-- चलती एस्काॅर्ट से बंदियों की फरारी का प्रकरण -- अब तक उठाए कदमों से अफसर खुद कटघरे में
अमित गुप्ता
सहारनपुर। बहुचर्चित बंदी फरारी मामले में एसएसपी की ओर से की गई ‘आधी-अधूरी‘ कार्रवाई को लेकर तमाम सवाल खड़े हो गए हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि, कार्रवाई के शिकार बने पुलिसकर्मियों ने अब इस पूरे घटनाक्रम से जुड़े जो चैंकाने वाले खुलासे किए हैं, उनकी रोशनी में विभाग के आला अधिकारी अब खुद कटघरे में खड़े नजर आ रहे हैं।
मामला बीती पांच जनवरी का है, जब 59 बंदियों को एक गाड़ी में भरकर कचहरी में पेशी के लिए लाया गया था। इस कार्य में आरआई ताहिर हसन ने एक दारोगा सहित 10 पुलिसकर्मियों और एस्काॅर्ट की ड्यूटी लगाई थी। कंट्रोल रूम से एस्काॅर्ट में भेजे गये पुलिसकर्मी बंदियों को कचहरी छोड़ तो गये लेकिन, जब बंदियों को वापस जिला कारागार ले जाया जा रहा था तो उनकी गाड़ी के साथ न तो एस्काॅर्ट थी और न ही वे पांच पुलिसकर्मी, जो बंदियों के पहरे और रक्षा के लिए लगाए गये थे। सूत्रों की मानें तो, जब सदर हवालात से 59 बंदियों को एक ही गाड़ी मंे ले जाया जा रहा था तो कोर्ट में तीन कैदियों को सजा सुनाई गई थी। इन्हीं कैदियों के कागज तैयार कराने में दारोगा समरपाल को कुछ देरी हो गई। हालांकि, वे थोड़ी ही देर बाद बंदी वाहन के साथ आ गए थे। परंतु बंदियों को जिला कारागार ले जाते समय न एस्काॅर्ट थी और न ही वे पांच पुलिसकर्मी। यानी नरेंद्र राठी, सरदार सिंह, उपेंद्र, प्रीतम, हेड कांस्टेबल राजपाल। हैरानी की बात यह है कि इनमें शामिल दारोगा समरपाल सहित चार पुलिसकर्मियों को तो निलंबित कर दिया गया लेकिन, जो अन्य पुलिसकर्मी ड्यूटी के दौरान उपस्थित नहीं थे, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी के चलते, कप्तान का ‘आधा-अधूरा‘ एक्शन सवालों में घिर गया है। इसी के मद्देनजर, इन निलंबित पुलिसकर्मियों में शामिल एक कांस्टेबल ने नाम न छापने की शर्त पर सवाल उठाया कि, कप्तान ने लापरवाही के चलते आरआई ताहिर हसन, दारोगा समरपाल सहित पांच पुलिसकमियों को निलंबित किया है तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई, जो ड्यूटी के वक्त मौजूद ही नहीं थे ? उल्लेखनीय है कि इस मामले में आरआई सहित छह पुलिसकर्मियों पर धारा 222 लगाई गई थी। फिलहाल, इन पुलिसकर्मियों में शामिल आरआई ताहिर हसन का निलंबन वापस लिया गया है।
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...तो क्यों बिठाए बंदी ?
सहारनपुर। पुलिस सूत्रों के अनुसार, पुलिस लाइन की तीन गाड़ियांे से बंदियों को लाया जाता है। इन गाड़ियों का मुआयना हर शुक्रवार को खुद कप्तान करते हैं। इस घटना से ऐन पहले भी कप्तान ने लाइन में मौजूद सभी वाहनों का मुआयना किया था। इसके बावजूद, बंदियों ने आसानी से एक गाड़ी की जाली तोड़ दी। जबकि, कप्तान के मुआयने के बाद ही गाड़ियों के परिचालन को हरी झंडी मिलती है। सवाल स्वाभाविक है कि, जब गाड़ियों का मेंटेनेंस ठीक नहीं था तो उनमें बंदी क्यों बिठाये गये? वहीं, दिलचस्प पहलू यह है कि, बंदी फरारी के बाद कप्तान ने सबक लेने की तर्ज पर गाड़ियों में लोहे की राॅड लगाने का आदेश दिया। जबकि यदि यह कार्य घटना से पहले ही कर लिया जाता तो बंदी इतनी आसानी से फरार ही न हो पाते।
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