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    Saturday 21 January 2017

    चुनावी ‘मंझधार‘ में भाजपा थामेगी हिंदुत्व की ‘पतवार‘- Sahranpur News

    बगावत ने ‘खेल‘ बिगाड़ा, अब ध्रुवीकरण का सहारा

    -- चुनावी जंग के शुरुआती दौर में ही भाजपा का हाल बेहाल
    -- गुटबाजी के चलते बढ़ी बड़े पैमाने पर बिखराव की आशंका
    -- दलबदलुओं की आमद से ज्यादातर सीटों पर बढ़ी मुश्किल
    -- चुनावी आंच में सुलगाए जाएंगे दंगों और पलायन के मुद्दे 

    पवन शर्मा 
    सहारनपुर। चुनावी जंग के आरंभिक दौर में ही भाजपा के महारथियों को चौतरफा संकट ने घेर लिया है। एक तरफ संगठन में सिरे तक गहराई गुटबाजी तो दूसरी ओर, नेताओं में चरम तक पहुंचे आपसी मतभेदों के चलते पार्टी को चिंता सता रही है कि, समय रहते ठोस कदम नहीं उठाया तो हालात नाजुक मोड़ ले सकते हैं। लिहाजा, अब ‘ब्रह्मास्त्र‘ की तर्ज पर बड़ा दांव खेलने की तैयारी की गई है। इसके लिए, बेहद सुनियोजित ढंग से सहारनपुर समेत पूरे वेस्ट यूपी में हिंदुत्व के मुद्दे को हवा देने की योजना है ताकि, चुनावी ‘मंझधार‘ में एक बार फिर ध्रुवीकरण की ‘पतवार‘ थामकर ‘नैया‘ पार लगाई जा सके। 
    2013 में मुजफ्फरनगर और फिर 2014 में सहारनपुर में हुए दंगे से बने सांप्रदायिक माहौल का भाजपा ने भरपूर सियासी लाभ उठाया। लोकसभा चुनाव में तो ध्रुवीकरण का दांव इतना कारगर रहा कि, यूपी से भाजपा ने 73 सीट झटक लीं। 2014 के सहारनपुर दंगे के बाद हुए उपचुनाव में भी यहां एक बार फिर भाजपा ने जीत का परचम लहराया। इससे बखूबी साबित हुआ कि, चुनाव में हिंदुत्व का मुद्दा भुनाकर भाजपा अपने पक्ष में माहौल बना सकती है। यही वजह है कि, पार्टी ने विधानसभा चुनाव की सबसे बड़ी जंग में भी एक बार फिर यही पैंतरा आजमाने का फैसला किया है। खासकर वेस्ट यूपी में, जहां दंगों के साथ कैराना पलायन का मुद्दा भी उसके चुनाव अभियान को धार दे सकता है। हालांकि, पहले इस ‘सीक्रेट प्लान‘ को लेकर भाजपा के सांगठनिक गलियारों में कुछ असमंजस की स्थिति भी उभर रही थी लेकिन, अब जिस तरह प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होते ही पार्टी के सांगठनिक गलियारों में चौतरफा बगावत के सुर उभरे हैं, उससे भाजपा के तमाम रणनीतिकार नई तेजी के साथ योजना को अमली जामा पहनाने में जुट गए हैं।  
    दरअसल, भाजपा नेतृत्व इस कड़वी हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ है कि, मौजूदा हालात में विधानसभा चुनाव के जरिए यूपी की सत्ता का सफर तय कर  पाना उसके लिए कतई आसान नहीं है। एक तरफ जहां नोटबंदी से बुरी तरह प्रभावित हुए आम लोगों का एक बड़ा तबका उससे छिटक सकता है वहीं, उसके सांसदों ने भी अपने अभी तक के कार्यकाल में बहुत बेहतर काम नहीं किया है। नतीजतन, ऐसे हालात में भाजपा के पास अब एक बार फिर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का बहुत हद तक ‘फुलप्रूफ‘ दांव आजमाने का ही विकल्प बचा है। चूंकि, सहारनपुर व मुजफ्फरनगर समेत पूरे वेस्ट यूपी में शुरुआती चरण में ही मतदान होना है और धार्मिक-जातिगत नजरिए से इस इलाके की अलग ही अहमियत है, लिहाजा भाजपा भरसक कोशिश कर रही है कि किसी भी तरह यहां मतदाताओं को धार्मिक आधार पर गोलबंद कर लिया जाए। 
    हालांकि, पूरा सच यह है कि इस दिशा में पार्टी के प्रयास बहुत पहले से चल रहे हैं। मसलन, कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाने में जहां भाजपा के बड़े नेताओं से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह तक ने कोई कमी नहीं छोड़ी वहीं मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपियों को इस बार टिकट देकर भी पार्टी ने अपने इरादे बखूबी जगजाहिर कर दिए हैं। चूंकि, मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पूरे वेस्ट यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण छिन्न-भिन्न हो चुका है, अतः ऐसे हालात में भाजपा एक बार फिर ध्रुवीकरण के सहारे उन तमाम चुनौतियों से पार पाना चाहती है, जिसने उसके रणनीतिकारों के साथ चुनाव मैदान में उतरे महारथियों तक की नींद उड़ा रखी है। यह बात दीगर है कि, फिलहाल पूरी तरह खामोशी ओढ़े मतदाताओं के बीच ऐसा कोई संकेत सामने नहीं आ रहा, जिससे हवा का रुख भाजपा की ओर जाता दिखाई दे। इसके बावजूद, भाजपा ने सहारनपुर समेत वेस्ट यूपी के तमाम जिलों में तगड़ी मोर्चाबंदी कर दी है ताकि, आरएसएस और विभिन्न हिंदू संगठनों को साथ लेकर हिंदुत्व के मुद्दे को सुनियोजित ढंग से धार दी सके। 
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    मुस्लिम वोटों के बंटवारे पर नजर
    सहारनपुर। पार्टी में चैतरफा उठ रहे भितरघात और बगावत के सुरों से चिंतित भाजपा सहारनपुर समेत पूरे वेस्ट यूपी में मुस्लिम वोटों के बंटवारे पर भी लगातार नजर बनाए हुए है। दरअसल, उसका स्पष्ट नजरिया है कि, यदि मुस्लिम वोट विभाजित होते हैं तो उसके लिए जीत की राह आसान हो जाएगी। सियासी ऐतबार से यह पहलू इसलिए बेहद अहम है क्योंकि, इस बार न केवल सपा बल्कि, बसपा भी पुरजोर ढंग से मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की रणनीति पर अमल कर रही है। उसने करीब सौ मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है, जिनसे मुस्लिम वोट बंटने के आसार हैं। लेकिन, अगर ऐसा नहीं होता और कोई पार्टी एकतरफा मुस्लिम वोट हासिल कर लेती है तो भाजपा के अरमानों पर पानी फिर जाएगा। 

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