पहले नोटबंदी की मार, अब आचार संहिता की तलवार
-- न जश्न मनाने की छूट, न फिजूलखर्ची की इजाजत
-- सियासी बयानबाजी से लेकर विज्ञापन तक रडार पर
-- बदले हालात में टेंशन के शिकार चुनावी रणनीतिकार
जन लीडर न्यूज़
सहारनपुर। जश्न का मौका हो या जनकल्याण से जुड़ी कोई भी बहुप्रचारित मुहिम। चुनावी मौसम में ऐसे हर छोटे-बड़े घटनाक्रम पर प्रशासनिक अमले से लेकर सीधे निर्वाचन आयोग की पैनी निगाह लगातार बनी है। आलम यह है कि, चुनावी लक्ष्य साधने की खातिर किसी भी बहाने मीडिया को प्रचुरता से जारी किए गए विज्ञापन तक अब पल-पल सरकारी मशीनरी के ‘रडार‘ पर हैं। नतीजतन, तमाम सियासी दल हालात की नजाकत के चलते बहुत सोच-विचार के बाद ही इस दिशा में कोई कदम उठा रहे हैं।
चुनावी काउंट डाउन के बीच आचार संहिता का पालन सुनिश्चित कराने के लिए निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशानुसार पुलिस प्रशासन का पूरा अमल दिन-रात खासी सतर्कता बरत रहा है। चूंकि, आचार संहिता के उल्लंधन करने पर चुनाव या उम्मीदवारी निरस्त भी की जा सकती है, लिहाजा तमाम सियासी खेमों में इस पहलू के चलते अलग ही टेंशन नजर आ रही है। यही कारण है कि, इस बार रविवार को बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन पर न तो हमेशा जैसा जश्न भरा माहौल बन सका और न ही कार्यकर्ताओं या पदाधिकारियों ने जनकल्याणकारी दिवस मनाया। ऐसे हालात में, उन्होंने जन्मदिन की रस्म अदायगी भरके ही काम चलाया। इतना ही नहीं, चुनावी मौसम में इस बार पर्व-त्योहारों और इसी प्रकार के अन्य अवसरों पर मीडिया को बहुतायत से जारी होने वाले विज्ञापनों में भी पहले की तुलना में कटौती साफ नजर आ रही है। माना जा रहा है कि, पहले नोटबंदी की मार और अब आचार संहिता की तलवार लटकने के चलते यह स्थिति बनी है।
दरअसल, बीती आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के साथ ही देश भर में लागू हुई नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर उन राज्यों पर पड़ा है, जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। रही-सही कसर अब चुनावी मौसम में निर्वाचन आयोग की ओर से आचार संहिता का पूर्णरूपेन पालन कराने के लिए बरती जा रही सख्ती ने पूरी कर दी है, जिसके नतीजे में तमाम सियासी दलों की हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर प्रशासनिक अमला लगातार नजरें जमाए हुए है। माना जा रहा है कि, बसपा प्रमुख के जन्मदिन पर पूरे प्रदेश में जारी हुए विज्ञापनों के बाबत भी प्रशासनिक स्तर से जानकारी जुटाई जा रही है। इतना ही नहीं, आचार संहिता के अन्य बिंदुओं को लेकर भी खासी सतर्कता बरती जा रही है। इसके तहत, सरकारी तंत्र से घोषित होने वाली योजनाओं और विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के बाबत भी विस्तृत ब्यौरा जुटाया जा रहा है ताकि, इनका बारीकी से विश्लेषण किया जा सके। पुलिस प्रशासन का पूरा अमला इन दिनों सभी छोटे-बड़े दलों के नेताओं की ओर से जारी होने वाले बयानों पर भी नजर रखे हुए है। उल्लेखनीय है कि, आचार संहिता लागू होने के बाद किसी की निजता पर बयान करना उल्लंघन माना जाता है।
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इन पहलुओं पर भी नजर
सहारनपुर। प्रचार के मामले में यह भी देखा जा रहा है कि, इसके लिए कहीं किसी संपत्ति का बेजा इस्तेमाल तो नहीं हो रहा। दरअसल, उम्मीदवार हो या कोई भी राजनीतिक पार्टी, किसी निजी व्यक्ति की जमीन, बिल्डिंग, दीवार का इस्तेमाल भी बिना इजाजत नहीं कर सकते। इसके अलावा, चुनाव के दौरान, सरकारी दौरों, सरकारी वाहनों के प्रयोग, सरकारी बंगले और पैसे के इस्तेमाल, पैसे का इस्तेमाल, राजनीतिक कार्यक्रमों की तैयारी, जाति-धर्म या भाषा आदि से जुड़े राजनीतिक वक्तव्यों, मतदाताओं को किसी भी रूप में डराने-धमकाने, मतभेद बढ़ाने या प्रलोभन देने के प्रयास, धार्मिक स्थलों को चुनाव प्रचार के मंच की तरह इस्तेमाल करने, निषेधाज्ञा के अनुपालन और ध्वनि विस्तारक यंत्रों के प्रयोग आदि पहलुओं पर भी लगातार नजर रखी जा रही है ताकि, किसी भी स्तर पर नियमों का उल्लंघन होते ही निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशानुसार सख्त कार्रवाई अमल में लाई जा सके।
-- न जश्न मनाने की छूट, न फिजूलखर्ची की इजाजत
-- सियासी बयानबाजी से लेकर विज्ञापन तक रडार पर
-- बदले हालात में टेंशन के शिकार चुनावी रणनीतिकार
जन लीडर न्यूज़
सहारनपुर। जश्न का मौका हो या जनकल्याण से जुड़ी कोई भी बहुप्रचारित मुहिम। चुनावी मौसम में ऐसे हर छोटे-बड़े घटनाक्रम पर प्रशासनिक अमले से लेकर सीधे निर्वाचन आयोग की पैनी निगाह लगातार बनी है। आलम यह है कि, चुनावी लक्ष्य साधने की खातिर किसी भी बहाने मीडिया को प्रचुरता से जारी किए गए विज्ञापन तक अब पल-पल सरकारी मशीनरी के ‘रडार‘ पर हैं। नतीजतन, तमाम सियासी दल हालात की नजाकत के चलते बहुत सोच-विचार के बाद ही इस दिशा में कोई कदम उठा रहे हैं।
चुनावी काउंट डाउन के बीच आचार संहिता का पालन सुनिश्चित कराने के लिए निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशानुसार पुलिस प्रशासन का पूरा अमल दिन-रात खासी सतर्कता बरत रहा है। चूंकि, आचार संहिता के उल्लंधन करने पर चुनाव या उम्मीदवारी निरस्त भी की जा सकती है, लिहाजा तमाम सियासी खेमों में इस पहलू के चलते अलग ही टेंशन नजर आ रही है। यही कारण है कि, इस बार रविवार को बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन पर न तो हमेशा जैसा जश्न भरा माहौल बन सका और न ही कार्यकर्ताओं या पदाधिकारियों ने जनकल्याणकारी दिवस मनाया। ऐसे हालात में, उन्होंने जन्मदिन की रस्म अदायगी भरके ही काम चलाया। इतना ही नहीं, चुनावी मौसम में इस बार पर्व-त्योहारों और इसी प्रकार के अन्य अवसरों पर मीडिया को बहुतायत से जारी होने वाले विज्ञापनों में भी पहले की तुलना में कटौती साफ नजर आ रही है। माना जा रहा है कि, पहले नोटबंदी की मार और अब आचार संहिता की तलवार लटकने के चलते यह स्थिति बनी है।
दरअसल, बीती आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के साथ ही देश भर में लागू हुई नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर उन राज्यों पर पड़ा है, जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। रही-सही कसर अब चुनावी मौसम में निर्वाचन आयोग की ओर से आचार संहिता का पूर्णरूपेन पालन कराने के लिए बरती जा रही सख्ती ने पूरी कर दी है, जिसके नतीजे में तमाम सियासी दलों की हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर प्रशासनिक अमला लगातार नजरें जमाए हुए है। माना जा रहा है कि, बसपा प्रमुख के जन्मदिन पर पूरे प्रदेश में जारी हुए विज्ञापनों के बाबत भी प्रशासनिक स्तर से जानकारी जुटाई जा रही है। इतना ही नहीं, आचार संहिता के अन्य बिंदुओं को लेकर भी खासी सतर्कता बरती जा रही है। इसके तहत, सरकारी तंत्र से घोषित होने वाली योजनाओं और विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के बाबत भी विस्तृत ब्यौरा जुटाया जा रहा है ताकि, इनका बारीकी से विश्लेषण किया जा सके। पुलिस प्रशासन का पूरा अमला इन दिनों सभी छोटे-बड़े दलों के नेताओं की ओर से जारी होने वाले बयानों पर भी नजर रखे हुए है। उल्लेखनीय है कि, आचार संहिता लागू होने के बाद किसी की निजता पर बयान करना उल्लंघन माना जाता है।
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इन पहलुओं पर भी नजर
सहारनपुर। प्रचार के मामले में यह भी देखा जा रहा है कि, इसके लिए कहीं किसी संपत्ति का बेजा इस्तेमाल तो नहीं हो रहा। दरअसल, उम्मीदवार हो या कोई भी राजनीतिक पार्टी, किसी निजी व्यक्ति की जमीन, बिल्डिंग, दीवार का इस्तेमाल भी बिना इजाजत नहीं कर सकते। इसके अलावा, चुनाव के दौरान, सरकारी दौरों, सरकारी वाहनों के प्रयोग, सरकारी बंगले और पैसे के इस्तेमाल, पैसे का इस्तेमाल, राजनीतिक कार्यक्रमों की तैयारी, जाति-धर्म या भाषा आदि से जुड़े राजनीतिक वक्तव्यों, मतदाताओं को किसी भी रूप में डराने-धमकाने, मतभेद बढ़ाने या प्रलोभन देने के प्रयास, धार्मिक स्थलों को चुनाव प्रचार के मंच की तरह इस्तेमाल करने, निषेधाज्ञा के अनुपालन और ध्वनि विस्तारक यंत्रों के प्रयोग आदि पहलुओं पर भी लगातार नजर रखी जा रही है ताकि, किसी भी स्तर पर नियमों का उल्लंघन होते ही निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशानुसार सख्त कार्रवाई अमल में लाई जा सके।
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