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    Friday 20 January 2017

    औवेसी ने सपा-भाजपा और कांग्रेस पर साधा निशाना, बसपा को दी ‘ढील‘ - Owaisi in UP Election 2017

    • -- सहारनपुर में एआईएमआईएम सुप्रीमो को सुनने उमड़े समर्थक 
    • -- पीएम मोदी से लेकर अखिलेश तक रहे ओवैसी के निशाने पर 
    • -- कांग्रेस पर भी बरसे ओवैसी, बसपा पर बोलने से किया परहेज
    • -- आयोजकों में झलका तालमेल और अनुशासन का स्पष्ट अभाव

    पवन शर्मा 
    सहारनपुर। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलिमीन की सहारनपुर में आयोजित पहली रैली में राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी अपने चिरपरिचित अंदाज में सपा-भाजपा से लेकर कांग्रेस तक के लिए तो खूब ‘गरम‘ हुए लेकिन, बसपा के मामले में उनकी ‘पतंग‘ कुल मिलाकर ‘ढील‘ ही देती रही। वहीं, औवेसी की अपनी पार्टी प्रत्याशी तलत खान समेत मंच पर मौजूद तमाम वक्ताओं की पूरी ‘फौज‘ रैली में कुल मिलाकर ‘बे-दम‘ ही नजर आई। काबिल-ए-गौर पहलू यह रहा कि औवेसी ने तो अपने पूरे संबोधन में विकास के मुद्दे को केंद्र में रखा जबकि, उन्हें छोड़कर अन्य किसी भी नेता ने इस मसले पर बोलना तक गवारा नहीं किया।  
    एआईएमआईएम की सहारनपुर में आयोजित पहली सियासी रैली में आयोजकों की उम्मीद से बेहतर भीड़ तो जरूर जुटी लेकिन, पार्टी प्रत्याशी से लेकर आयोजकों का पूरा अमला कुल मिलाकर बस रटा-रटाया ‘राग‘ ही अलापता नजर आया। आलम यह रहा कि, मंच पर लंबी-लंबी तकरीरों के दौरान तमाम वक्ताओं ने विकास के मसले पर ख्याल-ए-इजहार करने के बजाय सिर्फ सांप्रदायिकतावाद और कौम की बदहाली सरीखे मुद्दों पर ही फोकस रखा। औवेसी ने भी गांधी पार्क मैदान में जुटे अपने समर्थकों से लेकर मीडियाकर्मियों तक को लंबा इंतजार कराया। तय वक्त से करीब साढ़े चार घंटे देरी से पहुंचे औवेसी ने सबसे पहले पीएम नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया। उन्होंने सवाल पूछा कि, ढाई साल से अधिक कार्यकाल में मोदी सरकार ने आखिर ऐसा क्या किया, जिसका वादा उन्होंने चुनाव के दौरान जनता से किया था ? न तो उन्होंने अपने एजेंडे के अनुरूप एक करोड़ युवाओं को रोजगार दिया और न ही मंहगाई कम की। उल्टे गरीब की थाली पहुंच से बाहर करने के साथ ही पेट्रोल-डीजल के दाम जरूर बढ़ा दिए। आतंकवाद पर भी यह सरकार नाकाम साबित हुई है, जिसने देश के सैन्य ठिकानों तक पर दहशतगर्दों तक को घुसा दिया। सबसे बड़ा जुल्म तो नोटबंदी ने किया है, जिससे गरीब पूरी तरह बर्बाद हो गया। विदेशों से काला धन लाने में पूरी तरह फेल मोदी सरकार के इस कदम से सहारनपुर में भी न जाने कितने गरीब-मजदूर तबाह हो गए हैं, जो यहां के विश्वप्रसिद्ध काष्ठकला कारोबार से रोजी-रोटी कमा रहे थे। पीएम मोदी पुरानी योजनाओं पर अपना मुलम्मा चढ़ाकर लोकप्रियता पाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन, जनता उनकी असलियत से बखूबी वाकिफ है। नोटबंदी ने सैकड़ों लोगों को बेमौत मार दिया। 
    औवेसी ने कहा कि, मोदी लोकप्रियता के लिए कुछ भी कर सकते हैं, जिसका ताजा उदाहरण उन्होंने चरखे के साथ बापू के बजाय अपनी तस्वीर लगाकर पेश किया है। यदि इस तरह मोदी सोचते हैं कि, वे ‘बापू‘ बन जाएंगे तो यह उनकी गलतफहमी भर है। उन्होंने भाजपा की परिवर्तन रैलियों को निशाने पर लेते हुए तंजिया लहजे में कहा कि, इस पार्टी के सुप्रीमो अमित शाह बखूबी समझ लें कि हिंदुस्तान में सबसे बड़ा ‘शाह‘ यहां की अवाम है। हर मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार अपनी मुखालफत करने वालों को ‘देशद्रोही‘ ठहरा रही है। लेकिन, हमें जम्हूरियत पर पूरा यकीन है और हम अपना हक हर हाल में लेकर रहेंगे। औवेसी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पीएम नरेंद्र मोदी को एक ही सिक्के के दो पहलू बताते हुए कहा कि, अखिलेश आज ‘साइकिल‘ मिलने पर खुशियां मना रहे हैं, जश्न में डूबे हैं लेकिन, जिस पिता ने उन्हें अंगुली पकड़कर साइकिल पर बैठना सिखाया, आज उसी को उन्होंने बड़े तरीके से किनारे कर दिया। अखिलेश चहुंमुखी विकास का दावा करते हैं लेकिन, खुद के खोखले प्रचार के सिवा उनके पास गिनाने के लिए कुछ नहीं। अखिलेश के राज में कानून-व्यवस्था ध्वस्त है। गरीब-मजदूर तबके पर जुल्मोसितम का दौर है। किसी के साथ इंसाफ नहीं हो रहा। अखिलेश और उनके कुनबे के लोग सिर्फ यादव परिवार का भला करना जानते हैं। उनके लिए विकास का मतलब सिर्फ सैफई में हर साल होने वाला ‘नाच-गाना‘ और इटावा में जू भर बनवाना है। विकास के नाम पर केवल पत्थर लगाने वाली इस सियासी जमात के लोगों का गरीबों से कुछ भी लेना-देना नहीं। अब तो ‘27 साल-यूपी बेहाल‘ का राग अलापने वाली कांग्रेस भी उनके साथ हो गई है लेकिन, याद रखना होगा कि, सौ साल पुरानी इस पार्टी के लोग चाहे साइकिल पर आगे बैठ जाएं और चाहें पीछे मगर, यूपी की राह पर न साइकिल चलेगी और न पंजा ही कुछ कर सकेगा। उन्होंने सामने मौजूद समर्थकों से जज्बाती लहजे में कहा कि, आपने अब तक सबका साथ दिया। फिर वे चाहे लालबहादुर शास्त्री से लेकर वीपी सिंह, चंद्रशेखर, आईके गुजराल ही क्यों न रहे हों लेकिन, पहली बार आप सब खुद का साथ दें। सोचना होगा कि, अगर कांग्रेस, सपा या बसपा में दम होता तो क्या भाजपा को यूपी की सरजमीं पर लोकसभा चुनाव में 70 सीट मिल सकती थीं ? तब तो कोई औवेसी यहां वोट काटने नहीं आया था। लिहाजा, वक्त आ चुका है, जब बहुत इत्मीनान से अपने भविष्य की खातिर एआईएमआईएम का परचम लहराने में हर शख्स अपना भरपूर योगदान दे।




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