-- आसान नहीं लक्ष्य साधना, अपने ही सजाएंगे राह में कांटे-- अनदेखी से नाराज है पंजाबी बिरादरी, बेवफाई के आसार-- कई धड़ों में विभाजित भाजपा संगठन, मुश्किलों का अंबार-- नुमाइश कैंप से लेकर हकीकतनगर तक मुखर हुआ विरोध
पवन शर्मा
सहारनपुर। विधानसभा चुनाव की जंग में पहली लिस्ट जारी होते ही भाजपा के ‘महारथी‘ मुश्किलों के ‘भंवर‘ में फंसते नजर आ रहे हैं। सबसे दिलचस्प तस्वीर वेस्ट यूपी की महत्वपूर्ण सीटों में शुमार सहारनपुर नगर की है, जहां पार्टी ने एक बार फिर 2014 में हुए उपचुनाव के विजेता राजीव गुम्बर पर दांव खेल दिया है। लेकिन, गुम्बर के लिए जीत की राह फिलहाल आसान नजर नहीं आ रही। आलम यह है कि अन्य तबके तो दूर, खुद अपनी बिरादरी यानी पंजाबी समाज पर भी गुम्बर की पकड़ कतई मजबूत नहीं मानी जा रही। जबकि, संगठन में पहले से चरम पर पहुंची गुटबाजी और टिकट वितरण में असंतोष ने भी गुम्बर के लिए एक तरफ ‘घात‘ तो दूसरी ओर ‘प्रतिघात‘ सरीखी स्थिति पैदा कर दी है।
सहारनपुर नगर सीट पर चुनावी मुकाबले में भाजपा की स्थिति को लेकर कयास लगाने का दौर तो कई रोज से जारी है लेकिन, अब पार्टी की ओर से राजीव गुम्बर को प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही टिकट वितरण में असंतोष के स्वर खुलकर सतह पर आ गए हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि, इस पूरी कवायद में उसी पंजाबी समाज का स्वर फिलहाल सबसे मुखर है, जिसकी नुमाइंदगी गुम्बर करते हैं। हालांकि, अभी समाज के गलियारों में इस बाबत खुलकर चर्चा नहीं हो रही लेकिन शहर के तकरीबन सभी प्रमुख पंजाबी बहुल इलाकों में गुम्बर को टिकट मिलने पर वह उत्साह कुल मिलाकर नदारद ही रहा, जिसकी बदौलत अपनी पिछली राजनीतिक परीक्षा यानी उपचुनाव में गुम्बर ने शानदार जीत दर्ज की थी। जाहिर है कि, चुनावी मुहिम के शुरुआती दौर में ही इस प्रकार की स्थिति उभरने से न केवल गुम्बर बल्कि, पूरे जिले में भाजपा के सिपहसालारों को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है।
काबिल ए गौर पहलू यह है कि, उपचुनाव की ही तर्ज पर इस बार भी नगर में भाजपा का पूरा सांगठनिक ढांचा गुटबाजी के चलते बड़े बिखराव का शिकार है। पार्टी के ही सांसद राघव लखनपाल शर्मा से विधायक खेमे की दूरियां भी जगजाहिर हैं। स्पष्ट है कि, इस किस्म के हालात में न तो पार्टी कार्यकर्ताओं में जरूरी तालमेल बन सकेगा और न ही वे आम जनता के बीच उस उत्साह के साथ पहुंच सकते हैं, जिसके बिना चुनाव जीतना तो दूर, प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती तक पेश करना संभव नहीं। इतना ही नहीं, खुद अपनी बिरादरी का समर्थन हासिल करने में भी गुम्बर और उनके करीबियों को तमाम पापड़ पेलने पड़ सकते हैं। आलम यह है कि, खुद अपने ही ‘घर‘ यानी गोविंदनगर से लेकर पंजाबी समाज के ‘गढ़‘ कहलाने वाले नुमाइश कैंप, किशनपुरा, हकीकतनगर, पटेलनगर, सुभाषनगर, गुरुद्वारा रोड, आवास विकास और पंजाबी बाग तक में गुम्बर के प्रति विरोध के दबे-दबे स्वर अब किसी भी समय उभर सकते हैं।
सूत्रों की मानें तो, नुमाइश कैंप सरीखे इलाकों में तो अब अपनी अनदेखी से खफा क्षेत्रवासियों की ओर से सीधे गुम्बर के नाम वोट न मांगने के बाबत बैनर, पोस्टर तक लगाए जाने की पुख्ता तैयारी की जा चुकी है। जबकि, देखते ही देखते भाजपा संगठन में पर्दे के पीछे वे तमाम सियासी चेहरे भी अब पूरी तरह कमर चुके हैं, जो गुम्बर के बजाय पंजाबी समाज के ही किसी और नुमाइंदे को इस बार नगर सीट पर चुनाव मैदान में उतारने की पुरजोर वकालत कर रहे थे। जाहिर है कि, इन तमाम पहलुओं के चलते बनी विपरीत परिस्थितियों में गुम्बर के लिए उपचुनाव में किया गया करिश्माई प्रदर्शन दोहराना कतई आसान नहीं होगा।
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हर चुनौती से निपटेंगेः गुम्बर
‘‘राजनीतिक क्षेत्र में किसी न किसी मोड़ पर सबको विरोध और अंतर्विरोध से जूझना पड़ता है। मेरा स्पष्ट मानना है कि, कभी-कभी किसी से मतभेद अवश्य हो सकते हैं लेकिन, मनभेद कतई नहीं होना चाहिए। इसी सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ हर चुनौती का बखूबी सामना करते हुए पूरी मजबूती से चुनाव लड़ा जाएगा। मुझे विश्वास है कि, नगरवासियों के असीम स्नेह और कार्यकर्ताओं की अथक मेहनत के बूते एक बार फिर शानदार जीत हासिल होगी।‘‘
(राजीव गुम्बर, भाजपा प्रत्याशी)
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दलबदलुओं पर दांव पड़ेगा भारी ?
सहारनपुर। एक तरफ सहारनपुर नगर सीट पर भाजपा मुश्किलों से घिरी नजर आ रही है तो जिले की बाकी सीटों पर भी उसकी राह कम कांटों भरी नहीं ! सबसे गंभीर स्थिति टिकट वितरण में दलबदलुओं को तवज्जो देने से पैदा हुई है। भाजपा ने इस बार गंगोह, नकुड़, बेहट और सहारनपुर देहात में ऐसे ही ‘बाहरी‘ चेहरों पर दांव खेला है, जिसे लेकर पार्टी के सांगठनिक गलियारों में गहराया असंतोष कभी भी खुलकर सतह पर आ सकता है। जबकि, देवबंद में भाजपा से चुनाव लड़ रहे कुंवर ब्रिजेश रावत और रामपुर मनिहारान के पार्टी प्रत्याशी पूर्व विधायक रामस्वरूप निम के बेटे देवेंद्र निम को भी इन इलाकों में राजनीतिक पकड़ के लिहाज से बहुत अधिक मजबूत नहीं आंका जा रहा। जाहिर है कि, ऐसे हालात में न केवल शहर सीट बल्कि, पूरे जिले में भाजपा की चुनावी मुहिम को पग-पग पर तगड़े झटकों से जूझना पड़ सकता है।
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