-- चुनाव में नए सिरे से परखा जाएगा पलायन प्रकरण -- धु्रवीकरण के सहारे संजोया जा रहा जीत का ख्वाब -- औवेसी की जनसभा से सर्द मौसम में आएगी गर्माहट-- भाजपा और सपा भी मुद्दा भुनाने में नहीं रहेंगी पीछे -- चुनावी तस्वीर में सांप्रदायिक रंगत घोलने की तैयारी
पवन शर्मा
सहारनपुर। चुनावी काउंट डाउन के बीच कैराना का बहुचर्चित पलायन मुद्दा सुलगाने की खातिर तमाम सियासी खेमों ने कमर कस ली है। निशाने पर मुस्लिम वोट बैंक है, जिसे पाले में खींचने की खातिर धु्रवीकरण का ‘तीर‘ पैने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। इस सुनियोजित मुहिम का आगाज जहां विवादित बयानबाजी में माहिर आॅल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी 13 जनवरी को कैराना में अपनी जनसभा से करेंगे वहीं हवा का रुख भांपते हुए सपा और भाजपा भी चुनावी ‘अलाव‘ में यह मुद्दा भुनाने में कोई कोर-कसेर न छोड़ने के मूड में हैं। लिहाजा, सर्द मौसम में माहौल गर्माने के ‘साझा‘ प्रयास एक बार फिर सधे अंदाज में सिरे चढ़ाए जा रहे हैं।
सूबे में चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद अब नामांकन सबकी निगाहें वेस्ट यूपी पर टिकी हैं, जहां पहले और दूसरे चरण में ही वोट डाले जाएंगे। इस हकीकत से भी हर कोई बखूबी वाकिफ है कि, वेस्ट यूपी में ही इस बार आम मतदाताओं के रुख को लेकर लगातार सस्पेंस की स्थिति बनी है, लिहाजा यहां चुनाव में उभरने वाले मुद्दों को लेकर तमाम प्रमुख सियासी दलों में दिन-रात तगड़ी ‘कसरत‘ की जा रही है। चुनावी मुद्दों की इस फेहरिस्त में फिलहाल भले ही नोटबंदी से लेकर ‘सपा संग्राम‘ सरीखे तमाम प्रकरण सबसे ज्यादा चर्चा में हों लेकिन, राजनीति के धुरंधरों का स्पष्ट मानना है कि, यदि चुनावी जंग में वाकई बड़ी कामयाबी हासिल करनी है तो बिना वक्त गंवाए किसी न किसी ‘हाईवोल्टेज‘ नाटक की पटकथा रचनी ही होगी। यही कारण है कि, अर्से तक सुर्खियों में छाए रहे कैराना प्रकरण को अब नए सिरे से चुनावी ‘अलाव‘ में भुनाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए, खुद कैराना की ही सरजमीं को ‘प्रयोगशाला‘ के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा, जहां 13 जनवरी को एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी जनसभा को संबोधित करेंगे। माना जा रहा है कि, उनके इसी कदम के साथ एक बार फिर बहुचर्चित कैराना प्रकरण का ‘जिन्न‘ बोतल से बाहर आ जाएगा। नतीजतन, पूरे मामले में अहम भूमिका अदा करने वाली भाजपा और सपा के चुनावी सिपहसालारों ने भी मौजूदा घटनाक्रम को अपनी-अपनी चुनावी रणनीति के सांचे में देखने-परखने का सिलसिला तेज कर दिया है।
काबिल-ए-गौर है कि, बीते वर्ष ही कैराना में पलायन के मसले ने देखते ही देखते इतना तूल पकड़ा था कि, इसकी तुलना कश्मीरी पंडितों के पलायन तक से की जाने लगी थी। लिहाजा, मौजूदा चुनावी परिदृश्य में यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि सियासी गुणा-भाग की दृष्टि से कैराना मुद्दे का लाभ किसे मिलता है और किसे नहीं ? दरअसल, कैराना मामले का वोटों के धुव्रीकरण से भी सीधा ताल्लुक है। इस चर्चित प्रकरण में जहां एक ओर, भाजपा नेता हुकुम सिंह ने 350 हिंदू परिवारों की लिस्ट जारी करते हुए कहा था कि कैराना में दूसरे वर्ग के गिरोह ने हिंदुओं को सुनियोजित ढंग से पलायन करने के लिए मजबूर किया था। वहीं, इसकी प्रतिक्रिया में न केवल वेस्ट यूपी के मुस्लिम नेताओं ने कड़े तेवर अख्तियार कर लिए थे बल्कि, पूरे घटनाक्रम को लेकर राष्ट्रीय राजनीति तक में एक किस्म से भूचाल आने सरीखी स्थिति उभर आई थी। इसके चलते, प्रदेश के साथ देश की राजनीति तक यह मुद्दा अर्से तक काफी गर्म रहा। हालांकि, जिला प्रशासन ने तब अपनी रिपोर्ट में कैराना से किसी भी तरह के पलायन से साफ करते हुए कहा था कि यह छोटे से कस्बे की एक दिक्कत भर है। इसके बावजूद, तब पेश आई कुछ आपराधिक घटनाओं के चलते कैराना मामले को सांप्रदायिक रंग देने की भरसक कोशिश की गई, लेकिन बाद में इस मुद्दे की गूंज अन्य प्रकरणों के शोर में धीरे-धीरे मंद पड़ गई लेकिन, अब एक बार यूपी चुनाव के महाभारत में इसे सुलगाने की पुख्ता तैयारी की जा रही है।
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क्यों इतना अहम है कैराना ?
सहारनपुर। सवाल स्वाभाविक है कि, एक छोटे कस्बे से जुड़ा मामला होने के बावजूद कैराना पलायन मुद्दे पर आखिर इतना शोरशराबा क्यों ? दरअसल, सियासी रणनीतिकारों की कसौटी पर परखें तो कैराना के धार्मिक-सामाजिक समीकरण उन्हें हमेशा मुफीद नजर आते हैं। कैराना की कुल आबादी 89300 है, जिसमें 80 फीसदी मुस्लिम हंै। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे की तरह कैराना में पलायन मुद्दे की संवेदनशीलता के बावजूद सांप्रदायिक हिंसा तो नहीं हुई लेकिन यहां की हिंदू आबादी में पिछड़ी जाति के गुर्जर समुदाय की अधिकता होने के कारण सियासी दलों के लिए इस क्षेत्र ने देखते ही देखते खुद-ब-खुद एक राजनीतिक प्रयोगशाला सरीखी पहचान हासिल कर ली। ऐसा इसलिए क्योंकि गुर्जर समाज को वेस्ट यूपी के मजबूत वोट बैंक में गिना जाता है।
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सियासी सिपहसालारों ने कसी कमर
सहारनपुर। क्षेत्र के कद्दावर सियासी चेहरों में एक तरफ भाजपा के हुकुम सिंह हैं, जो लगातार चार बार यहां चुनाव जीत चुके हैं तो उपचुनाव में कैराना सीट पर सपा के टिकट से युवा नेता नाहिद हसन ने जीत हासिल की थी। चूंकि, अब एक बार फिर यहां से निकले चुनावी संदेश की बदौलत न केवल वेस्ट यूपी बल्कि, पूरे प्रदेश के सियासी समीकरण प्रभावित होने के स्पष्ट आसार अभी से साफ नजर आने लगे हैं। लिहाजा, हवा का रुख भांपते हुए अपने-अपने आला नेताओं की अगुवाई में भाजपा और सपा, दोनों ही खेमों की ओर से चुनावी अलाव की आंच पर एक बार फिर कैराना मुद्दा भुनाने की खातिर पुख्ता तैयारियों का सिलसिला लगातार जोर पकड़ रहा है।
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