728x90 AdSpace

  • Latest News

    Monday, 30 January 2017

    ध्रुवीकरण का ‘तीर‘ है आजमाना, निशाने पर फिर देवबंद-कैराना - Up election 2017



    -- चुनावी मौसम में फिर आक्रामक हुए भाजपा के ‘बयानवीर‘
    -- माहौल गर्माने की खातिर विवादित बयान देने की रणनीति 
    -- पहले दो चरणों की चुनाव प्रक्रिया पर जमी है पैनी निगाह
    -- ‘हिंदुत्व‘ का मुद्दा भुनाने के लिए चले जा रहे तमाम दांव   

    पवन शर्मा 
    सहारनपुर। चुनावी मौसम में मतदाताओं को लामबंद करने की मुहिम जोर पकड़ रही है। इसके लिए, तमाम दांव-पेच आजमाए जा रहे हैं। इस पूरी कवायद के बीच फिलवक्त भाजपा के ‘बयान वीर‘ सुरेश राणा और उनके ‘बिगड़े बोल‘ सुर्खियों में हैं। पुरजोर कोशिश की जा रही है कि, बीते दौर में जिस तरह मुजफ्फरनगर से लेकर कैराना तक बेहद सुनियोजित ढंग से माहौल बनाकर बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण का माहौल तैयार किया गया, कमोबेश वही तस्वीर फिर उभर आए। इसके लिए, नए सिरे से देवबंद-कैराना की सरजमीं को निशाने पर लिया गया है ताकि, एक तरफ जहां पूरे वेस्ट यूपी के तहत शुरुआती दो चरण में होने वाले चुनाव के दौरान वोटों की मनमाफिक ‘फसल‘ काटी जा सके वहीं, सूबे के बाकी हिस्सों में भी इसी ‘प्रयोग‘ को आधार बनाकर ‘हिंदुत्व‘ के मसले को हवा दी जाती रहे। 
    वेस्ट यूपी को धार्मिक नजरिए से हमेशा संवदेनशील माना जाता रहा है। यहां तमाम छोटे-बड़े चुनाव से ऐन पहले बेहद सधे अंदाज में माहौल गर्माने का पुराना चलन है। चूंकि, निर्वाचन प्रक्रिया के शुरुआती दो चरणों में सूबे के इसी हिस्से में मतदान होना है। लिहाजा, वोटों के धुव्रीकरण से जुड़े प्रयास लगातार जोर पकड़ रहे हैं। इसी का सुबूत नुमायां करते हुए भाजपा विधायक सुरेश राणा ने एकाएक बेहद आक्रामक बयान देकर पूरे चुनावी माहौल को नई दिशा में मोड़ दिया है। राणा ने दो टूक कहा कि,- ‘वे चुनाव जीत गए तो देवबंद, मुरादाबाद में कर्फ्यू लग जाएगा।‘ उनके इस बिगड़े बोल का वीडियो सोशल मीडिया पर प्रचुरता से वायरल  हो रहा है, जिसने यह भी बखूबी जता दिया कि, इस बार भाजपाई खेमा यूपी चुनाव के शुरुआती दौर में ही आक्रामक शैली के साथ अपनी रणनीति को नई धार देना चाहता है। दरअसल, पार्टी इससे ठीक पहले अपने घोषणा पत्र के जरिए यह स्पष्ट संकेत दे चुकी थी कि वह किसी भी कीमत पर हिंदुत्व के एजेंडे को धार देकर ही रहेगी ताकि यूपी में जल्द से जल्द वोटों का धुव्रीकरण हो सके। इसी सोच के साथ पार्टी ने न केवल संवैधानिक दायरे में राम मंदिर के निर्माण का संकल्प दोहराया बल्कि, कैराना पलायन के मुद्दे को भी पूरी तरह सोची-समझी रणनीति के तहत चुनावी एजेंडे में जगह दी गई। ‘तीन तलाक‘ का मामला भुनाने में भी पार्टी कोई कमी नहीं छोड़ेगी। रही-सही कसर अब, सिलसिलेवार ढंग से पार्टी के महारथियों पूरी कर रहे हैं, जिनके ‘बिगड़े बोल‘ को आधार बनाकर भाजपा पूरे वेस्ट यूपी में अपने हक में माहौल बनाने में जी-जान से जुटी है। 
    हालांकि, ठीक इसी नाजुक मोड़ पर वेस्ट यूपी के चुनावी परिदृश्य में यह सवाल भी पूरी ताकत के साथ उभर रहा है कि, क्या वाकई इस बार विवादित बयानों और अन्य दांव-पेच के जरिए किए जाने वाले धुव्रीकरण से जुड़े प्रयासों का आम मतदाता के दिलोजहन पर कोई बड़ा असर पड़ेगा ? वह भी तब, जब नोटबंदी से लेकर समाजवादी पार्टी के आंतरिक गलियारों में लंबे वक्त तक चले ‘हाई वोल्टेज नाटक‘ सरीखे तमाम घटनाक्रम पहले से ही सियासी चर्चाओं का हिस्सा बने हैं। शायद इसीलिए भाजपा चुनावी जंग के शुरुआती दौर में ही ऐसे बयानों के सहारे हवा का रुख अपनी ओर करने की कोशिश में जुट गई है। वहीं, उसका यह सोचा-समझा ‘दांव‘ इसलिए और अहम हो जाता है, जब यूपी की धार्मिक संरचना साफ दर्शाती है कि, यहां वोटों का ध्रुवीकरण ही अमूमन हर चुनाव में सबसे बड़ा सियासी ‘हथियार‘ साबित होता रहा है। भाजपा यह भी बखूबी जानती है कि, यदि मुस्लिम मतदाता यहां किसी एक पार्टी के पक्ष में लामबंद हो गए तो इसकी प्रतिक्रिया में दूसरे समुदाय यानी, हिंदुओं का व्यापक समर्थन उसकी ओर होने की संभावना खासी बढ़ जाती है। लिहाजा, वह भरसक कोशिश कर रही है कि, किसी भी तरह तमाम किस्म के विवादित बयानों का मुलम्मा‘ चढ़ाकर एक के बाद एक ऐसे ‘तीर‘ छोड़ती रहे, जिनकी बदौलत उसे पूरे वेस्ट यूपी में बड़े पैमाने पर वोटों की मनमाफिक फसल काटने को मिल जाए।  
    --------------------

    ...आसान नहीं सौहार्द की इबारत मिटाना ! 
    सहारनपुर। भाजपा विधायक सुरेश राणा के ताजातरीन विवादित बयान के साथ ही देवबंद का नाम एक बार फिर चर्चा में है। इस बयान में बेहद सुनियोजित ढंग से देवबंद में ‘कफ्र्यू‘ लगाने यानी माहौल बिगड़ने तक का अंदेशा जताया गया है लेकिन, देवबंद में पीढ़ियों से कायम अमन-चैन और सांप्रदायिक सौहार्द की बेहद काबिल-ए-तारीफ रवायत को मिटा पाना कतई आसान नहीं है। इस प्रागैतिहासिक नगर को न केवल इस्लामी शिक्षा व दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिए पूरी दुनिया में अलग पहचान हासिल है बल्कि, यहां एशिया का सबसे बड़ा मदरसा दारुल उलूूम भी है। इसी तरह, यहां एक तरफ जहां मां त्रिपुर बाला सुंदरी का प्राचीन मंदिर है तो दूसरी ओर देवबंद ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी ‘रेशमी रुमाल‘ आंदोलन के जरिए बेहद अहम भूमिका निभाई थी, जिसके चलते इस शहर को हमेशा एकता के आदर्श प्रतीकस्थल के रूप में देखा जाता रहा है। जाहिर है कि, इतनी खूबियां रखने वाले स्थल को विवादित बयान के केंद्र में रखकर चुनावी माहौल में भले ही एक बार फिर राजनीतिक रोटियां सेंकने की पुरजोर कोशिश की जा रही हो लेकिन, देवबंद की पाक सरजमीं से उभरता पूरा ‘सच‘ यही है कि देवबंद के अमनपसंद बाशिंदे ऐसे किसी भी प्रयास को यूं ही सिरे नहीं चढ़ने देंगे। 
    • Blogger Comments
    • Facebook Comments

    0 comments:

    Post a Comment

    Item Reviewed: ध्रुवीकरण का ‘तीर‘ है आजमाना, निशाने पर फिर देवबंद-कैराना - Up election 2017 Rating: 5 Reviewed By: Sonali
    Scroll to Top