चुनाव आयोग ने कांग्रेस पार्टी को सख्त आदेश देते हुए कहा है कि वह 15 जून तक पार्टी अध्यक्ष समेत अन्य पदों के लिए चुनाव संपन्न कराए. आयोग ने पार्टी को लिखा है कि अब और समय नहीं दिया जा सकता है. देश की सबसे पुरानी पार्टी में साल 2010 में आखिरी बार अहम पदों और समितियों के सदस्यों के चुनाव के लिए मतदान हुआ था. सोनिया गांधी साल 1998 से कांग्रेस की अध्यक्ष हैं. 2013 में उनके बेटे राहुल गांधी को पार्टी उपाध्यक्ष बनाया गया था. कांग्रेस कार्यकारिणी समिति जोकि पार्टी में सबसे अहम नीति निर्णायक अंग है, उसमें अधिकतर सदस्यों को चुनने की बजाय नामित किया गया था. पार्टी ने सांगठनिक चुनावों के लिए काफी व्यापक योजनाओं की घोषणा की थी, लेकिन इसमें देरी होती चली गई और अभी तक आंतरिक चुनाव नहीं हुए हैं. चुनाव आयोग ने कहा है कि पार्टी अब और देरी नहीं कर सकती.
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दिसंबर में चुनाव आयोग से पार्टी द्वारा किए गए आग्रह को स्पष्ट करते हुए कहा, यह बहुत बड़ा काम है और इसके लिए सदस्यों की सूची को अपडेट करना होगा. इस साल कई चुनाव हो रहे हैं, इसलिए एक छोटे स्थगन की मांग की जा रही है. कांग्रेस ने आयोग से कहा था कि पार्टी पदाधिकारियों के चुनाव के लिए और समय की जरूरत है. पार्टी के नियमों के मुताबिक विभिन्न राज्यों के करीब 7,000 प्रतिनिधियों को वोट करना होगा.
लेकिन सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में आंतरिक चुनावों में देरी के लिए वजह इससे कहीं बड़ी है. कांग्रेस के लिए एक 'समस्या' यह भी है कि 46-वर्षीय राहुल गांधी को किस तरह पार्टी प्रमुख के रूप में आगे बढ़ाया जाए. सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रह रहा है और वह शीत सत्र में अधिकांश समय तक संसद से अनुपस्थित रहीं. नोटबंदी के मुद्दे पर राहुल गांधी ने ही पीएम मोदी के खिलाफ कांग्रेस की रणनीति और विरोध की अगुवाई की. हालांकि कांग्रेस के नेता बार-बार दोहराते रहे हैं कि राहुल गांधी का पार्टी अध्यक्ष बनना तय है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इसके लिए उचित समय को लेकर कुछ चिंताएं हैं.
राहुल गांधी राजनीतिक रूप से काफी अहम यूपी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के अभियान की अगुवाई कर रहे हैं, जहां पार्टी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनावी मैदान में है. यूपी चुनावों के नतीजों को राहुल के नेतृत्व को जनता के बीच स्वीकारोक्ति के रूप में देखा जाएगा, क्योंकि सोनिया यहां पृष्ठभूमि में ही रहीं. असल में अखिलेश यादव से गठबंधन को अंजाम तक पहुंचाने में प्रियंका गांधी की भूमिका अहम रही. यह भी एक साफ संकेत है कि सोनिया अपने आपको अग्रिम पंक्ति से हटा रही हैं.
सूत्रों का यह भी कहना है कि राहुल गांधी अभी पार्टी प्रमुख बनने को राजी नहीं हैं और कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को आम चुनावों तक सांगठनिक संरचना में फेरबदल नहीं करना चाहिए. साथ ही शीर्ष नेतृत्व इस बात को लेकर भी चौकस है कि पार्टी के अंदर कोई चुनौती देने वाला न हो. पूर्व में पार्टी के आंतरिक चुनावों में जितेंद्र प्रसाद और राजेश पायलट जैसे नेताओं ने चुनौती पेश की थी. उनकी दावेदारी को हमेशा ओछी महत्वाकांक्षा के रूप में देखा गया. कांग्रेसी नेताओं ने संकेत दिया कि चूंकि राहुल गांधी अभी पार्टी प्रमुख की जिम्मेदारी संभालने को लेकर अनिच्छुक हैं, इसलिए वे नहीं चाहते कि कांग्रेस में कोई वैकल्पिक सत्ता केंद्र तैयार हो. हालांकि अब चुनाव आयोग के अल्टीमेटम के बाद कांग्रेस के पास पहले जैसी स्थिति बनाए रखने का विकल्प शायद नहीं बचेगा.
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दिसंबर में चुनाव आयोग से पार्टी द्वारा किए गए आग्रह को स्पष्ट करते हुए कहा, यह बहुत बड़ा काम है और इसके लिए सदस्यों की सूची को अपडेट करना होगा. इस साल कई चुनाव हो रहे हैं, इसलिए एक छोटे स्थगन की मांग की जा रही है. कांग्रेस ने आयोग से कहा था कि पार्टी पदाधिकारियों के चुनाव के लिए और समय की जरूरत है. पार्टी के नियमों के मुताबिक विभिन्न राज्यों के करीब 7,000 प्रतिनिधियों को वोट करना होगा.
लेकिन सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में आंतरिक चुनावों में देरी के लिए वजह इससे कहीं बड़ी है. कांग्रेस के लिए एक 'समस्या' यह भी है कि 46-वर्षीय राहुल गांधी को किस तरह पार्टी प्रमुख के रूप में आगे बढ़ाया जाए. सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रह रहा है और वह शीत सत्र में अधिकांश समय तक संसद से अनुपस्थित रहीं. नोटबंदी के मुद्दे पर राहुल गांधी ने ही पीएम मोदी के खिलाफ कांग्रेस की रणनीति और विरोध की अगुवाई की. हालांकि कांग्रेस के नेता बार-बार दोहराते रहे हैं कि राहुल गांधी का पार्टी अध्यक्ष बनना तय है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इसके लिए उचित समय को लेकर कुछ चिंताएं हैं.
राहुल गांधी राजनीतिक रूप से काफी अहम यूपी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के अभियान की अगुवाई कर रहे हैं, जहां पार्टी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनावी मैदान में है. यूपी चुनावों के नतीजों को राहुल के नेतृत्व को जनता के बीच स्वीकारोक्ति के रूप में देखा जाएगा, क्योंकि सोनिया यहां पृष्ठभूमि में ही रहीं. असल में अखिलेश यादव से गठबंधन को अंजाम तक पहुंचाने में प्रियंका गांधी की भूमिका अहम रही. यह भी एक साफ संकेत है कि सोनिया अपने आपको अग्रिम पंक्ति से हटा रही हैं.
सूत्रों का यह भी कहना है कि राहुल गांधी अभी पार्टी प्रमुख बनने को राजी नहीं हैं और कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को आम चुनावों तक सांगठनिक संरचना में फेरबदल नहीं करना चाहिए. साथ ही शीर्ष नेतृत्व इस बात को लेकर भी चौकस है कि पार्टी के अंदर कोई चुनौती देने वाला न हो. पूर्व में पार्टी के आंतरिक चुनावों में जितेंद्र प्रसाद और राजेश पायलट जैसे नेताओं ने चुनौती पेश की थी. उनकी दावेदारी को हमेशा ओछी महत्वाकांक्षा के रूप में देखा गया. कांग्रेसी नेताओं ने संकेत दिया कि चूंकि राहुल गांधी अभी पार्टी प्रमुख की जिम्मेदारी संभालने को लेकर अनिच्छुक हैं, इसलिए वे नहीं चाहते कि कांग्रेस में कोई वैकल्पिक सत्ता केंद्र तैयार हो. हालांकि अब चुनाव आयोग के अल्टीमेटम के बाद कांग्रेस के पास पहले जैसी स्थिति बनाए रखने का विकल्प शायद नहीं बचेगा.
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