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    Wednesday 18 January 2017

    रायसीना-2 वार्ता : भारत-चीन संबंधों पर पीएम मोदी बोले, दो ताकतवर पड़ोसी देशों के बीच कुछ मतभेद स्वाभाविक- Modi On China

    नई दिल्ली : भारत-पाक संबंधों में जारी तल्खी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट संदेश देते हुए मंगलवार को कहा कि पाकिस्तान अगर भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता शुरू करना चाहता है तो उसे आतंकवाद से अलग होना होगा। समन्वित पड़ोस की अपनी पहल को रेखांकित करते हुए मोदी ने कहा कि सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के साथ सौहार्दपूर्ण एवं शांतिपूर्ण संबंध उनकी पड़ोस के प्रति सोच को रेखांकित करता है।

    तीन दिवसीय रायसीना-2 वार्ता के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भारत अकेले शांति के पथ पर नहीं चल सकता है। यह पाकिस्तान के सफर का मार्ग भी होना चाहिए। पाकिस्तान अगर भारत के साथ वार्ता करना चाहता है तो उसे आतंकवाद से अलग होना होगा।’ इस दौरान उन्होंने अपनी लाहौर यात्रा समेत पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में उठाये गए कई कदमों को याद किया।

    उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों की ओर से पठानकोट और उरी हमलों समेत सीमापार से अनेक हमलों के कारण भारत पाकिस्तान संबंधों में तल्खी आ गई है। पाकिस्तान के साथ संबंधों के बारे में मोदी ने कहा कि पाकिस्तान के सफर का पथ भी शांति का होना चाहिए। भारत का रुख धर्म को आतंकवाद से अलग करने तथा अच्छे एवं बुरे आतंकवाद के कृत्रिम वर्गीकरण को खारिज करने का है और अब दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है।

    तीन दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन को संबोधित करते हुए मोदी ने ये बातें कहीं जिसमें दुनियाभर से शीर्ष विदेश और सुरक्षा विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं। चीन का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि दो बड़े पड़ोसी शक्तियों के बीच कुछ मतभेद असामान्य बात नहीं है लेकिन दोनों पक्षों को संवेदनशीलता और मुख्य चिंताओं एवं हितों पर एक दूसरे प्रति सम्मान का भाव दिखाना चाहिए।

    भारत-चीन संबंधों के बारे में उन्होंने कहा कि दोनों देशों में अथाह आर्थिक अवसर है और इस पथ पर आगे बढ़ने में दोनों एक दूसरे का पूरक बन सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं भारत और चीन को आगे बढ़ते हुए देख रहा हूं जो हमारे दोनों देशों और पूरी दुनिया के लिए अभूतपूर्व आर्थिक अवसर के रूप में है। ऐसे में दो बड़े पड़ोसी शक्तियों के बीच कुछ मतभेद होना अस्वाभाविक नहीं है।’

    मोदी ने कहा, ‘हमारे संबंधों की देखरेख और क्षेत्र में शांति और प्रगति के लिए दोनों देशों को संवेदनशीलता और एक दूसरे के हितों और चिंताओं के प्रति सम्मान का भाव प्रकट करना चाहिए।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने और चीनी राष्ट्रपति शी चिपफिंग ने अपने संबंधों में वाणिज्यिक और कारोबारी अवसरों के व्यापक क्षेत्रों का दोहन करने पर जोर दिया था।

    मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि यह शताब्दी एशिया की है, साथ ही कहा कि इस महादेश में सबसे तीव्र उतार चढ़ाव हो रहा है और इसी क्षेत्र में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां व्यापक प्रगति और समृद्धि हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एशिया प्रशांत में सतत रूप से बढ़ती सैन्य शक्ति, संसाधन और धन ने उसकी सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। इसलिए इस क्षेत्र में सुरक्षा ढांचे को खुला, पारदर्शी, संतुलित और समावेशी होना चाहिए।

    मोदी ने कहा, ‘और इसलिए क्षेत्र में सुरक्षा ढांचा खुला, पारदर्शी, संतुलित और समावेशी होना चाहिए। और इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों में निहित व्यवहारों और वार्ता को प्रोत्साहित करने के साथ सम्प्रभुता का सम्मान करने वाला होना चाहिए।’ अपने संबोधन में मोदी ने भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं, हिन्द महासागर में सुरक्षा हितों और पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों के साथ खाड़ी देशों, अमेरिका, चीन और रूस समेत प्रमुख देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं को छुआ। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ की सोच केवल भारत के लिए ही नहीं है बल्कि सम्पूर्ण दुनिया की अवधारणा है।

    इस सम्मेलन में नेपाल के विदेश मंत्री प्रकाश शरण, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के अंतरराष्ट्रीय मामलों के सलाहकार गौहर रिजवी समेत 65 देशों से 250 प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। अफगानिस्तान के मुद्दे पर मोदी ने कहा कि दूरी और आवागमन में कठिनाइयों के बावजूद पुनर्निर्माण, संस्थाओं के निर्माण और क्षमता उन्नयन में भारत सहयोग दे रहा है। अफगानिस्तान के संसद भवन का निर्माण और भारत अफगानिस्तान दोस्ती बांध हमारे बढ़ते संबंधों के उदाहरण हैं।
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