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    Tuesday 31 January 2017

    गठबंधन पर भारी न पड़ जाए ‘कन्फ्यूजन‘ - Confusion is heavy on alliance


    * मुस्लिम वोटरों के बीच नजर आ रही उलझन भरी स्थिति 
    * सपा-कांग्रेस का ‘साथ‘ भी कम नहीं कर पाया असमंजस 
    * बसपा की ‘मुस्लिमपरस्ती‘ को लेकर भी साफ नहीं तस्वीर
    * इस सूरत-ए-हाल को अपने लिए मुफीद मान रही भाजपा  

    पवन शर्मा 
    सहारनपुर। यूपी में चुनावी जंग दिलचस्प मोड़ पर है। फिलवक्त सबकी निगाह वेस्ट यूपी पर जमी हैं, जहां पहले दो चरणों में मतदान होना है। चूंकि, धार्मिक और जातीय नजरिए से सूबे का यह हिस्सा बेहद संवेदनशील है, लिहाजा वोटों के ध्रुवीकरण के प्रयास लगातार जोर पकड़ रहे हैं। ऐसे में, हर कोई मुस्लिम मतदाताओं के मन की थाह लेने को बेकरार है लेकिन, जिस तरह सपा-कांग्र्रेस गठबंधन होने के बावजूद समाज का यह तबका ‘खामोश‘ है, उसे देखते हुए दोनों दलों के रणनीतिकार खासे बेचैन हैं। आलम यह है कि, मुस्लिम मतदाताओं में एक तरफ सपा-कांग्रेस तो दूसरी तरफ, खुद को सबसे बड़ा ‘मुस्लिमपरस्त‘ बता रही बसपा के बीच ‘बेहतर‘ विकल्प चुनने को लेकर गहरा असमंजस है तो वहीं, भाजपा मौजूदा सूरत-ए-हाल को सियासी ऐतबार से अपने लिए मुफीद मान रही है।
    2012 के विधानसभा चुनाव की तस्वीर पर नजर डालें तो वेस्ट यूपी की कुल 97 सीटों में भाजपा ने 11 पर जीत का परचम लहराया था जबकि, सपा और बसपा यहां 33-33 सीटें कब्जाने में कामयाब रही थीं। तब कांग्रेस व रालोद में गठबंधन था और दोनों के हिस्से कुल 15 सीट आई थीं। पीस पार्टी ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी। इससे स्पष्ट है कि, वेस्ट यूपी में पिछली बार एक-दूसरे की धुर प्रतिद्वंद्वी सपा और बसपा के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था जबकि, भाजपा तमाम प्रयासों के बावजूद यहां बमुश्किल 11 सीट ही हासिल कर सकी थी। वहीं, कांग्रेस-रालोद गठबंधन का प्रदर्शन भी दोनों दलों की उम्मीद के अनुरूप था। शायद इसीलिए, 2012 चुनाव के नतीजों से ‘सबक‘ लेते हुए भाजपा ने अगली चुनावी परीक्षाओं के मद्देनजर धीरे-धीरे हवा का रुख अपनी ओर करने की रणनीति पर बेहद बारीकी से अमल किया। इसी के साथ पहले मुजफ्फरनगर व सहारनपुर में लगातार हुए दंगों के साथ ही कुछ समय पहले कैराना से हिंदुओं के पलायन सरीखे सुलगते मुद्दों के जरिए बड़े पैमाने पर सुनियोजित ढंग से वोटों का धुव्रीकरण कराया गया। नतीजा यह हुआ कि, लोकसभा चुनाव में चैतरफा चली मोदी लहर के सहारे भाजपा ने वेस्ट यूपी की सभी सीटों समेत पूरे यूपी में रिकाॅर्ड 73 सीट झटक लीं। कुछ ही समय बाद हुए उपचुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन बढ़िया रहा और सहारनपुर नगर सहित वेस्ट यूपी की कई सीटों पर भाजपाई परचम लहराया। अब यही सिलसिला आगे बढ़ाते हुए विधानसभा चुनाव के शुरुआती चरणों की अहमियत से बखूबी वाकिफ भाजपा भरसक कोशिश कर रही है कि किसी भी तरह एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम वोटों के बंटवारे की योजना समय रहते सिरे चढ़ जाए। इसके लिए, अपने परंपरागत वोट बैंक में गिने जाने वाले हिंदू मतदाताओं के साथ ही उसकी निगाह मुस्लिम वोटरों पर भी लगातार जमी है। 
      
    दरअसल, मौजूदा दौर की दिलचस्प हकीकत यही है कि वेस्ट यूपी में सर्वश्रेष्ठ सियासी विकल्प चुनने को लेकर लगातार असमंजस से जूझ रहे मुस्लिमों के बहाने भाजपा कहीं न कहीं हालात अपने हक में मानकर चल रही है। उसे पूरी उम्मीद है कि, यदि सोच के मुताबिक इस बार भी अलग-अलग पार्टियों में मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है तो हिंदू वोट के अच्छे-खासे प्रतिशत की बदौलत वह लोकसभा चुनाव की तर्ज पर एक बार फिर शानदार प्रदर्शन करेगी। भाजपा यह भी बखूबी जानती है कि, वेस्ट यूपी के जिन इलाकों में शुरुआती दो चरणों के तहत चुनाव होना है, वहां जाट मतदाताओं के साथ दूसरे बड़े वोट बैंक में मुस्लिमों की ही गिनती होती है। ऐसे हालात में उसका स्पष्ट नजरिया है कि,यहां का मुस्लिम यदि किसी एक पार्टी या गठबंधन के हक में लामबंद होकर मतदान करेगा तो इसके नतीजे में उसे तगड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही कारण है कि, फिलवक्त सपा-कांग्रेस गठबंधन होने के बावजूद, जिस तरह दोनों पार्टियों के आंतरिक गलियारों में टिकट बंटवारे को लेकर लगातार मचे घमासान के चलते मुस्लिम मतदाताओं में एक किस्म का असमंजस गहरा रहा है, उसे भाजपा अपने लिए कुल मिलाकर बेहतर स्थिति ही मान रही है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि, अभी तक तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद बसपा खुद को सही मायने में असली ‘मुस्लिमपरस्त‘ साबित करने में कुल मिलाकर असफल ही रही है। नतीजतन, ऐसे हालात में मुस्लिम मतदाताओं को समझ नहीं आ रहा कि, वे इस बार किसके हक में मतदान करें ? 
    दूसरी ओर, सपा-कांग्रेस गठजोड़ और बसपा के प्रति आम मुस्लिम वोटरों के बीच लगातार बनी इस भ्रामक स्थिति से भाजपा के चुनावी रणनीतिकार खुश हैं। उनका स्पष्ट आकलन है कि, खुदा-न-खास्ता कहीं न कहीं यदि मुस्लिम मतदाताओं ने किसी एक पार्टी या गठबंधन के पक्ष में एकमुश्त वोटिंग कर दी तो इससे हिंदु वोट प्रतिशत कम रहने की सूरत में भाजपा को नुकसान हो सकता है। लिहाजा, वह लगातार यही दुआ मांग रही है कि, फिलवक्त सपा-कांग्रेस के ‘साथ‘ और बसपा के दावों के प्रति मुस्लिम मतदाताओं के दिलोजहन में असमंजस इसी तरह कायम रहे ताकि, वह 2012 चुनाव की तुलना में इस बार कई गुना अधिक बेहतर प्रदर्शन की कसौटी पर खुद को खरी साबित कर सके। इसके लिए वह तमाम प्रयासों की बदौलत जाट-गुर्जर मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने पर भी बारीकी से ध्यान दे रही है ताकि मुस्लिम मतदाताओं के समानांतर उसके परंपरागत वोट बैंक में किसी सूरत में कोई बिखराव न होने पाए।
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