद यानी 7833 करोड़ के स्त्रोत की जानकारी उन्होंने नहीं दी है.
यानी ये सभी चंदे 20 हजार रुपये से कम में आए थे. ज्ञात दाताओं से राजनीतिक दलों को केवल 16 फीसद यानी 1835.63 करोड़ रुपये का ही चंदा मिला था. इसके अलावा राजनीतिक दलों ने अपनी संपत्तियों को बेचकर, सदस्यता फीस जुटाकर या फिर बैंक के ब्याज से 15 फीसद यानी 1698.73 करोड़ रुपये मिलने का दावा किया है.
आंकड़ों के मुताबिक 11 सालों में 10 साल तक सत्ता में रही कांग्र्रेस को मिले कुल चंदे का 83 फीसद यानी 3323.39 करोड़ रुपये के स्त्रोत का पता नहीं है. जबकि इसी दौरान भाजपा को मिले 65 फीसद चंदे यानी 2125.91 करोड़ रुपये का स्त्रोत अज्ञात रहा. जाहिर है इस दौरान भाजपा और कांग्र्रेस को अज्ञात लोगों ने ज्यादा चंदा दिया.
वहीं अज्ञात स्त्रोत से चंदा हासिल करने वाले क्षेत्रीय दलों में शिरोमणि अकाली दल और समाजवादी पार्टी अव्वल रहीं. समाजवादी पार्टी को 94 फीसद यानी 766.27 करोड़ मिले चंदे का स्त्रोत अज्ञात है, जबकि शिरोमणि अकाली दल को 86 फीसद यानी 88.06 करोड़ रुपये के चंदे के स्त्रोत का पता नहीं है.
हैरानी की बात यह है कि 2004-05 से 2014-15 के बीच राष्ट्रीय दलों को मिलने वाले अज्ञात स्त्रोत से चंदे में 313 फीसद का जबरदस्त इजाफा हुआ है. 2004-5 में जहां इन्हें केवल 274.13 करोड़ रुपये अज्ञात स्त्रोत से मिले थे, वहीं 2014-15 में यह बढ़कर 1130.92 करोड़ रुपये हो गया. जबकि क्षेत्रीय दलों को मिलने वाले अज्ञात चंदे में 652 फीसद की बढ़ोतरी होकर 37.39 करोड़ रुपये से 281.01 करोड़ रुपये हो गया.
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