पवन शर्मा
- कसौटी पर है ‘नेताजी‘ का तजुर्बा और ‘टीपू‘ का नेतृत्व
- सपा के परंपरागत वोट बैंक में बड़े बिखराव की आशंका
- दो धड़ों में बंटे सपाइयों के सामने असमंजस भरे हालात
सहारनपुर। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ताजातरीन ‘मास्टर स्ट्रोक‘ के बाद ‘डैमेज कंट्रोल‘ में जुटी समाजवादी पार्टी में अब ‘वफादारी‘ का ‘लिटमस टेस्ट‘ होना तय है। एक तरफ, अचानक ‘पिता‘ से पार्टी के ‘पितामह‘ की भूमिका में पहुंचा दिए गए मुलायम का ‘सम्मान‘ दांव पर लगा है तो दूसरी ओर, उन्हीं के ‘युवराज‘ अखिलेश का ‘नेतृत्व‘ कसौटी पर है। लिहाजा, ‘कुरुक्षेत्र‘ में तब्दील हो चुकी लखनऊ की सरजमीं से लेकर पूरे प्रदेश में ‘गतिरोध‘ से जूझ रहे समाजवादियों को अब हर हाल में निर्णायक ‘अग्निपरीक्षा‘ से गुजरना ही होगा ताकि, यह शीशे की मानिंद साफ हो सके कि, ‘सपा संग्राम‘ के ‘महानाटक‘ में किसके चेहरे पर अभी तक ‘मुखौटा‘ ही चढ़ा है और किसका ‘किरदार‘ सही मायने में पाक साफ है ?
दरअसल, राजनीति का सबसे बड़ा सबक यही है कि, यहां न तो कोई स्थायी ‘मित्र‘ है और न ही कोई स्थायी ‘शत्रु‘ ! कुछ इसी तर्ज पर पूरी समाजवादी पार्टी को आज चाहे-अनचाहे इस अजीबोगरीब ‘नियति‘ का शिकार बनाने में तमाम अपनों से लेकर बेगानों तक, हर किसी ने अपना-अपना ‘किरदार‘ बखूबी अदा किया। फिर वे चाहे सियासत की दुनिया के धुरंधर ‘नेताजी‘ यानी मुलायम सिंह यादव रहे हों या फिर सपा के नए ‘सुल्तान‘ बन चुके खुद उनके ही लख्त-ए-जिगर अखिलेश। शायद इसीलिए, पिता-पुत्र के बीच प्रसंग-दर-प्रसंग आगे बढ़े इस ‘सपा संग्राम‘ में हर कोई उस ‘सस्पेंस‘ से ‘पर्दा‘ उठने का इंतजार कर रहा था, जिसके बाद यह खुलासा हो सके कि, सही मायने में आखिर कौन ‘अपना‘ है और कौन ‘पराया‘ ? आखिरकार, तमाम उतार-चढ़ाव से गुजरने के बाद रविवार को यह निर्णायक घड़ी आ भी गई और जबरदस्त ‘मास्टरस्ट्रोक‘ की बदौलत अखिलेश के सिर बतौर सपा सुप्रीमो, पूरी पार्टी का ‘ताज‘ सजा दिया गया। इसी के साथ, राजधानी लखनऊ से लेकर सूबे के तमाम हिस्सों में, कहीं जश्न का दौर शुरू हो गया तो कहीं, पूरे घटनाक्रम से आहत सपाइयों के बीच सकते का आलम नजर आने लगा। यकीनन, इसी रोचक नजारे की पृष्ठभूमि में यह बेहद गंभीर और जरूरी सवाल अब पूरी ताकत के साथ अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहा है कि, क्या अब वाकई ‘आधिकारिक‘ रूप से भी दो धड़ों में बंट चुकी पूरी पार्टी उस ‘लिटमस टेस्ट‘ से गुजरने को तैयार है, जिसके बाद यह स्पष्ट हो सके कि अब समाजवादी रथ आखिर क्या ‘दशा और दिशा‘ अपनाने जा रहा है ?
दरअसल, विधानसभा चुनाव के काउंट डाउन की घड़ियों में इस पड़ाव से गुजरे बिना न तो पार्टी के लिए खुद को ‘डैमेज‘ से बचा पाना मुश्किल होगा और न ही यह साफ हो पाएगा कि, किसकी ‘डोर‘ कौन थामे हुए है ? आम सपाइयों से लेकर पार्टी के दिग्गजों तक, हर कोई चुनावी इम्तिहान में उतरने से ऐन पहले एकाएक इतने बड़े पैमाने पर बदली सियासी तस्वीर के बीच अब अपना-अपना ‘नफा-नुकसान‘ बेहद बारीकी से देख-परख रहा है। कुछ ने हवा का रुख भांपते हुए सूबे में हुकूमत की कमान संभाल रहे पार्टी के नए मुखिया अखिलेश यादव के पक्ष में अपनी ‘निष्ठा‘ जगजाहिर करते हुए इस बाबत खुलकर ऐलान कर दिया है तो कुछ अभी खुद को कुछ और वक्त देने के मूड में हैं। खासकर ऐसे चेहरे, जो पहले भी ऐसे तमाम मौकों पर जमकर ‘गुणा-भाग‘ करने के बाद ही अपनी ‘भूमिका‘ से रहस्य का पर्दा उठाते रहे हैं। यानी, इतना तय है कि, सियासी मोर्चेे पर इतने बड़े ‘महाभारत‘ के बाद पूरी समाजवादी पार्टी फिलवक्त भले ही तमाम किस्म के विरोध और अंतर्विरोध से जूझने को मजबूर हो लेकिन, ‘अवसरवादिता‘ का दांव चलने में माहिर पार्टी के कुछ अपनों से लेकर बेगानों तक, हर कोई इस मौके को भुनाने में किसी भी स्तर पर कोई कोर-कसर नहीं रख छोड़ना चाहता।
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हालात संवेदनशील, विरोधियों की नजर
सहारनपुर। सपा में बिखराव के साथ ही पार्टी में परंपरागत वोट बैंक छिटकने का खतरा भी कई गुना बढ़ गया है। नतीजनत, ऐसे संवेदनशील हालात का फायदा उठाने की खातिर अन्य दल भी खासे सक्रिय हो उठे हैं। खासकर, बसपा और कांग्रेस की निगाह पल-पल के घटनाक्रम पर है ताकि, वक्त की नब्ज थामकर किसी भी तरह फौरन से पेशतर उस मुस्लिम वोट बैंक को अपनी ओर खींच लें, जो हमेशा समाजवादी पार्टी के पाले में नजर आता रहा है। हालांकि, यह सब इतना आसान कतई नहीं होगा क्योंकि, सपा को नए ‘अवतार‘ में ढालने का बीड़ा उठा चुके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहले ही अपनी अभी तक घोषित प्रत्याशियों की लिस्ट में मुस्लिम प्रत्याशियों को अच्छी--खासी नुमाइंदगी दे चुके हैं। पूर्वांचल से लेकर वेस्ट यूपी तक, उन्होंने कई मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेलने के साथ ही इस मामले में कैबिनेट मंत्री आजम खां की पसंद का भी बखूबी ध्यान रखा है। यह बात दीगर है कि, मौजूदा घमासान के बाद अब पूरी पार्टी खुद अपने आंतरिक और सांगठनिक गलियारों में ही जबरदस्त ‘संकट‘ से जूझने को मजबूर है। यानी, जब तक पूरा समाजवादी कुनबा इस ‘अग्निपरीक्षा‘ में सफल नहीं होता, उसके लिए ‘मिशन-2017‘ का लक्ष्य साधना बेहद कठिन ही साबित होगा।
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