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    Sunday, 15 January 2017

    पासे...! - Poem

    पासे तो बस पासे हैं
    फेंके जाते हैं बरबस ही...
    किस्मत आजमाने के लिए 
    कभी लग जाते हैं दांव पर 
    तो कभी कर देते हैं मायूस 
    बोल पड़ते तो भी 
    भला क्या था इनके हक में 
    ख़ामोश रहना है नियति 
    पासे तो बस पासे हैं 
    फेंके जाते हैं बरबस ही...! 
    देखते सब कुछ हैं मगर 
    इन्हें देखने की फुर्सत किसे 
    बाजी-दर-बाजी बस यूं ही 
    लुढ़कते रहते हैं इधर से उधर
    गिने-चुने नंबरों को ढोते हुए 
    खेल को देते हैं नित नए मोड़
    मगर ख़ुद की मंज़िल पाते नहीं 
    पासे तो बस पासे हैं 
    फेंके जाते हैं बरबस ही...!
    आगाज़ नहीं, अंजाम भी नहीं 
    पटकथा के फकत किरदार ही तो हैं 
    मुखौटों सी है गुमनाम जिंदगी 
    साथ भला कब तक निभाएंगे ये ?
    सुनो-संभल जाओ, वक्त है अभी 
    पासे तो बस पासे हैं 
    फेंके जाते हैं बरबस ही...!!! 

    @ पवन शर्मा ‘उन्मुक्त‘
    pawansharma.journalist@gmail.com





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