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    Wednesday 25 January 2017

    ढूंढा जा रहा चुनाव खर्च पर पाबंदी का ‘जुगाड़‘ - Election 2017

     * स्टार प्रचारकों से लेकर महारैलियों पर पानी की तरह बहेगा पैसा * विकल्प तलाशने की खातिर सियासी खेमों में जमकर माथापच्ची* यूपी में अधिकतम 28 लाख ही खर्च कर सकता है एक प्रत्याशी * निर्वाचन आयोग के नियमों की ‘काट‘ से लक्ष्य साधने की तैयारी  

    पवन शर्मा 
    सहारनपुर। यूपी के चुनावी ‘महाभारत‘ में अब स्टार प्रचारकों की फौज उतर आई है। इसी के साथ तूफानी जनसंपर्क से लेकर खासे तामझाम वाली महारैलियों का सिलसिला जोर पकड़ने जा रहा है। चूंकि, यूपी में इस बार हर विधानसभा में एक प्रत्याशी अधिकतम 28 लाख रुपये ही खर्च कर सकता है। लिहाजा, चुनावी धारा में पानी की तरह पैसा बहाने को बेकरार सभी दलों के रणनीतिकार हर वह ‘काट‘ ढूंढने में व्यस्त हंै, जिसकी बदौलत निर्वाचन आयोग के ‘फेरे‘ में फंसे बगैर ही मनचाहे लक्ष्य पर ‘निशाना‘ लग जाए।  
    विधानसभा चुनाव की बिसात सजते ही हर दल सत्ता की चाबी हासिल करने की खातिर एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। उम्मीदवार तय करने में हुई कसरत के बाद अब सबका फोकस चुनाव प्रचार पर है। इसके लिए, भाजपा और कांग्रेस से लेकर सपा-बसपा तक ने चुनाव मैदान में 40-40 स्टार प्रचारकों की पूरी फौज उतार दी है। जबकि, क्षेत्रीय दलों को इससे आधी संख्या यानी, 20-20 स्टार प्रचारक तय करने की अनुमति हासिल है। कांग्रेस ने पूरे गांधी परिवार यानी, पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक को स्टार प्रचारक बनाया है तो सपा ने सीएम अखिलेश सहित संरक्षक मुलायम सिंह यादव, उपाध्यक्ष किरणमय नंदा, रामगोपाल यादव, डिंपल यादव ओर आजम खान सरीखे वरिष्ठ नेताओं को इस फेहरिस्त में शामिल किया है। भाजपा के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में पीएम नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, मनोहर पार्रिकर और नितिन गडकरी से लेकर हेमामालिनी तक को जगह मिली है जबकि बसपा के स्टार प्रचारकों में पार्टी प्रमुख मायावती, महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी, सतीशचंद मिश्र और संघप्रिय गौतम जैसे नेताओं के नाम प्रमुख हैं। चूंकि, चुनावी मौसम में स्टार प्रचारकों के धुंआधार दौरों पर जमकर खर्च होता है, लिहाजा निर्वाचन आयोग इस पूरे सिलसिले पर लगातार पैनी नजर रखे हुए है। 
    दिलचस्प पहलू यह है कि, आयोग के अपने नियम ही उन उम्मीदवारों के लिए बेहद मददगार साबित हो रहे हैं, जो अपने रणनीतिकारों के साथ चुनावी खर्च पर लागू सीमा की ‘काट‘ ढूंढने में दिन-रात व्यस्त हैं। मसलन, आयोग के ही नियम के अनुसार, कोई स्टार प्रचारक किसी क्षेत्र में कोई चुनावी जनसभा को संबोधित करता है और यदि उम्मीदवार ने उसके साथ मंच साझा नहीं किया तो ऐसे आयोजन का खर्च उम्मीदवार के खाते में नहीं जुड़ेगा। लेकिन, यदि स्टार प्रचारक ने उम्मीदवार के नाम का जिक्र किया अथवा स्टार प्रचारक की तस्वीर वाले होर्डिंग पर उसकी फोटो भी लगाई जाती है तो, जनसभा का पूरा खर्च उम्मीदवार के ही हिस्से में आएगा। ऐसा होते ही चुनाव की हर हलचल पर नजर रख रहा निर्वाचन अधिकारी प्रत्याशी की जनसभा का खर्च उससे संबंधित एक रजिस्टर में जोड़ देगा। चुनाव आयोग हर उम्मीदवार के लिए ऐसे विशेष रजिस्टर रखता है। लेकिन इससे बचाव का रास्ता भी चुनाव आयोग के नियमों में है। नियमों के मुताबिक अगर, ऐसे किसी भी आयोजन के दौरान स्टार प्रचारक मंच से अपने संबोधन में संबंधित प्रत्याशी के साथ पास की किसी सीट से चुनाव लड़ रहे अन्य पार्टी प्रत्याशी का भी नाम लेते हैं तो रैली का खर्च दोनों प्रत्याशियों के बीच आधा-आधा बांट दिया जाएगा। यानी, इस नियम के मुताबिक, स्टार प्रचारक जितने अधिक नाम लेंगे, उतना ही निर्धारित चुनाव खर्च के हिसाब से अच्छा रहेगा। 
    इसी तरह आयोग का एक और नियम पार्टियों की खासी मदद कर रहा है, जिसके तहत चुनाव अधिसूचना से सात दिन पहले आयोग को स्टार प्रचारक का नाम बताए जाने की सूरत में ऐसे प्रचारक द्वारा प्रयोग में लाए गए हेलीकाॅप्टर का खर्च संबंधित प्रत्याशी के खाते में नहीं जोड़ा जाएगा। चूंकि, अपने तूफानी दौरों और जनसंपर्क के बीच स्टार प्रचारकों के पास हर विधानसभा के लिए कम समय होता है, जिसके चलते उनके या पार्टियों के लिए हेलीकॉप्टर किराये पर लेना जरूरी हो गया है। लेकिन चुनाव आयोग के नियम पर तमाम सियासी खेमे बारीकी से ध्यान दे रहे हैं ताकि कोई गड़बड़ न हो जाए। जैसे, यदि प्रदेश में किसी भी पार्टी का कोई प्रत्याशी अपनी विधानसभा में स्टार प्रचारक को बुलाता है और किसी कारणवश उक्त प्रत्याशी को स्टार प्रचारक के साथ ही हेलीकाॅप्टर में यात्रा करनी पड़ती है तो इसका आधा खर्च प्रत्याशी के खाते में जुड़ जाएगा। संबंधित क्षेत्र में हेलीकाॅप्टर पार्किंग के खर्च में भी तमाम सियासी खेमे सतर्कता बरत रहे हैं। दरअसल, उड्डयन उद्योग के मौजूदा नियमानुसार, चार्टर आॅपरेटर हेलीकाॅप्टर खड़ा होने की स्थिति में तीन घंटे तक का इंतजार कराने के एवज में कोई शुल्क नहीं वसूलते। जबकि, इस सीमा से अधिक समय में बीस से 50 हजार रुपये प्रति घंटा की दर से प्रतीक्षा शुल्क वसूला जाता है। इसलिए सभी पार्टियों में स्टार प्रचारकों को स्पष्ट हिदायत दी गई है कि, वे तमाम विधानसभा क्षेत्रों में जल्द से जल्द रैलियों को संबोधित करें और ऐसा होते ही बिना वक्त गंवाए वापस लौट जाएं ताकि, एक तरफ हेलीकाॅप्टर का खर्च बचे जबकि, दूसरी ओर प्रत्याशी या प्रचारक को किसी चूक की वजह से अतिरिक्त चुनावी खर्च की मार न सहनी पड़े। हालांकि, चुनावी माहौल में तमाम ‘जुगत‘ भिड़ा रहे सियासी रणनीतिकारों ने इस मामले में भी ‘जुगाड़‘ ढूंढ लिया है। इसके तहत वे पार्टियों और प्रत्याशियों को प्रचार के लिए वीडियो वैन के बहुतायत से इस्तेमाल की सलाह दे रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव और बीते वर्ष विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इनका व्यापक प्रयोग किया था क्योंकि, इसका खर्च उम्मीदवार के बजाय पार्टी के खाते में ही जुड़ता है। लेकिन, इसमें भी कुछ खास किस्म की एहतियात बरतना जरूरी है। मसलन, यदि वीडियो वैन से दिए जाने वाले भाषणों में संबंधित उम्मीदवार का नाम पुकारा गया तो इस पूरे तामझाम का खर्च उम्मीदवार के खाते में जोड़ दिया जाएगा। जाहिर है कि, ऐसे हालात में यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि, पूरे चुनावी समर में तमाम सियासी दल इस तगड़ी चुनौती से निपटने के लिए क्या जुगत भिड़ाते हैं ? 
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    सीमा से कई गुना खर्च की चुनौती
    सहारनपुर। निर्वाचन आयोग के नियमानुसर हर प्रत्याशी के लिए अपना अलग बैंक खाता खोलना जरूरी है, जिससे वह चुनावी खर्च करता है। इससे होने वाले हर लेन-देन का पूरा लेखा-जोखा रखा जाता है ताकि, चुनाव आयोग लगातार उसके खर्च पर नजर बनाए रख सके। जबकि, पार्टियों की बात करें तो चुनावी मौसम में सभी प्रमुख दल पानी की तरह पैसा बहाने की काबिलियत रखते हंै। लेकिन, यूपी में चुनाव आयोग ने हर पार्टी या उम्मीदवार को प्रति मतदाता औसतन 15 रुपये खर्च करने की ही अनुमति दे रखी है। सूबे में करीब 7.6 करोड़ मतदाता हैं। बड़ा राज्य होने के चलते यहां प्रति उम्मीदवार के लिए विधानसभा क्षेत्र में चुनाव खर्च की सीमा 28 लाख रुपये है। कुल 403 सीटों के आधार पर यहां कोई भी राजनीतिक दल 113 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता। जबकि, स्टार प्रचारकों के तूफानी दौरों, रैलियों, जनसंपर्क और बेहद महंगे चुनाव प्रचार समेत तमाम मदों पर इससे कई गुना खर्च होना तय है। 
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