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    Friday 6 January 2017

    ...पता भी नहीं चलेगा, सोए-सोए चल देंगे - Great Actor, Om Puri and Bollywood! Hindi Article by Pawan Sharma

    • -- मौत को भी खूबसूरत लिबास में संजोकर निहारते थे ओम पुरी 
    • -- एक साक्षात्कार में खुद कर दी थी अपनी मौत की भविष्यवाणी 
    • -- हिंदी सिनेमा के सबसे बेजोड़ अदाकारों में किए जाते हैं शुमार 

    पवन शर्मा 
    सहारनपुर। ‘‘बस ! कि मैं ज़िंदगी से डरता हूं...मौत का क्या है-एक बार मारेगी...!!!‘‘ बेशक, मौत को इतने खूबसूरत लिबास में संजोकर देखना खुद किसी नायाब हुनर से कम नहीं और हिंदी सिनेमा के सबसे बेमिसाल अदाकारों में शुमार ओम पुरी ताउम्र इस फन में माहिर होने का सुबूत पेश करते रहे। शायद इसीलिए, एक वक्त खुद उन्होंने इन बेबाक अल्फाज़ में अपनी जिंदगी का चिराग बुझने के बाबत ‘भविष्यवाणी‘ कर दी थी कि, ‘‘मौत से डर नहीं लगता ! मौत का तो पता भी नहीं चलेगा, सोए-सोए चल देंगे...!!!
    हिंदी सिनेमा में यह पहचान गिने-चुने अदाकारों को ही नसीब होती है कि, उन्हें अभिनय की हर शैली में दर्शकों से जबरदस्त सराहना हासिल हो। ओम पुरी की गिनती ऐसे ही बेजोड़ अभिनेताओं में होती थी। ‘अर्ध सत्य‘ में आक्रोशित पुलिस इंस्पेक्टर के बेहद अलग किरदार में वे सही मायने में ‘एंग्री यंग मैन‘ नजर आए तो समानांतर सिनेमा में उनकी एक से बढ़कर एक भूमिकाएं अर्से तक याद की जाती रहेंगी। फिल्म जगत में जिस तरह ‘ट्रेज़िडी किंग‘ दिलीप कुमार को एक जीवंत युग का रुतबा हासिल है वहीं, ओम पुरी को इसी तर्ज पर उनके प्रशंसक हमेशा एक जीते-जागते ‘अभिनय प्रशिक्षण संस्थान‘ के रूप में सम्मान देते रहे। बाॅलीवुड से लेकर हाॅलीवुड तक, हर कहीं उन्होंने अभिनय कौशल की हर कसौटी पर खुद को बखूबी साबित कर दिखाया। वे थे भी इतनी बेमिसाल शख्सियत के मालिक कि, जो भी उनसे एक बार मिलता, उन्हें अपनी यादों में बसा लेता। और आज जब, वे हमेशा-हमेशा के लिए हिंदुस्तान सहित पूरी दुनिया में फैले अपने मुरीदों की यादों का कभी न भुलाए जाने वाला हिस्सा बन चुके हैं तो, बरबस ही उनके अल्फाज हर किसी के कानों में गूंज रहे हैं। किसी को फिल्मी पर्दे पर उनकी दमदार आवाज सुनकर अलग ही रोमांच हो उठता तो कोई अलग-अलग मंचों पर दिए गए उनके बेबाक बयानों के लिए उन्हें याद कर रहा है। शायद इसीलिए, उनका और तमाम किस्म के मसलों पर बेहद गंभीर विवादों का नाता बेहद करीबी रहा। 
    मसलन, इस लंबी फेहरिस्त में शामिल हालिया मामला कुछ ही समय पहले देश की सीमा पर किए गए उरी हमले से जुड़ा है। दरअसल, एक टीवी शो के दौरान ओम पुरी ने उरी हमले में शहीद हुए सेना के जवानों को लेकर अपने ही अंदाज में टिप्पणी करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया था। तब उन्होंने कहा था-‘‘ए किसने जवानों को सेना में आने के लिए कहा ? किसने उन्हें हथियार उठाने के लिए कहा ? इस बयान के बाद ओम पुरी की न केवल चैतरफा निंदा हुई बल्कि उनके खिलाफ केस तक दर्ज हो गया था। इस पर उन्होंने बाकायदा सार्वजनिक माफी मांगकर जैसे-तैसे विवाद शांत किया। इसी तरह, कभी असिहष्णुता पर फिल्म अभिनेता आमिर खान के बयान पर उन्होंने माफी मांगने की बात कहकर देश-विदेश में फैले आमिर खान के प्रशंसकों को खफा किया तो कभी गोमांस से लेकर आतंकवाद और गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे तक के संदर्भ में बेहद अजीबोगरीब किस्म की विवादित टिप्पणियां देकर ओम पुरी ने अपनी पूरी शख्सियत को एक अलग ही सांचे में ढाल दिया था। यह सिलसिला उनकी मौत से कुछ वक्त पहले तक भी नहीं थमा, जिसके चलते अब ओम पुरी को गंभीरता से लेने वालों की संख्या बेहद तेजी से घटने लगी थी। 
    इसके बावजूद, ओम पुरी तो बस ओम पुरी ही थे। वे बस अपने ही अंदाज में जिए और अपने ही सबसे जुदा अंदाज में इस दुनिया से रुखसत हुए। तभी तो मौत के बारे में उनके ख्यालात न केवल बेहद अलग थे बल्कि, आज उनकी गैर मौजूदगी के असहनीय लम्हों में इनकी अहमियत का अंदाजा भी बखूबी लगाया जा सकता है। दरअसल, ओम पुरी ने 2015 में बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में ही अपनी मृत्यु की ‘भविष्यवाणी‘ कर दी थी। तब ओम पुरी ने कहा था- “मृत्यु का नहीं, बीमारी का भय होता है। हम देखते हैं कि लोग लाचार हो जाते हैं। बीमारी की वजह से और दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं, तो उससे डर लगता है। मृत्यु से डर नहीं लगता. मृत्यु का तो आपको पता भी नहीं चलेगा, सोए-सोए चल देंगे...!!!“ 
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    बेमिसाल अदाकार थे ओम
    सहारनपुर। ओम पुरी सही मायने में बेमिसाल अभिनेता थे, जिन्हें हमेशा याद किया जाएगा। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पास आउट ओम पुरी ने 1976 में मराठी फिल्म ‘घासीराम कोतवाल‘ से फिल्मी सफर शुरू किया। 1982 में हिंदी फिल्म ‘अर्धसत्य‘  से पहचान मिली तो जाने भी दो यारों, मिर्च-मसाला, धारावी, माचिस और चाची 420 उनकी यादगार फिल्में रहीं। हॉलीवुड में सिटी ऑफ जॉय, वोल्फ और द घोस्ट एंड द डार्कनेस सरीखी चर्चित फिल्मों के अलावा, उन्होंने चार्ली विल्सन की ‘वॉर‘ में जनरल जिया उल हक की यादगार भूमिका निभाई। 1990 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था।
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