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    Friday 6 January 2017

    कब तक बुलंद रहेगा दागियों का ‘इकबाल‘ - Election and Crime Background Candidates, Story from Mohammad Farooq

    • -- सुप्रीमकोर्ट के ताजा रुख से ठहरे पानी में हलचल 
    • -- दागी नेताओं पर जल्द ही कस सकता है शिकंजा 
    • -- इस बार भी चुनावी ताल ठोक रहे हैं बेखौफ दागी 

    मौ. फारुख
    सहारनपुर। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दागी नेताओं की लगाम कसने की दिशा में सुप्रीमकोर्ट के ताजातरीन रुख को मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में बेहद गंभीरता से देखा-परखा जा रहा है। खासकर, यूपी के संदर्भ में यह पूरी कवायद सही मायने में अहम साबित होने की उम्मीद है क्योंकि, यहां सूबे के तमाम हिस्सों में ऐसे चेहरों का राज बखूबी नजर आता है। वेस्ट यूपी भी इसका अपवाद नहीं है, जहां न केवल अर्से से दागियों का दबदबा कायम है बल्कि, इनमें शामिल कई ‘धन कुबेर‘ तो अपने बुलंद ‘इकबाल‘ की बदौलत इस बार चुनाव मैदान में पूरी ताकत के साथ ताल भी ठोक रहे हैं। 
    यूपी समेत पांच राज्यों में चुनाव आयोग द्वारा तिथियों का ऐलान किए जाने के साथ ही विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। तमाम सियासी महारथी अभी से पूरे दमखम के साथ चुनावी ताल ठोक रहे हैं। काबिल-ए-गौर पहलू यह है कि, ‘धनबल‘ से लेकर ‘बाहुबल‘ तक में माहिर कई दबंग किस्म के दागी नेता भी किस्मत आजमाने चुनाव मैदान में उतरे हैं। लेकिन अब दागी उम्मीदवारों के लिए चुनाव लड़ने की राह में बड़ी बाधा खड़ी होने के आसार एकाएक बढ़ गए हैं। यह दिलचस्प स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि, दागियों के चुनाव नहीं लड़ने संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। लिहाजा, साफ तौर पर उन तमाम सियासी खेमों में एकाएक खलबली मच गई है, जो सामने तो भले ही राजनीति में अपराधीकरण रोकने की वकालत करते हों लेकिन, दर-हकीकत पर्दे के पीछे बेहद सधे अंदाज में बाहुबलियों व धनकुबेरों को चुनावी टिकट थमाने से उन्होंने कभी किसी चुनाव में कोई गुरेज नहीं किया। नतीजतन, मौजूदा हालात में सियासत के मिजाज से बखूबी वाकिफ जानकार मान रहे हैं कि, इस कदम की बदौलत, चुनावी तस्वीर में कुछ हद तक सकारात्मक बदलाव अवश्य नजर आ सकता है क्योंकि, पांच राज्यों में चुनाव के मद्देनजर सुप्रीमकोर्ट की बेंच बहुत जल्द कोई अहम फैसला सुना सकती है।
    यूपी के इन तथाकथित ‘योग्य‘ नेताओं में केवल कम पढ़े-लिखे या बाहुबल में माहिर चेहरे ही नजर नहीं आते बल्कि, वेस्ट यूपी की तस्वीर पर निगाह डालें तो यहां हालात और भी चिंतनीय हैं। मसलन, ज्यादा दूर न भी जाएं तो यहां सूबे के सीमांत जिले में अर्से से खनन कारोबार पर एकछत्र राज कर रहे एक बड़े ‘धन कुबेर‘ को तो चुनाव मैदान में ताल ठोकने का लाइसेंस भी मिल गया है। अपने बुलंद ‘इकबाल‘ की बदौलत, यह रुतबा हासिल करने वाले इस नेता पर भ्रष्टाचार के बेहद गंभीर आरोप लगते रहे हैं। यहां तक कि, बीते वर्ष ही देश की सर्वोच्च अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय से लेकर आयकर विभाग और गंभीर अपराधों की जांच करने वाली इकाइयों को निश्चित अवधि में इस धन बली नेता से जुड़े मामलों की जांच करने के आदेश दिए थे। इसके लिए, बाकायदा उक्त नेता का आपराधिक रिकाॅर्ड तक अदालत में तलब किया गया था। सूत्रों की मानें तो, बेहद मामूली हैसियत से अरबों की अवैध संपत्ति खड़ी करने के आरोपों से घिरे इस शख्स को चुनाव मैदान में उतारने के एवज में भी मोटी रकम का लेन-देन हुआ है। यह बात दीगर है कि अब ताजातरीन घटनाक्रम में एक बार फिर दागी नेताओं की लगाम कसने के संदर्भ में सुप्रीमकोर्ट के गंभीर रुख के चलते न केवल ऐसे धन कुबेरों बल्कि, आपराधिक मामलों में सिरे तक संलिप्त रहे प्रदेश भर के तमाम नेताओं के बीच नए ढंग से खलबली मच गई है।    
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    चारों तरफ दागी ही दागी
    सहारनपुर। बात पूरे यूपी की करें तो यहां चारों तरफ दागी नेताओं की भरमार नजर आती है। आंकड़ों के आइने में परखने पर पता चलता है कि, 2012 के विधानसभा चुनाव में यूपी में आधे से ज्यादा ऐसे नेता विधायक बनने में सफल रहे, जिन पर हत्या, हत्या के प्रयास, दंगा फैलाने, लूट, डकैती या अपहरण की वारदात में संलिप्त होने के मामले चल रहे थे। 2012 में चुने गए 403 में से 189 विधायकों पर ये और इसी तरह के तमाम संगीन केस चल रहे थे। दिलचस्प पहलू यह है कि, यूपी में दागी विधायकों के प्रतिशत के मामले में केंद्र मेें सत्ताधारी भाजपा फिलहाल सबसे आगे है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी, एडीआर के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले चुनाव में जीत का परचम लहराकर भाजपा के 53.2 फीसदी दागी उम्मीदवार विधानसभा में पहुंचे थे तो सूबे में सरकार चला रही समाजवादी पार्टी के 49.6 फीसदी दागी प्रत्याशी विधायक बने थे। कांग्रेस के 46.4 फीसदी और बसपा के 36.3 फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2012 में 40 ऐसे विधायक बने, जो सिर्फ दसवीं पास थे। तीन विधायकों ने तो यह तक नहीं बताया कि वे पढ़े-लिखे हैं भी या नहीं ? जबकि, विभिन्न दलों से चुनकर आए 116 विधायक सिर्फ बारहवीं तक पढ़े हुए थे।
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    नाते-रिश्तेदारों पर भी कसेगा शिकंजा
    सहारनपुर। राजनीतिक क्षेत्र में और खासकर, निर्वाचन प्रक्रिया में स्वच्छता लाने की दिशा में न्यायपालिका के साथ चुनाव आयोग भी लगातार सक्रिय है। इसी दृष्टिकोण के साथ, आयोग ने हाल में उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उम्मीदवारों के लिए यह अनिवार्य बनाया जाना चाहिए कि वे नामांकन पत्र भरते समय अपने साथ पारिवारिक सदस्यों की आय के स्रोत का भी खुलासा करें। ताकि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता लायी जा सके। चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में भी संशोधन की मांग की है ताकि किसी उम्मीदवार को न सिर्फ तब अयोग्य ठहराया जा सके जब उसका सरकार के साथ अनुबंध चल रहा हो, बल्कि तब भी अयोग्य ठहराया जा सके जब उसके परिवार के किसी सदस्य का भी इसी तरह का वित्तीय समझौता हो। 
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