- -- चुनौतियों के ‘चक्रव्यूह‘ में फंसी है भाजपा
- -- दावेदारों की भरमार, ‘एक अनार सौ बीमार‘ जैसे हुए हालात
- -- प्रत्याशियों का पैनल तय करने में आलाकमान के छूटे पसीने
- -- चुनावी व्यूह रचना को अंतिम रूप देने में पेश आ रही मुश्किल
पवन शर्मा
सहारनपुर। खुद को ‘पार्टी विद् द डिफरेंस‘ कहकर इतराने वाली भाजपा के सांगठनिक गलियारों में फिलवक्त अलग ही हलचल है। आलम यह है कि, पार्टी के रणनीतिकारों का पूरा फोकस फिलहाल चुनावी ‘व्यूह रचना‘ को अंतिम रूप देने के बजाय ‘भितरघात‘ और ‘बगावत‘ की दोहरी चुनौती से निपटने पर कहीं अधिक है। सबसे ज्यादा बेचैनी की स्थिति उन महारथियों में हैं, जो इस चिंता में घुले जा रहे हैं कि, कहीं टिकट को लेकर दलबदलुओं की ओर से आलाकमान पर लगातार बने ‘प्रेशर‘ के चलते उनका पत्ता ही साफ न हो जाए।
भारी तादाद में टिकट चाहने वालों का दबाव झेल रही भाजपा ने यूपी चुनाव में चौतरफा जीत का परचम लहराने के लिए जमकर तैयारी की है। लेकिन, जिस तरह पार्टी में प्रत्याशियों की घोषणा से ऐन पहले संगठन में तमाम किस्म के विरोध और अंतर्विरोध उभरने की स्थिति साफ नजर आ रही है, उससे न केवल उम्मीदवारों बल्कि, आलाकमान की पेशानी पर भी बल पड़ गए हैं। दरअसल, भाजपा मकर सक्रांति के फौरन बाद किसी भी समय यूपी चुनाव में ताल ठोकने वाले पार्टी प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर सकती है। माना जा रहा है कि, इसी मसले पर भाजपा के आंतरिक गलियारों में उथल-पुथल की स्थिति बनी हुई है। सबसे ज्यादा बेचैनी का आलम वेस्ट यूपी में है, जहां निर्धारित चुनाव कार्यक्रम के तहत पहले और दूसरे चरण में ही ज्यादातर सीटों पर मतदान होना है। यही कारण है कि, इन तमाम क्षेत्रों में चुनाव मैदान में उतरने वाले चेहरों को लेकर लगातार कायम सस्पेंस के बीच आलाकमान को गहरे तनाव से जूझना पड़ रहा है।
भाजपा के सामने इस समय मुख्य रूप से दो बड़ी चुनौती हैं। पहली समस्या टिकट बंटवारे में हैं, जिसमें दावेदारों की संख्या बहुत ज्यादा है। टिकट का फैसला करने में खासी देरी से दावेदारी ही नहीं, दावेदारों की उम्मीदें भी बढ़ती चली गईं। चूंकि, तमाम संभावित दावेदारों ने परिवर्तन यात्रा और रैलियों में बहुत मेहनत के साथ जमकर खर्च भी किया है। इसलिए टिकट की घोषणा और उसके बाद नेताओं की बगावत रोकना पार्टी के लिए कतई आसान नहीं होगा। जबकि, दूसरी चुनौती पार्टी के क्षत्रपों को काबू में रखना है। भाजपा में पहले से एक दर्जन से ज्यादा क्षत्रप किस्म के नेता थे, जिनका खास खास इलाकों में असर है। उनके अलावा दूसरी पार्टियों से भी कई बड़े नेता आ गए हैं। ऐसे चेहरों का भी अपने इलाकों में खासा असर है और वे भी अपने समर्थकों के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं। ऐसे हालात में, पार्टी के रणनीतिकार मान रहे हैं कि चूंकि, हर सीट पर दावेदारों की खासी लंबी फेहरिस्त के बीच किसी एक दावेदार को ही टिकट मिलेगा लिहाजा, ऐसे सूरत-ए-हाल में अन्य दावेदारों की नाराजगी कहीं न कहीं पार्टी की चुनावी मुहिम को भी व्यापक रूप से प्रभावित कर सकती है।
एक अनुमान के मुताबिक, पूरे प्रदेश की कुल 403 सीटों पर भाजपा से चुनाव लड़ने के इच्छुक करीब 15000 दावेदार सामने आए हैं। हालांकि, भाजपा नेतृत्व ने इन सभी दावेदारों के राजनीतिक अनुभव, सामाजिक पद प्रतिष्ठा, चुनावी रणनीति, जातिगत समीकरणों सहित तमाम जरूरी पहलुओं का बारीकी से विश्लेषण करने के बाद ही अंतिम रूप से प्रत्याशियों का पैनल तैयार किया है। लेकिन, इसके बावजूद यह तय माना जा रहा है कि, टिकट नहीं मिलने की सूरत में ज्यादातर नाराज दावेदार किसी न किसी रूप में पार्टी की चुनावी मुहिम को नुकसान पहुंचा सकते हैं। पहले ही भितरघात की चुनौती से जूझ रही भाजपा को ऐसे संवेदनशील हालात में बड़े पैमाने पर बगावत की मुश्किल का भी सामना करना पड़ सकता है। काबिल ए गौर पहलू यह है कि, पिछले विधानसभा चुनाव में भी कई दावेदारों के ऐसे ही रुख के चलते भाजपा प्रत्याशियों को विभिन्न सीटों पर मजबूत स्थिति होने के बावजूद शिकस्त का घूंट पीना पड़ा था। जबकि, इस बार तो दावेदारों की तादाद पिछली बार की तुलना में और भी अधिक है।
यही कारण है कि, जल्द शुरू होने जा रही नामांकन प्रक्रिया से ऐन पहले बने इस किस्म के हालात को लेकर भाजपा आलाकमान खासे दबाव में नजर आ रहा है। दावेदारों के जबरदस्त दबाव के बीच यह तय करना उसके लिए वाकई खासा मुश्किल हो रहा है कि, आखिर किसे खुश करे और किसे नाराज ? जाहिर है कि, ‘गतिरोध‘ की यह स्थिति जल्द खत्म नहीं हुई तो यूपी के चुनावी ‘महाभारत‘ में पार्टी के योद्धाओं को बाहरी मोर्चे से पहले आंतरिक पटल पर ही बड़े पैमाने पर ‘भितरघात‘ से लेकर ‘बगावत‘ तक से जूझना पडे़गा।
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चौतरफा चुनौतियों का चक्रव्यूह
सहारनपुर। बात सहारनपुर की करें तो यहां भी एक-एक सीट पर कई दावेदार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने को बेकरार हैं। जिले की बेहद प्रतिष्ठापूर्ण देवबंद सीट पर तो ऐसे दावेदारों की तादाद दो दर्जन से अधिक है जबकि देवबंद सहित नकुड़, बेहट, गंगोह और रामपुर मनिहारान सरीखी सीटों पर अन्य दलों से आने वाले नेता टिकट के प्रबल दावेदारों में शामिल हैं। इसी तरह, सहारनपुर नगर सीट पर ‘भितरघात‘ का खतरा मुंह बाए खड़ा है। जबकि, सहारनपुर देहात सीट पर चुनावी रणनीति के लिहाज से पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में नजर नहीं आ रही।
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