तिरूपति : मूलभूत विज्ञान से लेकर अनुप्रयोगिक विज्ञान तक की विभिन्न शाखाओं को समर्थन देने और नवोन्मेष पर जोर देने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करने के साथ-साथ आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों से विध्वंसक प्रौद्योगिकियों के उदय पर नजर रखने के लिए भी कहा है।
भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 104वें सत्र के उद्घाटन अवसर पर अपने संबोधन में मोदी ने ‘साइबर-फिजीकल तंत्रों के त्वरित वैश्विक उदय’ को एक ऐसा अहम क्षेत्र बताया, जिसपर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह अभूतपूर्व चुनौतियां पेश कर सकता है और देश की युवा आबादी से मिलने वाले लाभ पर बुरा असर डाल सकता है।
उन्होंने कहा, ‘लेकिन हम रोबोट विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल उत्पादन, वृहद आंकड़ा विश्लेषण, गहन अध्ययन, क्वांटम संचार और ‘इंटरनेट-ऑफ थिंग्स’ में अनुसंधान, प्रशिक्षण और कौशल के जरिए इसे बड़े अवसर के रूप में तब्दील कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इन प्रौद्योगिकियों का विकास करने और इनका दोहन सेवा एवं उत्पादन क्षेत्रों में कृषि में, जल, ऊर्जा व यातायात प्रबंधन, स्वास्थ्य, पर्यावरण, सुरक्षा, अवसंरचना एवं भू सूचना तंत्रों में किए जाने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि आज पेश आने वाली चुनौतियों की गति और स्तर अभूतपूर्व है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरी सरकार वैज्ञानिक ज्ञान की विभिन्न शाखाओं को सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है, ये शाखाएं मूलभूत विज्ञान से लेकर अनुप्रयोगिक विज्ञान तक हैं और इसमें नवोन्मेष पर खास जोर है। इनमें से कुछ अहम चुनौतियां स्वच्छ जल एवं ऊर्जा, भोजन, पर्यावरण, जलवायु, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे अहम क्षेत्रों से जुड़ी हैं।’ उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की एक ऐसी मजबूत अवसंरचना बनाने की है, जिस तक अकादमिक क्षेत्र, स्टार्ट-अप, उद्योग और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं की पहुंच हो। उन्होंने कहा कि आसान पहुंच, रखरखाव, वैज्ञानिक संस्थानों के महंगे वैज्ञानिक उपकरणों के बेकार हो जाने और उनके प्रतिरूपों संबंधी समस्याओं को सुलझाया जाना जरूरी है।
उन्होंने कहा, ‘निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत पेशेवर प्रबंधन वाले उन बड़े क्षेत्रीय केंद्रों की स्थापना की वांछनीयता को परखा जाना चाहिए, जिनमें महंगे वैज्ञानिक उपकरण लगे हों।’ एससीओपीयूएस डेटाबेस में भारत को वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामले में विश्व में छठे स्थान पर रखे जाने और चार प्रतिशत के वैश्विक औसत की तुलना में इसके लगभग 14 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि वर्ष 2030 तक भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शीर्ष तीन देशों में शामिल होगा और यह दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ कुशल लोगों के पसंदीदा स्थानों में से एक होगा।
एससीओपीयूएस एक ग्रंथ सूची संबंधी डेटाबेस है, जिसमें अकादमिक जर्नल के लेखों के लिए सारांश और उद्धरण दिए होते हैं। उन्होंने संस्थानों से कहा कि वे अनुसंधान संबंधी दीर्घकालिक जुड़ावों के लिए प्रवासी भारतीयों समेत विदेशों से होनहार वैज्ञानिकों को बुलाने पर विचार करें। उन्होंने कहा, ‘हमें अपनी परियोजनाओं में पोस्ट-डॉक्टरल अनुसंधान के लिए विदेशी और प्रवासी भारतीय पीएचडी छात्रों को शामिल करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि विज्ञान को हमारी जनता की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि शहरी-ग्रामीण विभाजन की समस्याओं का निपटान और समावेशी विकास, आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन का काम इसके जरिए किया जाना चाहिए।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी को हमारे समाज के सबसे कमजोर और गरीब तबकों के समावेशी विकास और बेहतरी का मजबूत साधन बनाने के लिए कहते हुए उन्होंने कहा कि मंत्रालयों, वैज्ञानिकों, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, उद्योगों, स्टार्टअप, विश्वविद्यालयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सभी को साथ मिलकर काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘विशेष तौर पर, हमारे अवसंरचना और सामाजिक-आर्थिक मंत्रालयों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उचित इस्तेमाल करना चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन हम रोबोट विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल उत्पादन, वृहद आंकड़ा विश्लेषण, गहन अध्ययन, क्वांटम संचार और ‘इंटरनेट-ऑफ थिंग्स’ में अनुसंधान, प्रशिक्षण और कौशल के जरिए इसे बड़े अवसर के रूप में तब्दील कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इन प्रौद्योगिकियों का विकास करने और इनका दोहन सेवा एवं उत्पादन क्षेत्रों में कृषि में, जल, ऊर्जा व यातायात प्रबंधन, स्वास्थ्य, पर्यावरण, सुरक्षा, अवसंरचना एवं भू सूचना तंत्रों में किए जाने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि आज पेश आने वाली चुनौतियों की गति और स्तर अभूतपूर्व है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरी सरकार वैज्ञानिक ज्ञान की विभिन्न शाखाओं को सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है, ये शाखाएं मूलभूत विज्ञान से लेकर अनुप्रयोगिक विज्ञान तक हैं और इसमें नवोन्मेष पर खास जोर है। इनमें से कुछ अहम चुनौतियां स्वच्छ जल एवं ऊर्जा, भोजन, पर्यावरण, जलवायु, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे अहम क्षेत्रों से जुड़ी हैं।’ उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की एक ऐसी मजबूत अवसंरचना बनाने की है, जिस तक अकादमिक क्षेत्र, स्टार्ट-अप, उद्योग और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं की पहुंच हो। उन्होंने कहा कि आसान पहुंच, रखरखाव, वैज्ञानिक संस्थानों के महंगे वैज्ञानिक उपकरणों के बेकार हो जाने और उनके प्रतिरूपों संबंधी समस्याओं को सुलझाया जाना जरूरी है।
उन्होंने कहा, ‘निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत पेशेवर प्रबंधन वाले उन बड़े क्षेत्रीय केंद्रों की स्थापना की वांछनीयता को परखा जाना चाहिए, जिनमें महंगे वैज्ञानिक उपकरण लगे हों।’ एससीओपीयूएस डेटाबेस में भारत को वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामले में विश्व में छठे स्थान पर रखे जाने और चार प्रतिशत के वैश्विक औसत की तुलना में इसके लगभग 14 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि वर्ष 2030 तक भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शीर्ष तीन देशों में शामिल होगा और यह दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ कुशल लोगों के पसंदीदा स्थानों में से एक होगा।
एससीओपीयूएस एक ग्रंथ सूची संबंधी डेटाबेस है, जिसमें अकादमिक जर्नल के लेखों के लिए सारांश और उद्धरण दिए होते हैं। उन्होंने संस्थानों से कहा कि वे अनुसंधान संबंधी दीर्घकालिक जुड़ावों के लिए प्रवासी भारतीयों समेत विदेशों से होनहार वैज्ञानिकों को बुलाने पर विचार करें। उन्होंने कहा, ‘हमें अपनी परियोजनाओं में पोस्ट-डॉक्टरल अनुसंधान के लिए विदेशी और प्रवासी भारतीय पीएचडी छात्रों को शामिल करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि विज्ञान को हमारी जनता की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि शहरी-ग्रामीण विभाजन की समस्याओं का निपटान और समावेशी विकास, आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन का काम इसके जरिए किया जाना चाहिए।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी को हमारे समाज के सबसे कमजोर और गरीब तबकों के समावेशी विकास और बेहतरी का मजबूत साधन बनाने के लिए कहते हुए उन्होंने कहा कि मंत्रालयों, वैज्ञानिकों, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, उद्योगों, स्टार्टअप, विश्वविद्यालयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सभी को साथ मिलकर काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘विशेष तौर पर, हमारे अवसंरचना और सामाजिक-आर्थिक मंत्रालयों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उचित इस्तेमाल करना चाहिए।’
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